Thursday, April 29, 2010

यह भी एक नाटक ही है...

लोगों को अब जाकर पता चला है कि खेल में भी दौलत की बरसात हो सकती है। पहले तो खेल को सिर्फ खेल ही समझा जाता था। खेल में चुस्ती, फुर्ती और मनोरंजन को तलाशा जाता था। यह भी माना जाता था कि खेल एक दूसरे को जोडने का काम भी करते हैं। इनसे भाई चारा भी परवान च‹ढता है। पर आज अकूत कमायी करने का साधन बन गये हैं खेल। क्रिकेट ने तो इस मामले में बाजी ही मार ली है। यह क्रिकेट ही है जो भारतीयों के दिलों दिमाग पर पूरी तरह से कब्जा जमा चुका है। यह क्रिकेट ही है जो पिछले कुछ वर्षों में खेल न रह कर व्यवसाय बन चुका है। व्यवसाय के भी कुछ उसूल होते हैं। नियम-कायदे होते हैं। पर कुछ लोग उसूलों और नियम कायदों को अपनी जूती के नीचे रौंदते हुए चलते रहना पसंद करते हैं। इसलिए उन्होंने इस खेल का इस कदर चेहरा-मोहरा बदल डाला कि क्रिकेट जुए और घोटाले का प्रतीक बन कर रह गया है। मैदान में जो क्रिकेट खेली जाती है वो सिर्फ दिखावे की होती है। असली क्रिकेट तो मैदान के बाहर खेली जाने लगी है। मालदार उद्योगपतियों, खूबसूरत परियों और राजनेताओं के इशारों पर बैट और बाल ने अपना ‘हुनर' दिखाना शुरू कर दिया है। आईपीएल के असली खिलाडी ललित मोदी का नाम आज कल खासी सुर्खियों में है। उसने काम भी तो कमाल का किया है। उसी के दिमाग का करिश्मा है कि क्रिकेट के खिलाडि‍यों की करोडों में बोली लगने लगी है। देश और दुनिया के उद्योगपति और कंपनियां हजारों करोड रुपये दाव पर लगाकर टीमें खरीदती हैं और अगर उनकी टीमें मैच हार भी जाती हैं तो उनके चेहरे पर कोई शिकन नहीं नजर आती। क्रिकेट के जरिये काले धन को सफेद करने का जबरदस्त खेल खेला जा रहा है। इस खेल का मास्टर माइंड है ललित मोदी जिसे फिलहाल किनारे बैठने के लिए विवश कर दिया गया है। अरबों रुपये कमाने वाला खिलाडी क्या कभी चुपचाप दुबक कर बैठ सकता है? अपने शातिर दिमाग से दुबई, मारिशस, यूरोप, इंग्लैंड, आस्ट्रेलिया, दक्षिण अफ्रीका तक आईपीएल का परचम फहराने वाला ललित मोदी अपने दोस्तों और शुभचिं‍तकों की नजर में किसी जीनियस से कम नहीं है। इस जीनियस को आसान रास्तों से पैसा कमाने का शुरू से चस्का रहा है। यही वजह है कि इसने अपने पारिवारिक उद्योग धंधों को हमेशा नजर अंदाज किया और वही राहें चुनी जिन पर चलकर कैसे भी हो बस माल कमाया जा सके। उसके उद्योगपति पिता के.के. मोदी ने उसे पढने के लिए अमेरिका भेजा था। वहां पढने-लिखने के बजाय कोकीन ड्रग्स इसे इतनी भायी कि बाकी सब कुछ पीछे छूट गया। जब बाप ने देखा कि बेटा हाथ से निकल रहा है तो उसे भारतवर्ष में वापस बुला लिया। १९९० के आसपास का ही दौर था जब ललित मोदी की तमाम शामें दिल्ली के ताज होटल में बीतती थीं वहां पर वह नशे में धुत होकर शरीफ लोगों से भिड जाता था। जुआ खेलने में भी उसने महारत हासिल कर ली थी। दिल्ली के एक फाईव स्टार होटल में दीपावली की रात जब वह करोडों रुपये हार गया था तब मीडिया में भी इस जुआरी को अच्छी खासी सुर्खियां मिली थीं। करोडों रुपये जुए में हारने का दम रखने वाले इस बिगडे रईस की देश के सटोरियों और भ्रष्टाचारी राजनेताओं से भी जान पहचान और यारी होने में देर नहीं लगी। यही है ललित मोदी का असली चरित्र और चेहरा जो नागौद में वर्ष २००४ में फर्जी हस्ताक्षर के जरिए जमीन की खरीदी कर नाम कमा चुका है। यह शख्स कितना गिरा हुआ है उसका पता तो इस बात से ही लग जाता है कि इसने १७ मार्च २००८ में जयपुर ब्लास्ट पी‹िडतों को छह करोड रुपये देने की घोषणा तो कर डाली थी पर बाद में मुकर गया। २००७ में देश की आन-बान और शान तिरंगे का अपमान कर चुका ललित मोदी आईपीएल का सर्वेसर्वा कैसे बना दिया गया यह भी खोज और जांच पडताल का विषय है। पर ऐसा कभी होगा नहीं कि असली सच सामने आ सके। क्योंकि ललित मोदी के सिर पर देश के बडे-उद्योगपतियों और राजनेताओं का हाथ है। अकेले मोदी की इतनी कतई औकात नहीं थी कि वह विश्व की सबसे अमीर संस्था बीसीसीआई की नाक के नीचे इतना बडा गडबड घोटाला कर पाता। जब शरद पवार जैसे धाकड नेताओं की गर्दन फंसने लगी और पानी सिर से ऊपर गुजरने लगा तो मजबूरन ललित मोदी को आईपीएल यानि इंडियन पैसा लीग के कमिश्नर पद से हटाने का नाटक भर किया गया है। अपने देश में ऐसे नाटकों का मंचित होना कोई नयी बात तो है नहीं...

1 comment:

  1. ekadaam sahi kahaa. modi ko hataane ke naatak se kyaa faayadaa. yah khel nahi tamaashaa hai. satoriyo kaa dhandhaa ban gayaa hai 'ipl'. yah band ho...band ho.

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