Thursday, June 24, 2010

भाजपा तो है थैलीशाहों की पार्टी

जब से संघ की पसंद नितिन गडकरी ने भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष की कुर्सी पायी है तभी से पार्टी की इमारत धसकती-सी दिखायी देने लगी है। इस डगमगाती इमारत पर कई नेता अपना-अपना डंडा लेकर खडे हैं। डंडे में झंडा कहीं नजर नहीं आ रहा है। नितिन गडकरी भले ही यह कहते नहीं थक रहे हों कि भारतीय जनता पार्टी काम करने वालों की कदर करना जानती है और इसका प्रत्यक्ष उदाहरण वे स्वयं हैं जो कभी दिवारों पर पोस्टर चिपकाया करते थे और आज पार्टी के अध्यक्ष पद पर विराजमान हैं। अध्यक्ष महोदय सच कहते हैं या झूठ यह भी खोज और शोध का विषय है।जिन्होंने भाजपा को बहुत करीब से देखा और जाना है उनका निष्कर्ष तो यही बताता है कि यह पार्टी रईसों की पार्टी है। इसमें सौदागरों की भरमार है। खाली जेब वालों की यहां कोई पूछ-परख नहीं होती। वैसे तो देश की लगभग हर राजनीतिक पार्टी का यह उसूल बन चुका है कि विधान परिषद और राज्यसभा में धन्नासेठों को ही पहुंचाओ और फटेहालों को दिलासा देकर मुंह ताकते रहने के लिए छोड दो। पर भाजपा तो इस मामले में सबको मात देती चली आ रही है। एडवोकेट राम जेठमलानी का नाम तो आपने जरूर सुना ही होगा। यह महाशय देश के बडे नामी वकील कहलाते हैं। सिर्फ रईसों के ही केस लडते हैं। गरीब इन तक पहुंचने की सोच ही नहीं सकते, क्योंकि इनकी कोर्ट में एक बार खडे होने की फीस ही पंद्रह से पच्चीस लाख रुपये तक है। जाहिर है कि बहुत मालदार हैं वकील साहब...। भारतीय जनता पार्टी और शिवसेना इन पर हमेशा मेहरबान रही है। हद दर्जे के मतलब परस्त जेठमलानी जिस थाली में खाते हैं उसी में छेद करने से भी नहीं चूकते। जब देश में राजग की सरकार थी और संत पुरुष श्री अटल बिहारी वाजपेयी प्रधानमंत्री थे तब जेठमलानी को केंद्रीय मंत्री बनाया गया था। मंत्री पद पर रहते हुए इस शख्स ने ऐसी-ऐसी नौटंकियां कीं कि आखिरकार मंत्री की कुर्सी छिन गयी। तब जेठमलानी की बौखलाहट देखने लायक थी। अटल जी से खुन्नस खा चुके जेठमलानी ने बाद में अटल जी के खिलाफ लोकसभा चुनाव भी लडा और मुंह की खायी। रईस अपराधियों और देश के गद्दारों तक की पैरवी करने वाले जेठमलानी हद दर्जे के असभ्य अहंकारी और बदतमीज भी हैं। पता नहीं भाजपा की कौन-सी कमजोर नस उनकी मुट्ठी में है कि 'थाली छेदक' को दुत्कार के बदले उपहार ही मिलता चला आ रहा है। बताते हैं अटल जी से जबर्दस्त वैमनस्य रखने वाले जेठमलानी का भाजपा के दिग्गज नेता लालकृष्ण आडवाणी से गजब का याराना है जिसके चलते भारतीय जनता पार्टी के नये अध्यक्ष गडकरी जेठमलानी को राज्यसभा की सदस्यता से नवाजने के लिए मजबूर हो गये। अस्सी वर्ष से ऊपर के हो चुके भाजपा के इस नवनिर्वाचित राज्यसभा सदस्य ने मीडिया की तौहीन करके दिखा दिया है कि इनकी सनक मिजाजी और हेकडी जस की तस है। राम जाने यह शख्स राज्यसभा में कैसे-कैसे गुल खिलायेगा...। इस हकीकत से तो हर कोई वाकिफ है कि अपने यहां के न्यूज चैनल वालों को विवादास्पद चेहरों का साक्षात्कार लेना और दिखाना कुछ ज्यादा ही सुहाता है। इसी परिपाटी का पालन करते हुए स्टार न्यूज चैनल के दीपक चौरसिया जेठमलानी के राज्य सभा सांसद निर्वाचित होते ही साक्षात्कार लेने के लिए उनके निवास स्थान पर जा पहुंचे। जेठमलानी को गदगद होना चाहिए था कि मीडिया उनके जैसे सत्ता खोरों को खास तवज्जो देता है। पर ऐसा हुआ नहीं...।