Thursday, June 10, 2010
रामू की उडान
हरिद्वार में रहने वाले एक मित्र बताते हैं कि आज से लगभग पच्चीस वर्ष पूर्व एक दुबला-पतला लडका पैदल या फिर सायकल से शहर की सडकें नापा करता था। उसकी बातचीत और पहनावे से लगता था कि उसने बचपन से ही भगवाधारी साधु-संत बनने की चाह पाल रखी है। देश की प्रख्यात तीर्थनगरी हरिद्वार जहां पर एक से बढकर एक साधु-संतों का हमेशा मेला लगा रहता हैं वहां पर उसकी दाल गल पाना कोई सहज बात नहीं थी। वह लडका बेरोजगार था और अक्सर हर की पौडी के निकट स्थित दुकानदारों के यहां अपनी हाजिरी लगा दिया करता था। दुकानदार भी उससे परिचित थे। जब कभी किसी दुकानदार के यहां ग्राहकों की भीड होती और उन्हें वह लडका आस-पास घूमते हुए दिख जाता तो वे उसे फौरन आवाज लगाते...अरे रामू जरा चायवाले को दुकान पर चाय भेजने को कह देना। और हां खुद भी एक प्याली गटक लेना। लडका फौरन हुक्म बजाता। इस तरह से उसे कहीं से चाय तो कहीं से रोटी-सब्जी मिल जाती। उस साधारण से दिखने वाले लडके ने असीम महत्वाकांक्षाएं पाल रखी थीं। वह गजब का कर्मठ भी था। वो कल का रामू आज योग बाबा रामदेव के नाम से देश और दुनिया में अपना डंका बजाये हुए है। नामी-गिरामी उद्योगपति, राजनेता, व्यापारी, नौकरशाह उसे सलाम करते हैं। हरिद्वार के वो छोटे-मोटे दुकानदार और रेडीवाले अपने रामू को अखबारों और टीवी चैनलों के पर्दे पर देखकर गर्व से अपना सीना फुला लेते हैं। रामू आज उनके लिए दूर की कौडी हो गया है। उस तक पहुंचना उनके लिए कतई आसान नहीं रहा। उनका रामू अब पैदल या सायकल पर नहीं हवाई जहाजों से देश विदेश की यात्राएं करता है। हरिद्वार के कई संतों को बाबा रामदेव ओर फरेबी बाला राखी सावंत में ज्यादा फर्क नजर नहीं आता। हरिद्वार के लोग अपने रामू के बारे में कुछ भी कहें पर रामू के नये अवतार बाबा रामदेव को हाशिये में डालना आसान नहीं है। आज देश के बडे-बडे मीडिया ग्रुप उनके साथ हैं। सम्पादक, पत्रकार और सत्ताधीश उनके साथ मंच पर जगह पाने के लिए तरसते रहते हैं। धनबलि और बाहुबलि भी उनके लिए कोई भी ‘सेवा‘ कर गुजरने को आतुर रहते हैं। आज उनके पास क्या नहीं है। अपने प्रचार के लिए उन्होंने अपना टेलीविजन चैनल खरीद लिया है। लोगों तक पहुंचने के लिए जिन जरुरी साधनों की जरुरत होती है वे सब उन्होंने ‘योग‘ के माध्यम से जुटा लिये हैं। यकीनन वे आज खरबों में खेल रहे हैं। योग की दुकानदारी उन्हें रास आ गयी है। प्रवचनों का कारोबार उन्हें इस कदर नामचीन न बना पाता। इसलिए उन्होंने लोगों को योगासन कराने का रास्ता पक‹डा और सफलता झटक ली। बाबा अब जमीन पर नहीं आसमान पर उड रहे हैं। तभी तो वे यह फरमाने से नहीं चूके कि मुझे (अब) राजनीतिक पावर की जरुरत नहीं है। मैं अपने आप में ही इतना पावरफुल हूं कि देश के राष्ट्रपति, प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री मेरे चरणों में आकर बैठते हैं। योगगुरू ने जिस अंदाज से यह वक्तव्य दिया उससे कई लोगों को पीडा हुई। क्रोध भी आया। कहा जाने लगा कि बाबा अहंकारी हो गया है। अकड आ गयी है। जमीन पर पैर नहीं पड रहे हैं। संत को तो विनम्र भाषा बोलनी चाहिए। सच्चे साधु को अहंकार शोभा नहीं देता। लगता है रामदेव माया-मोह के चक्कर में प‹डकर अपना अतीत भूल गये हैं। ऐसे अहंकारी का पतन होकर ही रहता है। पर योगी ने बहुत सोच समझकर अपने बोलवचनों की तेजाबी बरसात की है। वैसे भी वे शुरू से बडबोलेपन के शिकार रहे हैं। पर अब उन्होंने जो कुछ भी कहा है वह गलत भी तो नहीं है। वे जहां जाते हैं वहां पर आम लोगों के पहुंचने से पहले मंत्रियों-संत्रियों की फौज पहुंच जाती है। यह फौज इस सच से वाकिफ है कि आज देश भर में बाबा के चाहने वालों की तादाद करोडों में है। बाबा के आगे-पीछे मंडरायेंगे तो अपना भी भला हो जायेगा। वोटों की फसल तैयार हो जाएगी। अब इन नेताओं को कौन समझाये कि वो पहले वाली बात नहीं रही जब बाबा उनके सानिध्य के लिए तरसा करते थे। आज उनकी तूती बोलने लगी है। वे ऐलान कर चुके हैं कि वे राजनीति से जुडने जा रहे हैं वे खुद चुनाव नही लडेंगे। देश का प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति बनने का भी उनका कोई इरादा नहीं है। योगी जानता है कि इस देश मं ‘त्याग‘ की बडी महिमा है। सोनिया गांधी ने भी इसी त्याग का फार्मूला अपनाया था ओर आज अपने इशारों पर देश की सरकार चला रही हैं। अपने सपने का साकार करने की जोडतोड में जुटे बाबा को जब अपने लोगों को चुनाव लडवाना है तो फिर ऐसे में वे अपने वोट बैंक में सेंध क्यों लगवायें...। वे बाल ठाकरे की तरह किंगमेकर की भूमिका में छा जाने को उत्सुक हैं। वे अपने चहेतों को गद्दी पर विराजमान होते देखना चाहते हैं। वे अपने ढंग से पावर हासिल करना चाहते हैं। इसे लोग भले ही किसी भी रूप में लें पर योगी को किसी की कोई परवाह नहीं है। योगी को यकीन है कि वह धीरेंद्र ब्रम्हचारी, जयगुरूदेव बाबा और चंद्रास्वामी की तरह पटकनी नहीं खायेंगे और देखते ही देखते जिसतरह से योग के धंधे में छा गये वैसे ही राजनीति में भी छा जायेंगे। रामू से योग गुरू बाबा रामदेव बनने का लंबा सफर यूं ही तय नहीं हो गया।
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baba ramdev kaa ateet batata hai,ki himmat kare insaan to kyaa ho nahi saktaa. log himmat n haren. mehanat karte rahe. safal ho kar rahenge..ek din. achchhi jankari mili.
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