Thursday, November 11, 2010

अब नहीं तो कब सुधरोगे?

वो नेता ही क्या जो काला-पीला न करे। इस कलाकारी की बदौलत झोली में बरसने वाली काली कमायी को ठिकाने लगाने के लिए भी बडा दिमाग लगाना पडता है। जो अक्ल के कच्चे होते हैं वो जल्द ही मीडिया और कानूनी फंदे के शिकार हो जाते हैं। इसलिए अपने देश के अधिकांश शातिर नेता बहुत दूर की सोचकर चलते हैं। भ्रष्टाचार की माया को ऐसे-ऐसे ठिकाने लगाते हैं कि कानून भी ताकता रह जाता है। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण को इसलिए कुर्सी खोनी पडी क्योंकि उनके ठिकाने उजागर हो गये और विरोधी पार्टी के नेताओं और मीडिया ने शोर मचाना शुरू कर दिया। महाराष्ट्र में कौन-सा नेता कितना ईमानदार है यह अपने आप में गहन शोध का मुद्दा है। तभी तो जैसे ही आदर्श हाऊसिं‍ग सोसाइटी भ्रष्टाचार में मुख्यमंत्री की संलिप्तता का पर्दाफाश हुआ वैसे ही केंद्रीय मंत्री विलासराव देशमुख, सुशील कुमार शिं‍दे से लेकर महाराष्ट्र के कद्दावर नेता-मंत्री नारायण राणे और अनिल देशमुख जैसों के नाम भी प्रकट होने शुरू हो गये। यह कहावत भी पूरी तरह से चरितार्थ हो गयी कि राजनीति के हमाम में लगभग सब नंगे हैं। जिसके चेहरे से नकाब उठाओ वही ऊपर से नीचे तक भ्रष्टाचार में डूबा नजर आता है। भारतीय जनता पार्टी के नेताओं ने तो कमर ही कस डाली कि कांग्रेस की ऐसी की तैसी करके ही दम लेना है परंतु मनचाही बात बन नहीं पायी। कांगे्स ने भाजपा के अध्यक्ष नितिन गडकरी के सौदागर साथी अजय संचेती और उनके ड्राइवर के नाम पर आदर्श सोसायटी में झटके गये फ्लैटों का धमाका कर दिया। इस धमाके का कमाल ही कहेंगे कि भाजपा की बोलती ही बंद हो गयी। देश की जागरूक जनता ने भी जान-समझ लिया कि हमाम में तो ये सभी नंगे हैं फिर भी आपस में पंगे लेते रहते हैं और जनता को बेवकूफ बनाते रहते हैं! अब गडकरी यह तो कहने से रहे कि मैं अजय संचेती को नहीं जानता। मेरा उससे कोई लेना-देना नहीं है। यदि अजय ने आदर्श घोटाले में साझेदारी की है तो तय है कि 'आका' की बदौलत ही। बताते हैं कि भाजपा अध्यक्ष के खजाने में ऐसे रत्नों की भरमार है। इनकी शिनाख्त सिर्फ जौहरी ही कर सकता है। सरकार-वरकार के बस की बात नहीं है। यह भी मुद्दे की बात है कि अगर गडकरी एंड कंपनी पर लगा आरोप सिद्ध हो जाता है तो सवाल यह भी उठेगा कि जिस तरह से मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण की कुर्सी छीन ली गयी वैसा ही कुछ भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी के साथ भी हो पायेगा?अपनी सास, साले-साली को कारगिल के शहीदों के हिस्से के करोडों रुपये के फ्लैट मुफ्त के भाव दिलवाने वाले अशोक चव्हाण अगर राजनीति के असली कलाकार होते तो ऐसी भूल नहीं करते जो फौरन पकड में आ जाए। अपने ड्राइवर, रसोइये, विश्वस्त चमचे आदि के नाम करोडों की सम्पति खरीद कर चैन की बंसी बजा सकते थे जैसे कि दूसरे बजा रहे हैं। वैसे तो ऐसा लगभग सभी भ्रष्ट नेता करते हैं पर महाराष्ट्र में इस परंपरा को बडे ही बेजोड तरीके से निभाया जाता है। क्या मजाल कि कोई सिद्ध कर दे कि नेताजी ने कहां-कहां पर अरबों-खरबों का निवेश कर रखा है, संपत्तियां खरीद रखी हैं और टुकडों पर पलने वाले तरह-तरह के माफिया और गुंडे-मवाली पाल रखे हैं।