Saturday, May 15, 2010

बडे पत्रकारों का बडा गेम

जिन पर देश को नाज हो अगर वही ‘दल्ले' और विश्वासघाती निकलें तो...? राजनेताओं और नौकरशाहों की तर्ज पर अब कई पत्रकारों की भी असली औकात सामने आने लगी है। सजगता निर्भीकता और निष्पक्षता के साथ सच को सामने लाने का दावा करने वाले खुद एक-एक कर वस्त्रहीन होने लगे हैं। इन बेशर्मों को तो कतई शर्म नहीं आ रही है पर इन पर गर्व करने वाले आज बेहद दुखी और आहत हैं। शर्म के मारे सिर झुकाने को मजबूर हैं।पत्रकार बरखा दत्त का नाम तो आपने भी सुना होगा। टेलीविजन पर अक्सर देश के नामी-गिरामी राजनेताओं, मंत्रियों-संत्रियों के साक्षात्कार लेते और बडी-बडी झाडते देखी जाती हैं। अपने आपको देश के दूसरे न्यूज चैनलों से अलग और खास बताने और दर्शाने वाले एनडीटीवी ग्रुप की मैनेजि‍ंग एडिटर हैं बरखा दत्त। उन्हें इस बात का जबरदस्त अभिमान है कि वे देश की एक मात्र नामी महिला पत्रकार हैं। अपने देश की सरकार भी उन पर पुरस्कारों की बरसात करती रहती है। वर्ष २००८ में ‘पद्मश्री' से नवाजी जा चुकी बरखा दत्त की ही तरह पत्रकारिता जगत में वीर संघवी के नगाडे भी खूब बजते हैं। वीर संघवी ि‍हंदुस्तान टाइम्स के संपादकीय सलाहकार हैं और अक्सर टीवी पर विभिन्न क्षेत्रों के दिग्गजों के इंटरव्यू लेते दिखायी दे जाते हैं। संघवी अरबपति बाप की मस्तमौला औलाद हैं और उनकी पढाई-लिखायी अमेरिका और इंग्लैंड जैसे देशों में हुई है। इस धनपति ने पत्रकारिता को अपना पेशा बनाया और दुनिया भर के रईसों के गुणगान गाते हुए धडाधड उन पर कई किताबें भी लिख डालीं। देश के आम आदमी से कभी इनका नाता नहीं रहा। धन्नासेठों की दौलत पर देश और विदेश के फाईव और सेवन स्टार होटलों में ऐश करने वाले वीर संघवी और महिला पत्रकार बरखा दत्त पर जिस तरह से अरबों के घोटाले में शामिल होने और दलाल की भूमिका निभाने के आरोप लग रहे हैं उससे तो वाकई यही कहा जा सकता है कि सत्ता के दलाल यह ब‹डे पत्रकार बडे-बडे खेल खेलने में माहिर हैं। खुद को ‘हाई-फाई' बताने वाले यह चेहरे वास्तव में हद दर्ज के मुखौटेबाज भी हैं जिनका एक ही धर्म है धन-दौलत। इसके लिए इन्होंने पत्रकारिता को भी दांव पर लगा दिया है और इनकी एेंठन पर कुछ भी फर्क नहीं पडा है। सीना तान कर अकडते हुए इठला रहे हैं कि किसमे है दम जो हमारा बाल भी बांका कर सके! वैसे तो राजनेताओ और सत्ता की नजदीकियों का फायदा उठाकर मालामाल होने वाले पत्रकारों और संपादकों की इस देश में कोई कमी नहीं है। पर बरखा और संघवी जैसे नामों पर कालिख पुतने से यह बात भी स्पष्ट हो गयी है कि देश को लूटने वालों की भीड में कई पत्रकार भी खुल कर शामिल हो गये हैं। बडे मीडिया हाऊस, बडे पत्रकार, बडे ब्यूरोक्रेट और बडे नेताओं ने मिल-जुलकर ऐसे संगठित गिरोह बना लिये हैं जो ब‹डे इत्मीनान के साथ उठा-पटक का खेल खेलते हुए देश के धन को अंदर करने में लगे हैं।एनडीटीवी की बरखा दत्त को अगर ‘मीडिया पर्सन ऑफ दी डिकेड' और पद्मश्री जैसे खिताबों से नवाजा नहीं गया होता तो लोग उनके चेहरे की कालिख को नजर अंदाज कर देते। उन्हें जरा भी आश्चर्य न होता। पर यहां तो सरासर विश्वासघात हुआ है। वीर संघवी भले ही खुद को बडा पत्रकार कहते और मानते हों पर उन का नाम अरबों के घोटाले में उजागर होने से लोगों को ज्यादा तकलीफ नहीं हुई। तकलीफ तो उस बरखा ने दी है जिसका दावा है कि वह देश की इकलौती श्रेष्ठ महिला पत्रकार है। महिलाओं की छवि को दागदार करने का शर्मनाक गुनाह करने वाली बरखा दत्त ने जिस तरह से चुप्पी साध ली है उससे तो यही लगता है कि वे पत्रकारिता के चोले में देशवासियों को ठगने का काम करती चली आ रही हैं।