Thursday, August 26, 2010
आस्था के बाजारीकरण का अखबारी तमाशा
तीस लाख से ऊपर की जनसंख्या वाला शहर नागपुर देश के बीचों-बीच एक गुलदस्ते की तरह सजा हुआ है इसलिए यह शहर देश का हृदय स्थल कहलाता है। अपनी लय में थिरकने वाले इस शहर की कई ऐसी खासियतें हैं जो इसे एक अलग और खास पहचान देती हैं। इस शहर से पिछले छियासठ वर्षों से एक दैनिक अखबार प्रकाशित होता चला आ रहा है। इस उम्रदराज अखबार को आज भी अपने पाठकों को बांधे रखने के लिए तरह-तरह की कलाबाजियों का सहारा लेना पड रहा है। बीते सप्ताह इस अखबार की ओर से मोतियों का प्रसाद बांट कर खूब प्रचार बटोरा गया। यह मोती कोई ऐसे-वैसे मोती नहीं थे! इन मोतियों के प्रसाद को बांटने से पहले कई दिनों तक अखबार और पोस्टर-होर्डिंग के माध्यम से प्रचार का जबरदस्त फंडा अपनाते हुए ऐलान किया गया कि नवभारत की ओर से साईं चरणों में सिद्ध पारिवारिक सुख समृद्धि के प्रतीक २१,००० मोती एवं पावन भभूत का नि:शुल्क वितरण किया जाने वाला है। इन मोतियों को जिन बिल्डरों समाज सेवकों, व्यापारियो, नेताओं और अन्य कारोबारियों ने सपत्नीक 'सिद्ध'(!) किया था उनकी तस्वीरे भी अखबार में छापी गयी थीं। साईं भक्तों को अधिक से अधिक संख्या में शहर के साईं मंदिर में पहुंच कर 'सिद्ध मोती' और 'भभूत' का प्रसाद ग्रहण करने के लिए आमंत्रित किया गया था। अखबार यह भी बताना नहीं भूला कि 'साईं भक्तों को मोती वितरण के पीछे का उद्देश्य घर-घर में समृद्धि और खुशहाली लाना है। यह मोती ना केवल साईं श्रद्धा के प्रतीक होंगे बल्कि इन्हें घर में रखने से हर तरह की खुशहाली की बरसात होगी। प्रसाद के रूप में वितरित होने वाले हर मोती के भीतर शांति और समृद्धि की गहराही छिपी हुई है। हजारों सीपों के बीच महासागर की अनंत गहराई में किसी एक सीप में एक मोती होता है। ऐसा मोती जब साईं चरणों में अपनी आराधना करके भक्त के पास पहुंचता है तो वह पारस पत्थर की तरह हो जाता है।'नागपुर के सबसे पुराने अखबार के कर्ताधर्ताओं ने एक नहीं पूरे इक्कीस हजार अनमोल मोतियों का 'प्रसाद' वितरित किया! वाकई यह कोई आसान काम नहीं था। महाराष्ट्र, मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ में अपनी पहुंच और साख की बदौलत एन.बी.बाण्ड का जाल फैलाकर लाखों लोगों के साथ विश्वासघात कर उनके सपने छलनी कर चुके नवभारत वालों के लिए कुछ भी मुश्किल नहीं है। आज जब देशभर में लोगों की भावनाओं को भुनाने और आस्था के साथ खिलवाड करने का खेल चल रहा है तो ऐसे में अखबार वाले भी पीछे रहने को तैयार नहीं हैं। तरह-तरह के दावों और भरपूर प्रचार के बाद जब शहर में स्थित साईं मंदिर में भभूत के साथ मोतियों का प्रसाद बांटा गया तब जो अफरा-तफरी मची उससे अखबार मालिक बेहद आनंदित हुए और उन्हें तो जैसे मनचाही मुराद मिल गयी। साईं का प्रसाद पाने के लिए भीड ऐसे टूट पडी कि पुलिस के लिए भी संभालना मुश्किल हो गया। महिलाएं और बच्चे भीड में बुरी तरह दबकर रोने और चिल्लाने लगे। कई महिलाएं बच्चों को गोद में लेकर घंटों रोती बिलखती रहीं। बहुतेरियों ने बडी मुश्किल से खुद को भीड से सुरक्षित निकाला और अपने घर पहुंच कर राहत की सांस ली। साईं मंदिर में गुरुवार के दिन वैसे भी भारी भीड रहती है और प्रसाद बांटने के लिए जानबूझकर ही इसी दिन को चुना गया था! मोती इक्कीस हजार थे और बुलावा लाखों को दिया गया इसलिए धक्का-मुक्की और पटका-पटकी के ऐसे भयावह हालात बन गये कि लोग मौत के मुंह में भी समा सकते थे। परंतु पुलिसकर्मियों की जबरदस्त मुस्तैदी और साईंबाबा की कृपा से किसी की जान नहीं गयी। पर यह कहां का न्याय