Thursday, June 3, 2010

शरणार्थियों की बस्ती

कुछ खबरें सोचने के लिए मजबूर कर ही देती हैं। आप लाख चाहें पर उन्हें नजर अंदाज नहीं कर सकते। उल्हासनगर की इस खबर को ही लीजिए जिसे प‹ढते ही मैं खुद को कलम चलाने से रोक नहीं पाया। मुंबई के निकट स्थित उल्हासनगर में तीन हजार से अधिक पत्रकार हैं! इनमें से अधिकांश पत्रकारों का एक सूत्रीय लक्ष्य हफ्ता वसूली का है। अधिकांश पत्रकार ऐसे हैं जो दिन भर अपने शिकार की खोज में लगे रहते हैं। जनजीवन से जुडी आम खबरों से उनका कोई वास्ता नहीं है। अपने वाहनों पर पत्रकार लिखकर घूमते ये शिकारी हमेशा इस बात की जानकारी लेने के लिए दौड-भाग करते रहते हैं कि शहर में कहां-कहां अवैध धंधे चल रहे हैं, अतिक्रमण हो रहे हैं और कौन-सी योजना के लिए कितना सरकारी फंड स्वीकृत हुआ है या फिर होने जा रहा है। अराजक तत्वों को आश्रय देना और उनसे हफ्ता वसूल करना इनका पेशा बन चुका है। महानगर पालिका, पीडब्ल्यूडी, सि‍चाई विभाग, आबकारी विभाग और पुलिस वालों से भी इन्हें नियमित देन मिलती रहती है। कुछ लोग तो ऐसे भी हैं जो किसी अखबार या न्यूज चैनल से नहीं जुडे हुए हैं फिर भी बडी ठसन के साथ खुद को पत्रकार बताते हुए अपना कामधंधा कर रहे हैं। इनकी आलीशान कारों पर पत्रकार का स्टीकर लगा देख बडी-बडी हस्तियां भी इन्हें सलाम करती हैं और झुक कर पेश आती हैं। शहर की हर धडकन से वाकिफ कुछ सज्जनों का कहना है कि उल्हासनगर में जब से अवैध निर्माणों और अवैध धंधों की बाढ आयी है तभी से गली-गली में पत्रकार और अखबार निकालने वाले पैदा हो गये हैं। छुटभइये किस्म के नेताओं बिल्डरों और शराब माफियाओं ने भी अखबारों का प्रकाशन शुरू कर दिया है और वे बडे फख्र के साथ संपादक और अखबार मालिक कहलाते फिरते हैं। यहां पर अखबार चलने और बिकने से तो रहे फिर भी अखबारों की संख्या बढती ही चली जा रही है। स्थानीय लोगों में इस बात की चर्चा है कि उल्हासनगर में हजार-दो हजार रुपये में प्रेस का कार्ड आसानी से मिल जाता है। जो प्रेस कार्ड खरीद लेता है वही पत्रकार बन जाता है और शिकार फांसने में लग जाता है। नकली सामान बनाने और फिर उसे पूरे देश में खपाने के लिए उल्हासनगर को जो कुख्याति हासिल हो चुकी है उसमें निरंतर इजाफा करने में लगे हैं कुकरमुत्तों की तरह उगते और फैलते ये पत्रकार। उल्हासनगर और उससे एकदम सटे कल्याण में से उन सि‍ंधियों का वर्चस्व है जो देश के बंटवारे के बाद पाकिस्तान से यहां आये और बसाये गये थे। दाऊद और अरुण गवली की तर्ज पर आपराधिक गतिविधियां चलाने और देखते ही देखते अरबों-खरबों का साम्राज्य खडा करने वाले पप्पू कालानी जैसे लोग यहां की राजनीति में भी छाये हुए हैं। पप्पू कालानी मर्द मराठा शरद पवार की मेहरबानी से विधायक बनने का आनंद भी भोग चुके हैं। पप्पू की धर्म पत्नी ज्योति कालानी भी राजनीति तथा समाज सेवा के क्षेत्र में पति के साथ कंधे से कंधा मिला कर चलती हैं। सत्ता और धन के बल पर पप्पू और ज्योति वो सारे गलत काम करते चले आ रहे हैं जिन्हें अवैध और अनैतिक माना जाता है। उल्हासनगर में ऐसे-ऐसे धनबलि और बाहुबलि हैं जो रातोंरात किसी का भी काम तमाम कर सकते हैं। प्रापर्टी और होटल व्यवसाय में लगभग इन्हीं की तूती बोलती है। मुंबई की तर्ज पर यहां के बीयर बारों और होटलों में जमकर देह व्यापार होता है जिसकी पुख्ता जानकारी पुलिस को भी रहती है और राजनेताओं को भी। पत्रकारों की तरह वे भी आंख, कान और मुंह बंद कर अपना काम करते रहते हैं। यह कहना भी गलत नहीं होगा कि उल्हासनगर एक ऐसा टापू है जहां नेताओं, समाज सेवकों, गुंडे बदमाशों, पत्रकारों और पुलिस वालों के बीच ऐसा जबरदस्त गठजोड हो चुका है कि सारे मामले आपस में मिल बैठकर सुलझा और निपटा लिये जाते हैं। शाम होते ही कई पत्रकार आबकारी विभाग और पुलिस वालों के साथ दारू पीते देखे जा सकते हैं। मनपा के अधिकारियों का भी कई पत्रकारों से अटूट याराना है। दरअसल पत्रकार खबरी की भूमिका भी बखूब निभाते हैं। इसलिए हर किसी के काम आते हैं। पुलिस वालों को अवैध धंधो और धंधेबाजों की सूचना देकर अपना हिस्सा पाने वाले पत्रकारों का रूतबा भी देखते बनता है। खून-पसीना बहाने से परहेज करने वाले बेरोजगार नये-नवेले छोकरे भी इनसे प्रभावित हो रहे हैं। वे इन्हें अपना आदर्श मानते हुए इनके आगे-पीछे घूमते देखे जा सकते हैं। तय है कि शरणार्थियों की बस्ती का भविष्य बहुत उज्जवल है।

1 comment:

  1. arre...? ullasnagar ki baat ho rahi hai yaa raypur ki...? yahaan bhi isi gotr ke patrakaar mli jayege bhai. har kahi hai. patrkaaritaa ab mishan nahe, dhandhaa hai. yesb to hoga hi. achchhi post. badhai himmat dikhane ke liye.

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