वीर संघवी जैसों की तो यहां भरमार ही भरमार है जो ‘ऐश' करने और तिजोरियां भरने के लिए ही पत्रकारिता के पेशे को अपनाये हुए हैं। राजनीति और पत्रकारिता के गठजोड से कंगालों को करोडपति होते देखा गया है। राजनीति के मैदान में कूद कर नोट कमाने के करतब अब पुराने पडते चले जा रहे हैं इसलिए राजनीतिबाजों ने पहले अपराधियों को अपने साथ मिलाया और फिर धीरे से मीडिया को भी अपने रंग में रंग डाला। मुंबई, दिल्ली, लखनऊ, नागपुर, रायपुर आदि महानगरों और नगरों में ऐसे कई परिवार हैं जिनके कर्ताधर्ता राजनीति में भी हैं और पत्रकारिता में भी। इनकी आर्थिक तरक्की के मीटर की रफ्तार किसी को भी हैरत में डाल सकती है। छत्तीसगढ के शहर दुर्ग के निवासी और कांग्रेस के नेता मोतीलाल वोरा का नाम किसी परिचय का मोहताज नहीं है। मोतीलाल मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। उत्तरप्रदेश का राज्यपाल होने का सुख भी भोग चुके हैं। वर्तमान में वे कांग्रेस के कोषाध्यक्ष हैं। उनके छोटे भाई गोवि‍ंदलाल वोरा तब से पत्रकारिता में हैं जब से बडे भाई राजनीति में। पत्रकारिता और राजनीति का मिला-जुला खेल खेलते हुए दोनों भाइयों ने बीस-पच्चीस साल में इतनी दौलत कमा ली है कि अरबपति भी उनके समक्ष पानी भरते हैं। एक जमाना था जब मोतीलाल वोरा निजी बस कंपनी में बुकि‍ंग क्लर्क थे और गोवि‍ंदलाल वोरा रायपुर से प्रकाशित होने वाले दैनिक नवभारत में बैठकर कलम घिसा करते थे। बडे भाई की जब कांग्रेसी-राजनीति चलने लगी तो छोटे भाई को रायपुर के प्रमुख बाजार में स्थित करोडों की सरकारी जमीन अखबार के नाम पर फोकट में दिलवा दी और उस जमीन का फायदा उठाते हुए मार्केट काम्पलेक्स तैयार करवाया और करोडों की कमायी कर डाली। चिल्लाने वाले चिल्लाते रह गये। पेपरबाजी भी खूब हुई पर राजनीति और पत्रकारिता के खेले-खाये कबड्डीबाज भाइयों का कुछ भी नहीं बिग‹डा। मोती और गोवि‍ंद जैसे और भी न जाने कितने भाई हैं जो पत्रकारिता और राजनीति की बदौलत अरबों-खरबों में खेलते हुए देश सेवा कर रहे हैं। देश के लगभग हर बडे राजनेता ने ‘सेवकद्य' के रूप में अपने-अपने पत्रकार और संपादक पाल रखे हैं जो अपने आका के पक्ष में लिखने-लिखाने से लेकर दलाल-फलाली जैसे सभी कर्मों-दुष्कर्मों को अंजाम देते रहते हैं। वैसे भी अब तो पत्रकारिता का वो दौर आ गया है जब कल के नामी संपादक आज खुलकर अपनी बोली लगाने लगे हैं। कभी राजनीतिक पार्टियों के ‘मुखपत्र' निकला करते थे। आज पार्टी के नेता के मुखपत्र प्रकाशित किये जाने लगे हैं। इस काम को जो तथाकथित धुरंधर संपादक अंजाम दे रहे हैं और उन्हें थोडी भी लाज-शर्म नहीं आ रही है क्योंकि सवाल माया का है...। ऐसे में मीडिया और पत्रकारों पर नाज़ और विश्वास करने की बची-खुची गुंजाइश पर लाख परिचर्चाएं होती रहें, रोना-गाना चलते रहे पर कोई फर्क नहीं पडने वाला...। वैसे भी बडों का अपने यहां कुछ भी नहीं बिगडता। गाज तो हमेशा छोटों पर गिरती आयी है...

2 comments:

  1. aapke vichar to suru se hi prbhavkari k sath sath kranti k layk bhi hoti hai iska samaj pr kya asr hota hoga yeh to mai nhi kah sakta prntu itna avsy hai ki sabdo ka sidha sidha prahar krna mujhe acchha lgta hai aur vicharo k sath sath aapki lekhni se maine bhi bahut kuch sikha hai ...phir bhi mera manna hai ki kisi bhi chij ya burai ko khatm karne k pahle uske bad aanewale dusparinam ko bhi gaur farma kar agar kalam kalam chalai jay to aur bhi acchha rhega nagpal ji mera apna manna hai ki koi bhi vichar aalekh ya blog apne niji ho sakta hai par......sikhne ko bahut kuch de jati hai.....aapke agle bloging ka intzar rhega
    khalish chhattishgadhiya
    www.janrapat.com

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  2. bade bade magarmacch sarike patrkar ya media group to chhattisgarh me bhi apni dukandari chala rhe hai unpar kab aap sabdo ki jal fekenge..... aur fir aapke zal me ve funs jay ye bhi zaruri nahi pr aapki fitrat dekh sun aur padhne k bad yakin kar sakta hu ki aapke sabdo ka ban to sabhi par chalta hai ...............

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