Thursday, April 15, 2010
फिर ऐसे में क्या?
मेरा यह मानना है कि उन्हें कभी भी हाशिये में डालने का षडयंत्र नहीं किया जाना चाहिए जो समाज और देशहित के लिए अपने -अपने स्तर पर प्रयत्नशील रहते हैं। कुछ लोग यह मानकर चलते हैं कि बडी बात कहने के लिए बडा व्यक्तित्व और बडा मंच होना जरूरी है। दरअसल यह वो लोग हैं जिन्हें ‘मुखौटे‘ ही लुभाते हैं। असली सच से दूरियां बनाये रखना इनकी फितरत में शामिल हो चुका है। यह लोग सत्य और तथ्य से कटकर जीने के प्रबल हिमायती हैं। और इनकी एकमात्र मंशा यही है कि देश के आम जन सपनों में खोये रहें। हकीकत से रूबरू होने की कतई कोशिश न करें। यह मेरे देश की खुशनसीबी है कि तमाम अंधेरों के बीच कुछ मशाले ऐसी भी हैं जो हर हाल में जलते रहने और रौशनी फैलाने की प्रतीज्ञा से बंधी हुई हैं।मुंबई निवासी अक्षय जैन जो कि एक ख्यातिप्राप्त कवि, व्यंग्यकार, वक्ता और मंच संचालक हैं ने हाल ही में ‘घर बचाओ-देश बचाओ‘ नामक त्रैमासिक पत्रिका का प्रकाशन प्रारंभ किया है। इससे पूर्व उनके द्वारा ‘दाल-रोटी‘ नामक पत्रिका का प्रकाशन किया जाता था जिसे आर्थिक संकट के चलते बंद कर दिया गया। दरअसल यह पत्रिका नहीं एक अभियान था जो विदेशी पूंजी और पश्चिमी संस्कृति के खिलाफ सतत चलाया जा रहा था। अपने देश में सार्थक पत्रकारिता करना कतई आसान नहीं है। सच तो यह है कि आज की पत्रकारिता पूरी तरह से पूंजी का खेल हो गयी है। फिर पूंजीपति तो इस खेल को खेलने में इतने माहिर हैं कि दूसरों की तो उनके सामने दाल ही नहीं गल पाती। रोटी का पक पाना तो बहुत दूर की बात है। हिदुस्तानी धरती और हिदुस्तानी सोच को अपना मूलमंत्र बनाकर वर्षों से एक निस्वार्थ अभियान में जुटे अक्षय जैन उन नेताओं को देश का असली दुश्मन मानते हैं जो देश का धन बाहर भेजकर भारतवर्ष को गरीब और असहाय बनाने पर तुले हैं। विदेशी बैंकों में अरबों-खरबों का काला धन जमा करने वाले नकाबपोश चेहरों को वही दंड मिलना चाहिए जो देश के गद्दारों को मिलता है। अक्षय जैन साफ और सच्ची बात कहने में विश्वास रखते हैं। उन्हें अफसोस इस बात का भी है कि भारतवर्ष का मीडिया बहुराष्ट्रीय कंपनियों का गुलाम बन चुका है। पिछले दिनों देश के तमाम मीडिया ने झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री मधु कोड़ा के ४००० करोड़ के घोटाले के मामले को जबरदस्त ढंग से उछाला लेकिन इसी मीडिया ने देशवासियों को यह नहीं बताया कि मधु कोडा ने किन-किन विदेशी कंपनियों को ठेके दिये और उन कंपनियों ने कितनी अथाह दौलत कमायी। हिदुस्तान की छाती पर मूंग दल रही विदेशी कंपनियों ने यह ठैके कैसे हथियाये इस पर भी मीडिया खामोश रहा। मीडिया का तो यह दायित्व है कि वह पहले देश और देशवासियों के हित की सोचे पर आज वह तो इतना बिकाऊ हो गया है कि देशहित को भी गिरवी रखने से बाज नहीं आ रहा है। यह सच्चाई सारी दुनिया के समक्ष प्रामाणिक रूप से खुल कर सामने आ चुकी है कि कोक और पेप्सी में कीटनाशक और सेहत के लिए बेहद खतरनाक रसायनों का समावेश है। फिर भी मीडिया इनके प्रचार को प्राथमिकता देता है। उसने कभी भी खुलकर यह प्रचारित करने का साहस नहीं दिखाया कि इस खतरनाक धीमे जहर से तौबा करने में ही भलाई है। भारत को दोनों हाथों से लूटने आयी विदेशी कंपनियो के खिलाफ जो मीडिया नतमस्तक हो गया हो उसे लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने में भी शर्म आती है। यह कोई कोरी अफवाह नहीं बल्कि हकीकत है कि भारत में पिछले दस वर्षों से पांच हजार विदेशी कंपनियां अपना जाल फैलाये हुए हैं और धड़ल्ले से लूट मार कर रही हैं। इस लूट मार का कुछ हिस्सा मीडिया वालों को भी मिल जाता है। इसलिए कहीं कोई आवाज नहीं उठती। मेरे प्रिय देशवासियों की याददाश्त इतनी कमजोर नहीं है कि उन्हें यह याद ही न हो कि हमें इन्हीं विदेशियों ने ही अपना गुलाम बनाया था। तब भी यह हमारी धरती पर व्यापार करने के बहाने आये थे और सोने की चिडिया को नोचने-खसोटने के अभियान के साथ वर्षों-वर्षों तक कब्जा जमाये रहे थे। कहते हैं कि दूध का जला छाछ भी फूंक कर पीता है पर हम और आप क्या कर रहे हैं... कहां सो रहे हैं? लगता है अब हमारा उन लोगों से भी मोहभंग हो चुका है जो बातें तो बडी़-बडी़ करते हैं पर हकीकत कुछ और ही होती है। यहां पर मेरा अक्षय जैन की नीयत के प्रति अविश्वास दर्शाने का कोई इरादा नहीं हैं। मैं जानता हूं वे कोई ढोंगी साधु-संत नहीं हैं। पर आप बाबा रामदेव के बारे में क्या कहेंगे जिन्होंने विदेशी पूंजी और विदेशी पेय के विरोध की अलख तो जगायी पर धीरे-धीरे किसी और ही राह पर जाते दिखायी दे रहे हैं। सुनते हैं कि अपनी ‘धरती अपने लोग‘ का राग अलापने वाले योग गुरू ने इंग्लैंड से एक पूरा आइलैंड खरीद लिया है। अमेरिका में भी सैकडों एकड जमीन खरीद ली है। मात्र दस साल में ही पचास हजार करोड से ऊपर का साम्राज्य खडा कर चुके बाबा ने राजनीति में भी कूदने का ऐलान कर दिया है। उनके पीछे देश के वो बडे पूजीपति और मीडिया दिग्गज खडे हुए हैं जिनके लूटेरी विदेशी कंपनियों से प्रगाढ रिश्ते हैं। ऐसे में ज्यादा सोचने और समझने के लिए बाकी क्या रह जाता है?
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सुनते हैं कि अपनी ‘धरती अपने लोग‘ का राग अलापने वाले योग गुरू ने इंग्लैंड से एक पूरा आइलैंड खरीद लिया है। jai ho baabaa ki yog ke raste par chal kar kaise-kaise sayog banate jaa rahe hai.
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