Thursday, January 6, 2011
देवता बीमार है
२०१० की विदायी तो हो चुकी है परंतु उसके द्वारा छोडे गये कई सवालों के जवाब २०११ को ही देने हैं। सबसे बडा सवाल भ्रष्टाचार का है जिसने देश की नस-नस को जकड लिया है। सियासियों और नौकरशाहों में ईमानदारों की तलाश कर पाना बेहद मुश्किल हो गया है। जिसे देखो वही कटघरे में खडा नजर आ रहा है। भ्रष्टाचार के खिलाफ मुहिम चलाने वाले भी मुखौटे में कैद नजर आते हैं। ऐसे विकट दौर में कुछ चेहरे हैं जो तूफानों में आशा के दीप थामे हुए हैं। बिहार चुनाव में ऐतिहासिक जीत दर्ज हासिल करने वाले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने भ्रष्ट नौकरशाहों की अक्ल ठिकाने लगाने के लिए अपने हाथ में हंटर थाम लिया है। उनका दावा है कि यह हंटर किसी भी भ्रष्ट नौकरशाह को नहीं बख्शेगा। अपने पिछले शासन काल में अफसरशाही की मनमानी और भ्रष्ट आचरण से रूबरू होने के बाद ही उन्होंने यह अभूतपूर्व निर्णय लिया है कि चाहे कुछ भी हो जाए पर बिहार में भ्रष्टाचारियों को पनपने और जीने नहीं देंगे। देश का प्रदेश बिहार लालू मार्का नेताओं के शोषण और लूटपाट का वर्षों तक शिकार होता रहा है। जनता ने ऐसे भ्रष्ट नेताओं को पूरी तरह से नकार कर जब नीतीश कुमार को बागडोर सौंपी है तो वे भी कुछ कर गुजरना चाहते हैं। वे जानते हैं कि बिहार को बरबाद करने में नौकरशाही ने भी कोई कसर बाकी नहीं रखी। राजनेताओं और अफसरों ने एकजुट होकर प्रदेश को लूटा-खसोटा है। जनता को हर काम के लिए रिश्वत देनी पडती है। नीचे से ऊपर तक सबसे रेट तय हैं। नीतीश कुमार के द्वारा भ्रष्टाचारियों पर लगाम कसने की मुहिम के चलते सरकारी महकमों में हडकंप-सा मच गया है। प्रदेश में भ्रष्टाचार की परंपरा को निभाने वाले अफसरों और कर्मचारियों को धडाधड रंगे हाथ पकडने के अभियान में अभूतपूर्व तेजी लायी जा चुकी है। नीतीश के तेवर बता रहे हैं कि उन्होंने कथनी और करनी में एकरूपता लाने की कसम खा ली है। जिन्हें दबोचा जा रहा है उनकी संपत्तियों को जब्त कर वहां पर स्कूल, कॉलेज और अस्पताल खोले जा रहे हैं। नीतीश सरकार भ्रष्ट नौकरशाहों की शिनाख्त करने के बाद उनकी सूचियां बनाने में भी दिमाग खपा रही है क्योंकि भ्रष्टाचार की बदौलत करोडपति और अरबपति बनने वालो की बहुत बडी संख्या है। सभी सरकारी अफसरों को अपनी संपत्ति की जानकारी देने के आदेश दे दिये गये हैं। साथ ही उन्हें हिदायत दी गयी है कि वे प्रतिवर्ष अपनी संपत्ति की जानकारी पेश करना न भूलें। जो लोग अपनी संपत्ति का खुलासा करने में आना-कानी कर रहे हैं उनके वेतन रोकने के सख्त निर्देश भी दे दिये गये हैं।कहते हैं कि दूसरों को सुधारने से पहले खुद का पाक-साफ होना निहायत जरूरी है। नीतीश कुमार ने भी अपनी तथा अपने बेटे की संपत्ति का ब्यौरा सार्वजनिक कर दिया है। नीतीश के तेवर अगर ठंडे नहीं प‹डे तो शीघ्र ही भ्रष्ट विधायकों और मंत्रियों की भी शामत आ सकती है। अपनी ही बिरादरी पर हंटर बरसाना और उसके होश ठिकाने लगाना आसान काम नहीं है। पर उन्हें इस अग्नि परीक्षा में उत्तीर्ण होकर दिखाना होगा। अन्यथा सब कुछ तमाशा बनकर रह जायेगा। भ्रष्टाचार के खिलाफ नीतीश की पहल अगर रंग लायी तो यकीनन बिहार का चेहरा-मोहरा बदलने में समय नहीं लगेगा। बिहार तेजी से विकास के पथ पर दौडता नजर आयेगा और देश के दूसरे राज्यों के मुखिया भी अपने आप को बदलने को विवश हो जाएंगे। सबको खबर है कि देश के साथ-साथ लगभग हर प्रदेश भ्रष्टाचार के रोग के चंगुल में जकडा हुआ है। यही वो बीमारी है जिसने हिंदूस्तान को लगभग खोखला करके रख दिया है। भारतीय जनता पार्टी के सांसद रह चुके फिल्म अभिनेता धर्मेंद्र से जब यह पूछा गया कि क्या वे फिर से राजनीति में सक्रिय होना चाहेंगे? उनका जवाब था कि कौन उल्लू का पट्ठा चुनावी राजनीति में लौटेगा। तय है कि उम्रदराज नायक ने राजनीति के गंदे चेहरे को इतने करीब से देखा और समझा है कि उसे राजनीति से ही घृणा हो गयी है। उन जैसे और भी न जाने कितने हैं जिनके लिए राजनीति के रंग-ढंग वेश्या से भी बदतर हैं। वेश्या का तो कहीं न कहीं कोई ईमान धर्म होता है पर राजनीति का तो कोई ईमान-धर्म ही नहीं रहा। अभिनेता का यह भी मानना है कि आज भारत माता को मां नहीं समझा जाता। जिस दिन सियासी दलों ने भारत माता को अपनी मां समझकर इसकी सेवा शुरू कर दी, देश अपने आप स्वर्ग बन जायेगा। अक्सर यह सोचकर मन दहल जाता है कि यह कैसा राष्ट्र है और कैसे-कैसे इसके कर्ताधर्ता हैं। एक दूरसंचार मंत्री हजारों करोड का घोटाला बडी आसानी से कर गुजरता है और प्रधान मंत्री की चुप्पी पर सुप्रीम कोर्ट को सवाल उठाना पडता है? विश्व के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश के कर्णधारों की अकर्मणयता और बेबसी यह पंक्तियां एकदम सटीक बैठती हैं: ''आस्था का जिस्म घायल, रूह तक बेजार हैक्या करे कोई दुआ, जब देवता बीमार है।''यकीनन अपने देश के बडे विचित्र हालात बन चुके हैं। घपलेबाजों ने आसमान का भी सीना चीर कर रख दिया है। यहां जब एक मधु कोडा पकड में आता है तो फौरन चार हजार करोड की हेराफेरी सामने आती है। राष्ट्रमंडल खेलों में हुआ आठ हजार करोड से अधिक का घोटाला देशवासियों के मुंह पर तमाचा-सा जड देता है और चीख-चीख कर बताता है कि यह देश राजनीति के खिलाडियों के हाथों की कठपुतली बन चुका है। ऐसी न जाने कितनी हेराफेरियां होती रहती हैं। एकाध का ही पर्दाफाश हो पाता है बाकी मौज उडाते रहते हैं। भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों की जडों को काटने के लिए कोई सामने नहीं आता। ऐसे में नीतीश कुमार ने उम्मीद तो जगायी है। देखते हैं क्या होता है...।
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