है कि आपके पास 'प्रसाद' की मात्रा कम हो और आप पूरे शहर को ही नहीं पूरे प्रदेश को न्योता दे दें और लोगों की जान खतरे में डाल दें? सर्वधर्म समभाव का संदेश देने वाले शिर्डी के साईंबाबा के भक्तों की संख्या आज करोडों में है पर कुछ लोग भक्ति और आस्था के बाजारीकरण पर उतर आये हैं। साईं ट्रस्ट भी इस मामले में पीछे नहीं है। उसने तो लंदन में १९ सितंबर को आयोजित होने जा रहे साईं सम्मेलन में साईं पादुकाओं को ले जाने का दृढ निश्चय कर लिया था। साईं के सजग भक्तों को ट्रस्ट के धंधेबाज धुरंधरों की नीयत समझ में आ गयी और ऐसा धुआंधार विरोध शुरू हुआ कि ट्रस्टियों को अपना फैसला वापस लेना पडा। साईं भक्तों का कहना है कि सच्चा साईं भक्त खुद शिर्डी आकर पादुकाओं का दर्शन करता है। साईं की निशानी लोगों के घर नहीं जाती। जिनकी साईं के प्रति आस्था है वे हजारों मील का सफर तय कर शिर्डी पहुंच ही जाते हैं। इसके लिए किसी भी तरह के प्रकार के फंडे की कोई जरूरत नहीं है। यह तथ्य भी याद रखा जाना चाहिए कि जिस दिन नवभारत के द्वारा सिद्ध मोतियों का प्रसाद बांटा गया उसके कुछ ही घंटों बाद शहर के कुछ तथाकथित साईं भक्तों की एक जमात ने एक अजब-गजब पराक्रम कर डाला। नागपुर में एक इलाका है जो यशोधरा नगर कहलाता है। यहां पर एक प्लॉट काफी दिनों से खाली पडा था। कुछ लोगों के मन में यह विचार आया कि क्यों न यहां पर साईंबाबा की मूर्ति स्थापित कर मंदिर बना दिया जाए। विचार को साकार करने के लिए फौरन साईंबाबा की मूर्ति खरीद ली गयी और फिर उसे स्थापित कर दिया गया। मूर्ति को देखने और नमन करने के लिए लोगों की भीड उमड पडी। प्लॉट खाली जरूर पडा था पर लावारिस नहीं था। जैसे ही प्लॉट के मालिक नवाज अंसारी अहमद को इसकी खबर लगी तो उसके पैरों के तले की जमीन ही खिसक गयी। वह भागा-भागा अपने प्लॉट पर पहुंचा। उसने मूर्ति की स्थापना करने वालों को बताया कि श्रीमानजी आप जिस जमीन पर आप मंदिर बनाने जा रहे हैं उसका स्वामी और कोई नहीं मैं ही हूं। कृपया आप मूर्ति हटा लें। पर उसकी बात को अनसुना कर दिया गया और देखते ही देखते वातावरण तनावपूर्ण हो गया। बिगडते हालात की खबर पुलिस तक भी जा पहुंची और उसने किसी तरह से लोगों को समझा-बुझाकर तनावपूर्ण स्थिति को नियंत्रित करने में सफलता पायी।इस देश में धर्म, आस्था और विश्वास के साथ जितना विश्वासघात हुआ है उतना शायद ही और किसी के साथ हुआ हो। दैनिक नवभारत वाले जब साईंबाबा के नाम से मोती और भभूत बांटने की तैयारियों में लगे थे और धडाधड येन-केन-प्रकारेण अपने पाठकों को लुभाने में जुटे थे तब मेरे मन में लगातार यह विचार आ रहा था कि यह कैसा तमाशा है! इस पर अगर मैंने कलम नहीं चलायी तो उन साईं भक्तों के साथ घोर अन्याय होगा जो आज इस सच से दूर हैं कि साईबाबा के नाम पर भी बाजार सजने लगे हैं। माल बेचा जाने लगा है और अपनी डूबती साख को फिर से जमाने के हथकंडे अपनाये जाने लगे हैं। अभी तक तो जो कर्म ढोंगी साधु संत किया करते थे वो कर्म अब मीडिया भी करने लगा है... और मीडिया की देखा-देखी और 'चेहरे' पर कमर कसने लगे हैं...।
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ha...ha..ha.... 'navbharat' ke is naye charitra par bhi sansaa jana chahiye.. ise anek akhabar hai jo khabaro kee badaulat nhee bik paa rahe. ab ye bechare 'bhabhoot' ka sahara le rahe. kal ko ''bhoot'' ka sahara lene aur yahee raftar rahee to kal ko ''bhootpoorv'' bhi ho jayenge. badhai, is sahsik lekhan k liye.
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