Thursday, June 17, 2010

मुसलमान कब तक होते रहेंगे राजनेताओं के छल-कपट के शिकार?

धिक्कार है उन राजनेताओं पर जो रंग दर रंग बदलते हुए गिरगिट को भी शर्मिंदा कर रहे हैं। लानत है उन पर जो अपने ही देशवासियों के साथ छल-कपट करने में कतई नहीं कतराते। उन पर भी लानत है जिनके लिए इस देश के मुसलमान सिर्फ और सिर्फ वोटर भर हैं। देश की राजनीति के प्रख्यात-कुख्यात दलाल अमर सि‍ंह को इन दिनों मुसलमानों की बहुत चिन्ता सता रही है। हाल ही में उनका बयान आया है कि समाजवादी पार्टी ने हमेशा मुसलमानों को बेवकूफ बनाया है और येन-केन-प्रकारेण उनके वोट हथियाने के मकसद को पूरा किया है। यह वही अमर सि‍ंह हैं जो चौदह वर्षों तक समाजवादी पार्टी में रह चुके हैं और पार्टी सुप्रीमो मुलायम सि‍ंह के हर फैसले में शामिल हुआ करते थे। पार्टी से धकियाये जाने के बाद अब उन्हें मुसलमानों के साथ होते चले आ रहे भेदभाव और अवहेलना की चिन्ता इस कदर सताने लगी है कि मंचों पर भाषण देते-देते रुआंसे हो जाते हैं। उन्होंने अभी कोई राजनीतिक पार्टी तो नहीं बनायी, पर एक 'मंच' (लोकमंच) जरूर बना लिया है जिसकी छाती पर सवार होकर किसी को कोसने और किसी को चूमने-चाटने का नाटक करते रहते हैं। राजनीति में बुरी तरह से पिटने के बाद फिल्मों में लटके-झटके दिखाने में लगे अमर सि‍ंह ने ऐलान किया है कि आगामी विधान सभा चुनाव जीतने के बाद उनका मंच किसी मुसलमान को मुख्यमंत्री बना कर ही दम लेगा। अमर सि‍ंह की तरह और भी बहुतेरे नेता हैं जो मुसलमानों को रिझाने और लुभाने के लिए शाब्दिक चारा फेंकते रहते हैं। अन्दर से भले ही मुसलमानों के प्रति कैसी भी सोच रखते हों पर ऊपर से सभी मुसलमानों के शुभ्‍‍ाचि‍न्‍‍तक दिखना चाहते हैं। बीते सप्ताह बिहार में गजब का नजारा देखने में आया। एक असली फोटो ने दंगल-सी हालत पैदा कर दी। बिहार में भारतीय जनता पार्टी और जनता दल युनाईटेड मिल-जुलकर सरकार चला रहे हैं। तय है कि दोनों पार्टियों ने एकजुट होकर विधान सभा चुनाव लडा था और लालू प्रसाद यादव का पत्ता साफ करने में सफलता पायी थी। दोनों पार्टियों के नेता एक-दूसरे के अहसानमंद थे। नीतीश कुमार सफलता पूर्वक साढे चार साल से मुख्यमंत्री पद की कमान संभाले चले आ रहे हैं और कहीं न कहीं उनके मन में यह बात बैठ गयी है कि उन्होंने बिहार के लिए इतना कुछ कर दिया है कि लोग अब सिर्फ उनको देखकर ही सिर पर खडा अगला विधान सभा चुनाव जितवा देंगे। दूसरी तरफ भाजपा वालों ने भी कोई कच्ची गोलियां नहीं खेली हैं। भाजपा के थके-हारे नेता लालकृष्ण आडवाणी भले ही बिहार का अगला विधान सभा चुनाव जनता दल युनाईटेड के साथ लडने की मंशा रखते हों पर नये भाजपा कप्तान नितिन गडकरी और गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी कोई अलग-सी खिचडी पकाने के फेर में हैं। भाजपा के तेजतर्रार नेता नरेंद्र मोदी अपने किस्म की राजनीति करने में विश्वास रखते हैं। बीते सप्ताह उन्होंने बिहार की जमीन पर पैर रखने से पहले बिहार के अखबारों में ऐसे विज्ञापन प्रकाशित करवा दिये कि नीतीश के तन-बदन में आग लग गयी। उस पुरानी फोटो ने उन्हें आगबबूला कर दिया जिसमें वे और नरेंद्र मोदी एक दूसरे का हाथ थामे विजयी मुद्रा में मुस्करा रहे थे। यह फोटो फर्जी नहीं असली थी। पर नीतीश कुमार के तो होश ही उड गये। उन्हें लगा कि भाजपा वाले उनके मुस्लिम वोटों पर डाका डालने की साजिश को अंजाम देने की फिराक में हैं। बिहार के मुस्लिम मतदाता दो यारों की लुभावनी फोटो को देखकर बहक न जाएं इसलिए नीतीश कुमार ने हंगामा खडा कर