पत्रकार दीपक चौरसिया ने साक्षात्कार के दौरान जेठमलानी के अतीत और वर्तमान को लेकर कुछ ऐसे सवाल दाग दिये कि वे आग बबूला हो गये। उन्हें लगा कि यह पत्रकार किसी दुश्मन का भेजा हुआ कोई ऐसा दलाल है जो उनके मुखौटे को नोच डालना चाहता है। बडे-बडे गुंडे-बदमाशों और अपराधियों को अपने तर्कों के दम पर बरी करवा चुके वकील को सच की सुई ने इस कदर आहत कर दिया कि वे आपे से बाहर होकर अशिष्ट भाषा पर उतर आये- ''तुम सब मीडिया वाले असभ्य और जाहिल हो। जहां-तहां बिछ और बिक जाते हो। कांग्रेस के तो तुम जरखरीद गुलाम हो। इसलिए तुम जैसों को तो मैं देखना भी पसंद नहीं करता... तुम्हारी भलाई इसी में है कि फौरन मेरे घर से बाहर हो जाओ। नहीं तो...!''जेठमलानी की दुत्कार सुनने के बाद पत्रकार दीपक चौरसिया मुंह लटका कर बदतमीज सांसद के घर से बाहर निकल गये। परंतु जिन लाखों सजग लोगों ने पूरे तमाशे का जीता जागता चित्रण टेलीविजन पर देखा वे तो जेठमलानी और भाजपा को जी भरकर कोसते रह गये। पत्रकार दीपक चौरसिया का अहंकारी और सनकी सासंद के समक्ष चुप्पी साधे रहना किसी भी मीडिया प्रेमी को रास नहीं आया। लगता है वे अपने न्यूज चैनल पर जो तमाशा दिखाना चाहते थे उसे उन्होंने बेइज्जत होकर फिल्माया भी और दिखाया भी। यही उनका असली मकसद था। अधिकांश न्यूज चैनल वाले आजकल ऐसे ही पत्रकारिता कर रहे हैं। वाहियात नेता के समक्ष नामी-गिरामी पत्रकार की चुप्पी के भला और क्या मायने हो सकते हैं? क्या यह भी मान लिया जाए कि पत्रकार बंधु किन्हीं मजबूरियों के वशीभूत होकर अपनी खुद्दारी भी गिरवी रखते चले जा रहे हैं? भारतीय जनता पार्टी को जेठमलानी जैसे 'चेहरे' मुबारक हों। बेचारी की समझ में अब यह बात तो आने से रही कि किनकी वजह से उसके पांव के नीचे जमीन लगातार दरकती ही जा रही है...। जेठमलानी जैसे खरबपतियों को कुर्सियां बांटने वाली पार्टी के अध्यक्ष से कोई यह भी तो पूछे कि जनाब अगर आपकी पार्टी में पोस्टर लगाने वालों को तरजीह दी जाती है तो फिर जेठमलानी जैसे धनपतियों का भाजपा में वर्चस्व क्यों है? लोगों की यह धारणा कहां पर गलत है कि भाजपा थैलीशाहों का जमावडा है। इसके आगे और पीछे सिर्फ और सिर्फ थैलीशाह ही खडे हैं। अभी हाल में बिहार में मोदी के विज्ञापनों के प्रकाशन को लेकर जो हंगामा हुआ उसके पीछे का सच भी जान लीजिए। बिहार की राजधानी पटना में मोदी को प्रचारित करने वाले तमाम विज्ञापन सूरत के एक भाजपा सांसद के जरिए छपवाये गये थे। गुजरात में हुए सहकारी बैंक घोटाले के खलनायक रहे इस सांसद ने गुजरात के हीरा व्यापारियों से मोटी उगाही कर इन विज्ञापनों के बिल का भुगतान किया१ वैसे भी टाटा-बिडला और तमाम अंबानियों की जमात नरेंद्र मोदी को देश का प्रधानमंत्री बनाये जाने की चाह व्यक्त करती रही है। इसी से समझा और जाना जा सकता है कि भाजपा को कितने...कितने पावरफुल धनबलियों का साथ मिलता चला आ रहा है। ऐसे में बिहार के मुख्यमंत्री नीतिश कुमार जैसों के शोर मचाने से क्या फर्क पडता है...

1 comment:

  1. theek kahaa hai bjp ke baare mey. ab to iss party kaa bhagvaan ram hi malik hai.

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