Thursday, January 20, 2011

बापू के सपनों को साकार करने वाला गांव

क्या आप भारतवर्ष में किसी ऐसे गांव की कल्पना कर सकते हैं जहां के लोगों का गरीबी, भुखमरी, बेरोजगारी, भ्रष्टाचार, अपराध और अपराधियों से दूर-दूर तक नाता न हो? आपको इस सवाल के जवाब के लिए काफी देर तक माथा-पच्ची करनी पड सकती है तब भी जरूरी नहीं कि आप किसी ऐसे गांव का नाम बता सकें। भारत देश के प्रदेश महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में एक गांव है जिसका नाम है हिवरे बाजार। यह गांव वाकई देश की शान है जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के स्वराज, अपना राज के सपने को साकार किया है। महात्मा गांधी कहा करते थे कि असली भारतवर्ष गांवों में बसता है पर आज देश के अधिकांश ग्रामों की बदहाली किसी से छिपी नहीं है। देश के अन्नदाता को बंधुआ मजदूर की जिं‍दगी जीनी पड रही है। रोजी-रोटी के लिए शहरों की तरफ पलायन करना पडता है। सूदखोरों और शोषकों ने गांव के गांव हथिया लिये हैं। हिवरे बाजार का चेहरा भी कभी बेहद बदरंग था। इस गांव की शक्ल पिछले बारह साल के अंदर ऐसी बदली है कि गांववासी हिवरे बाजार को मंदिर मानते हैं। साफ सुथरे पेय जल और सिं‍चाई साधनों से भरपूर इस गांव की सडकों पर गंदगी का नामोनिशान नहीं है। आपसी सद्भाव और एकता के तो कहने ही क्या...। यहां एक मात्र मुस्लिम परिवार रहता है उसके लिए भी गांव वालों ने मस्जिद बनवायी है। गरीबी, कुपोषण, बेरोजगारी और अशिक्षा ने यहां से कब का पलायन कर लिया है। हिवरे बाजार का चेहरा-मोहरा बदलने में जिस महापुरुष की प्रेरणा का ही एक मात्र योगदान है, वे हैं समाज सुधारक अन्ना हजारे। भ्रष्टाचार के खिलाफ खुली जंग लडने वाले अन्ना हजारे अपने मूल गांव रालेगन सिद्धी का अभूतपूर्व कायाकल्प कर देश और दुनिया को दिखा चुके हैं कि महात्मा गांधी के असली अनुयायी होने के क्या मायने हैं। एक निच्छल और ईमानदार व्यक्ति की पहल ही ऐसा परिवर्तन ला सकती है जिससे सोये हुए लोग जाग सकते हैं और कुछ नया कर सकते हैं। अपने देश में ऐसी आदर्श शख्सियतों का नितांत अभाव है जिनसे युवा प्रेरणा ले सकें। अन्ना हजारे हिवरे बाजार के युवकों के प्रेरणा स्त्रोत बने और युवकों ने अपने गांव की तकदीर बदलने का फैसला कर लिया। कुछ जागरूक युवकों की निगाह से यह सच्चाई छिपी नहीं थी कि उनका गांव अनेकानेक समस्याओं से जूझ रहा है। नेताओं ने पूरी तरह से आंखें मूंद ली थीं। हर कोई अपना घर भरने में लगा था। शिक्षक स्कूल से गायब रहते थे। बच्चों को पढाने-लिखाने की बजाय शराब के नशे में डूबे रहना उनकी आदत बन चुका था। हालात इतने बदतर हो गये थे कि नशेडी स्कूल मास्टर बच्चों से ही शराब बुलाकर पीते और स्कूल में ढेर हो जाते। युवकों ने अपने दिल की बात बुजुर्गों को बतायी। पहले तो वे तैयार नहीं हुए। बहुत समझाने पर हिवरे बाजार की ग्राम पंचायत की सत्ता एक वर्ष के लिए उन्हें सौंपी गयी। युवकों ने एक ही वर्ष में बुजुर्गों के साथ-साथ तमाम गांववासियों का दिल भी जीत लिया। पिछले बारह वर्षों से हिवरे बाजार की सत्ता युवकों के हाथ में है।आज की तारीख में हिवरे बाजार एक ऐसा आदर्श गांव बन चुका है जिससे दूसरे गांव वाले भी सीख लेते हैं। शिक्षकों ने नशे से तौबा कर ली है और वे बच्चों को दिल लगाकर पढाते हैं। हिवरे बाजार में सभी महत्वपूर्ण निर्णय मिल-बैठकर लिये जाते हैं। ग्राम सभा में हर व्यक्ति की बात सुनी जाती है। महिलाओं को विशेष प्राथमिकता दी जाती है। ग्रामवासियों को पूरी ईमानदारी के साथ राशन उपलब्ध करवाया जाता है और अफसर रिश्वत मांगने की जुर्रत नहीं करते। गांव के हर आदमी को अपने गांव में ही काम मिलने लगा है और पलायन की बीमारी का नामोनिशान मिट चुका है। पहले जहां प्रति व्यक्ति सालाना आय मात्र आठ सौ रुपये थी आज वह ब‹ढकर अट्टाईस हजार रुपये तक पहुंच गयी है। यानी चार व्यक्तियों का परिवार साल भर में बडे आराम से एक लाख से ऊपर कमा लेता है। इस गांव में लाखों हरे-भरे पेडों की कतारें देखकर बाहर से आने वाला कोई भी शख्स आश्चर्य चकित हुए बिना नहीं रहता। गांव के इस खुशहाल और आदर्श रूप ने बाहरी लोगों को भी आकर्षित करना शुरू कर दिया है। लोग यहां आकर बसना चाहते हैं। पर गांव वालों का फैसला है कि बाहरी लोगों को जमीन नहीं बेची जाएगी। हिवरे बाजार में विकास की गंगा बहाने वाले युवकों के पारदर्शी कामकाज का ही परिणाम है कि यहां की ग्राम पंचायत के लिए चुनाव कराने की नौबत ही नहीं आती। जब चुनाव का समय आता है युवकों को निर्विरोध सत्ता सौंप दी जाती है। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता अरविं‍द केसरी इस गांव की पंचायत की सर्वजन हितकारी कार्य प्रणाली को सराहते हुए कहते हैं कि दिल्ली में बैठे सत्ताधीशों को हिवरे बाजार से सीख लेनी चाहिए। वे तो यहां तक कहते हैं कि इस गांव में पैर रखते ही मुझे ऐसा लगता है जैसे मैं किसी और देश में पहुंच गया हूं। पाठकों को यह पढ-सुनकर हैरानी भी हो सकती है कि एक समय ऐसा भी था जब यहां के पढे-लिखे युवक हिवरे बाजार का नाम लेने में भी शर्मिंदगी महसूस करते थे। जब देखो तब पुलिस वाले अपराधियों को दबोचने के लिए आ धमकते थे। पर आज न तो अपराध हैं और न ही अपराधी। इस गांव के हर बाशिं‍दे को अपने गांव पर इस कदर नाज़ है कि वह अपने नाम के साथ अपने गांव का नाम उपनाम के रूप में जोडकर गौरवान्वित होता है। भारतवर्ष की राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील के हाथों हिवरे बाजार को देश की सर्वश्रेष्ठ पंचायत का पुरस्कार भी हासिल हो चुका है।

No comments:

Post a Comment