Thursday, January 27, 2011
हत्यारा मनोरंजन
देश के हर सजग नागरिक को पता है कि चीन भारतवर्ष के प्रति कटुता और शत्रुता की भावना रखता है। पर हमारे देश के उदारवादी हुक्मरान इस जगजाहिर हकीकत को भुला चुके हैं। दुश्मन देश की तिजोरियों को भरने के लिए हिंदुस्तान के दरवाजे पूरी तरह से खोल दिये गये हैं। चीन यहां पर हुछ भी बेचने और खपाने के लिए आज़ाद है। कानून भी उसका कुछ नहीं बिगाड सकता। यह चीन ही है जिसने भारत के घरेलू उद्योग में ऐसी जबरदस्त सेंध लगायी है कि यहां के छोटे उद्योगपतियों का तो जीना ही हराम हो गया है। जहां देखो वहां चीन का सामान बिक रहा है और सस्ता होने के कारण लोग भी बडे फख्र के साथ बेच और खरीद रहे हैं। विदेशी खिलौने बच्चों को इतने सुहाते हैं कि वे देशी खिलौने को हाथ भी नहीं लगाते। जब से अपने देश में चीनी खिलौने बिकने शुरू हुए हैं तब से लेकर आज तक कई बच्चों को अपने प्राण गंवाने पडे हैं। ग्रामीण इलाकों में तो इन खिलौनों ने अनेकों बार कहर ढाया है। फिर भी लोग हैं कि इनमें बच्चों का मनोरंजन ढूढते हैं।खिलौनों की बिक्री और खरीदी का रोग तो पुराना पड चुका है। अब तो पतंग उडाने के लिए भी चीन की डोर यानी धागा आने लगा है। इस बार की मकर संक्रांति के मौके पर इस डोर ने कइयों की जीवन लीला ही समाप्त कर डाली। अकेले नागपुर जिले में ही चीनी मंजे ने सात-आठ प्राणियों के प्राण हर लिये और घायल होने वालों का आंकडा तीस के पार जा पहुंचा। पुणे की कंपनी में काम करने वाला एक सॉफ्टवेयर इंजिनियर खरीददारी के लिए मोटर साइकिल से बाजार जा रहा था। उसकी शीघ्र ही शादी होने वाली थी। हर तरफ पतंगबाजी का उत्सव था। पतंगबाज घरों की छतों और मैदानों में चीनी डोर से पतंग उडा रहे थे। एक पतंग की डोर अचानक युवक के गले तक पहुंची और फिर उसकी तेज धार ने उसका गला ही काट डाला। युवक कुछ भी समझ नहीं पाया। घायल अवस्था में उसे अस्पताल में भर्ती कराया गया जहां उसकी मौत हो गयी। किसी के मनोरंजन ने किसी की जान ले ली और एक हंसता-खेलता परिवार मातम के आगोश में सिमट कर रह गया। उस इंजिनियर की तरह और भी जो लोग चीनी मंजे की बलि च‹ढे उनका आखिर क्या कसूर था? पंजाब के शहर अमृतसर में भी चीनी मंजे ने कइयों को घायल किया। एक राह चलते व्यक्ति की गला कट जाने के कारण मौत हो गयी। चीनी मंजे ने पतंगबाजों का भले ही भरपूर मनोरंजन किया हो पर बेकसूरों की जिस तरह से जानें गयीं उसकी चिंता किसी ने भी नहीं जतायी। बता दें कि चीनी मंजे में लोहे के चूर्ण का इस्तेमाल होता है और यह इतना धारदार होता है कि जिस भी गले को छूता है वह लहूलुहान हुए बिना नहीं रहता। गले की नसें भी कट-फट जाती हैं। जब खून बहना शुरू होता है तो रुकने का नाम ही नहीं लेता। घायल व्यक्ति को यदि फौरन अस्पताल नहीं पहुंचाया गया तो मौके पर ही उसकी जान चली जाती है। इसके शिकार हुए व्यक्ति को सोचने समझने का मौका भी नहीं मिल पाता। अमृतसर में तो चीनी डोर को बेचने के आरोप में कुछ लोगों को गिरफ्तार भी किया गया। पर नागपुर में बेचने और उडाने वालों को पूरी आजादी थी। इस मामले में गुजरात सरकार की तारीफ करनी पडेगी। वहां पर चीनी धागे को बेचने पर पूरी तरह से प्रतिबंध लगाया गया। अमृतसर में जो गिरफ्तारियां हुई वे भी खानापूर्ति जैसी थीं। यह गिरफ्तारियां धारा १८८ के तहत हुई। जिसके यकीनन कोई मायने नहीं होते क्योंकि इसमें फौरन जमानत मिल जाती है। नागपुर, अमृतसर, दिल्ली, पानीपत, करनाल, सोनीपत आदि में जिन पतंगबाजों के हाथों की खूनी डोर की वजह से राह चलते लोग घायल हुए और मारे गये उनका बाल भी बांका नहीं हुआ। ऐसा भी नहीं है कि चीनी डोर की जानलेवा धार की खबर प्रशासन को नहीं थी। पर अपने यहां का प्रशासन तो अधिकतर वो लोग चलाते हैं जिन्हें तब दर्द होता है जब उनके अपनों की जान जाती है। नागरिकों की सुरक्षा की चिंता न तो शासकों को रहती है और न ही सरकारी नुमाइंदों को। यह सच्चाई भी बेहद चौंकाने वाली है कि चीन में इस हत्यारी डोर पर प्रतिबंध लगा हुआ है। हिंदुस्तान में प्रतिबंध होने के बाद भी कितनी आजादी के साथ तरह-तरह के सामान बिकते हैं इसकी तो हर किसी को खबर है। ऐसे में चीन को दोष देना बेमानी है अभी तो चीन ने पतंग की डोर भेजी है। थोडा और सब्र कीजिए वहां से पिस्टलें, बंदूकें और बम-बारूद के जखीरे भी आने लगेंगे और बाजार में बिकते नजर आयेंगे। अंधे-बहरों के देश में यह तमाशा पता नहीं कैसे-कैसे रंग लायेगा।
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