दिया। गुजरात के नरेंद्र मोदी की यह मजाल कि वे बिहार में आकर तमाम अखबारों में ऐसी तस्वीर और ऐसी तकरीर छपवा दें जिससे उनके वोट बैंक पर नकारात्मक असर पडे और मुसलमान भाई बिचक जाएं। सवाल यह उठता है कि अगर नीतीश कुमार की निगाह में मोदी इतने साम्प्रदायिक हैं तो उन्होंने चहकते हुए मोदी के हाथ को अपने हाथ में लेकर वो फोटो क्या सोच कर ख्‍ि‍ाचवायी थी? नीतिश कुमार के पास इतना बडा झूठ बोलने की गुंजाइश भी नहीं है कि वे कह सकें कि यह फोटो गोधरा कांड के पहले ि‍ख‍ंचवायी गयी थी। तय है नीतीश जब यह पोज दे रहे थे तब भी मोदी वही थे जो आज हैं। पर नीतीश बदल गये हैं। उन्हें बिहार के सोलह प्रतिशत मुस्लिम मतदाताओं के हाथ से निकल जाने का भय सताने लगा है। नरेंद्र मोदी के छपवाये गये विज्ञापन में यह भी कहा गया कि संकट की घडी में गुजरात ही था जिसने बिहार की सर्वाधिक सहायता की। नीतीश इस सच्चाई को भी नहीं झेल पाये। उन्हें लगा कि उनके दोनों गालों को थप्पडों से लाल कर दिया गया है। नरेंद्र मोदी कोई साधु-संत तो हैं नहीं कि अवसर का फायदा न उठायें। उन्होंने वही किया जो अभी तक दूसरे शातिर नेता करते चले आ रहे हैं।यह मुसलमानों का दुर्भाग्य है कि उन्हें इस देश की हर पार्टी ने अपने मकसद के लिए ही इस्तेमाल किया है। यह भी मुसलमानों की बदनसीबी ही है कि इस देश में ऐसे ‘दल‘ भी हैं जिनकी निगाह में अधिकांश मुसलमान गद्दार हैं। खाते हि‍ंदुस्तान की हैं और गाते पाकिस्तान की हैं। भारतीय मुसलमानों की छवि को बिगा‹डने में नेताओं का बहुत बडा हाथ है। मीडिया, लेखकों और चि‍न्‍‍तकों के एक वर्ग ने मुसलमानों की अनेक मनग‹ढंत छवियां बनाने और पेश करने में कोई कसर नहीं छोडी। हि‍ंदुस्तान के एक जाने-माने पत्रकार और लेखक तो यह मानते हैं कि आम मुसलमानों का तबका आठ-दस बच्चे पैदा करने में विश्वास रखता है। परिवार नियोजन से उसका कोई लेना-देना नहीं है। इनके बच्चे गली-कूचों की गंदगी में खेलते रहते हैं और यह लोग अंधेरी, बदबूदार गंदी बस्तियों में इतने रम गये हैं कि उनसे बाहर निकलने के लिए हाथ-पैर मारना नहीं चाहते। देश के अधिकांश मुसलमान अपनी औरतों और बच्चियों को आज भी आधुनिकता के उजाले और शिक्षा से दूर रखना चाहते हैं। अपने आपको कुछ ज्यादा जानकार समझने वालों का यह भी कहना है कि मुसलमान धर्म के आधार पर मतदान करते हैं और उनकी यही कोशिश रहती है कि उनका वोट मुस्लिम प्रत्याशी को ही जाए। भारतीय मुसलमानों के बारे में और भी कई ऐसी ऊटपटांग बातें समय-समय पर प्रचारित होती रहती हैं जिनका वास्तविकता से कोई लेना-देना नहीं होता। असली सच तो यह है कि अपने देश में कुछ राह भटके मुसलमानों के कारण पूरे मुसलमानों की शक की निगाह से देखने वालों की कमी नहीं है। नरेंद्र मोदी जैसे नेता इन्हीं ‘शकी‘ लोगों के नायक हैं। यह हकीकत है कि आप अगर किसी को शक की निगाह से देखेंगे तो वह भी आप पर विश्वास करने से कतराने लगेगा। आजादी के ६३ साल बाद भी मुसलमानों का बहुत बडा वर्ग एक अजीब कश्मकश के दौर से गुजर रहा है। उनमें एकजुटता का घोर अभाव है। किसी भी दल के नेता ने कभी भी मुस्लिमों के हालात सुधारने के प्रयास नहीं किये। मुसलमानों के पास अपना ऐसा कोई मुस्लिम नेता नहीं है जो वाकई ईमानदार हो। अगर मुस्लिम नेता नेकनीयत के साथ अपने समुदाय का नेतृत्व करते तो कोई भी तथाकथित विद्वान मुसलमानों की तरह-तरह की छवियां गढने की जुर्रत नहीं कर पाता। न ही ‘दलालों‘ को मुसलमानों की झूठी तरफदारी करने का कोई मौका मिलता।

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