देश और दुनिया में महाराष्ट्र का नाम जिस सम्मान के साथ लिया जाता है वैसी ही सम्मानजनक स्थिति कभी यहां के नेताओं की भी थी। लगता है अब वो दिन लद गये हैं। राजनेताओं को इज्जत और शोहरत से ज्यादा दौलत और बदनामी लुभाने लगी है। सत्ता की ताकत की बदौलत हथियाये गये स्कूलों-कालेजों, शक्कर कारखानों और दारू की फैक्टरियों से बरसने वाली अपार दौलत से जब इनका पेट नहीं भरा तो इन्होंने खनिज और भूमाफियाओं से दोस्तियां गांठने में भी परहेज नहीं किया। बहुतेरों का एक ही मकसद रहा है जितना हो सके उतना बटोर लो। कल का क्या भरोसा?इसी चक्कर में बुरी तरह से फंसे अशोक चव्हाण चलते कर दिये गये। चव्हाण साहब ने बडी मेहनत से विधानसभा चुनाव जीता था। साल भर पहले की ही तो बात है जब उन्होंने प्रदेश भर के चुनिं‍दा अखबारों में पूरे-पूरे पन्नों के लेख छपवाये थे। फोटो भी खूब छपी थीं। जिन अखबार वालों को पेड न्यूज की बख्शीश नहीं मिली थी वे आग बबूला भी हो गये थे। पर मुख्यमंत्री का बाल भी बांका कर पाना उनके वश की बात नहीं थी। थैलियां देकर अपनी तारीफ में लेख और न्यूज छपवाने के संगीन आरोप का मामला आखिरकार हाईकमान तक भी गया था पर अनसुना कर दिया गया, जैसे यह तो आम बात है। ऐसा तो हर बडा नेता करता है। दरअसल अशोक चव्हाण पर कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी और युवराज राहुल गांधी को बेहद विश्वास था। इसी विश्वास के चलते ही उन्हें दो वर्ष पूर्व महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनाया गया था। अशोक चव्हाण के साथ उनके पिताश्री शंकरराव चव्हाण की ईमानदार छवि भी जुडी हुई थी जिसे बेटे ने ध्वस्त कर दिया है। अशोक चव्हाण ने सोनिया गांधी और राहुल गांधी के विश्वास की भी धज्जियां उडायी हैं। तभी तो जैसे ही उनकी छुट्टी की गयी वैसे ही फौरन राहुल गांधी को कहना पडा कि अब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री का पद पूरी तरह से ईमानदार व्यक्ति को ही सौंपा जायेगा। राहुल गांधी के इस कथन से यह पीडा भी स्पष्ट झलकी कि महाराष्ट्र में ईमानदार कांग्रेसी नेताओं का टोटा पड गया है। पृथ्वीराज चव्हाण महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री बना दिये गये हैं। पृथ्वीराज दिल्ली की राजनीति के चर्चित योद्धा हैं। वे दो बार १९९१ और १९९६ में महाराष्ट्र की कराड लोकसभा सीट से चुनाव जीत कर जननेता होने का सबूत दे चुके हैं। महाराष्ट्र से ही राज्यसभा सदस्य चुने गये पृथ्वीराज को भी सोनिया गांधी का खासमखास माना जाता है। केंद्रीय मंत्रिमंडल में उनके पास राज्यमंत्री की हैसियत से पांच महत्वपूर्ण विभाग थे जिनमें प्रधानमंत्री कार्यालय के अलावा विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी मंत्रालय, कार्मिक, पेंशन मंत्रालय और संसदीय कार्यमंत्रालय शामिल थे। तय है कि उनकी भरपूर योग्यता को देखते हुए उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री तो बनाया ही गया है, साथ ही महाराष्ट्र के नामी-गिरामी सत्तालोलुप और भ्रष्टाचारी कांग्रेसी नेताओं को चेताया और सुझाया गया है कि अगर तुम लोगों में काबिलियत होती तो दिल्ली से मुख्यमंत्री भेजने की नौबत ही न आती। अभी भी वक्त है... होश में आओ... सुधर जाओ...। आज दिल्ली से मुख्यमंत्री भेजा गया है कल को मंत्री भी भेजे जा सकते हैं...।

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