Thursday, January 13, 2011

नैना...मधुमति और रूपम

एक औरत ने दिन-दहाडे बिहार के एक विधायक की हत्या कर दी। यह औरत एक शिक्षिका है। विधायक महोदय वर्षों से उसका यौन शोषण करते चले आ रहे थे। वह भी किन्हीं मजबूरियों के चलते शोषित होती चली आ रही थी। एक तरह से यह भी कह सकते हैं कि नेताजी के साथ बिस्तरबाजी करने से उसे खास परहेज नहीं था। दरअसल बात तब बिगडी जब अय्याश नेता उसकी जवान होती बेटी पर नजरें गढाने लगा। वह आग-बबूला हो उठी और उसने वो कदम उठा लिया जो अभी तक देह भोगी नेता उठाते चले आ रहे हैं। हां अभी तक तो हम और आपने सफेदपोश नेताओं के द्वारा निर्मम तरीके से मार दी गयी पत्नियों और प्रेमिकाओं की खबरें ही पढी हैं पर यहां तो एकदम उल्टा हो गया। अय्याश नेता को एक नारी ने मार गिराया। जिसने भी यह खबर पढी-सुनी वह हतप्रभ रह गया। भारतीय जनता पार्टी के विधायक की हत्यारी रूपम पाठक का कहना है कि उसने यह कदम बहुत सोच समझ कर उठाया है। महिला के अतीत के पन्नों में यह आश्चर्यजनक सच्चाई दर्ज है कि जब उसे पहली बार विधायक ने दबोचा और मनमानी की तो बदनामी के डर से उसने खामोशी ओडे रखी। फिर तो उसके साथ सिलसिला ही चल पडा। विधायक ने देह सुख की एवज में शिक्षिका को कई सुख सुविधाएं भी मुहैय्या करवायीं। रूपम पाठक एक पढी-लिखी महिला हैं, पढाती-लिखाती हैं। ऐसा तो हो नहीं सकता कि वह पुरुषों के नीयत को भांपना न जानती हों। कौनसी बदनामी के डर से वे तब चुप्पी साधे रहीं जब विधायक ने पहली बार उनकी अस्मत लूटी थी? उसे तो तभी शोर मचा देना चाहिए था जब नेता ने पहली बार उन पर हाथ डालने की जुर्रत की थी। इस किस्म के दुराचारी नेताओं के एक बार बडे हाथ फिर कभी पीछे नहीं हटते। उन्हें मां-बहन और बेटी की पहचान ही कहां होती है। वे तो सिर्फ अपनी भूख मिटाना जानते हैं। रूपम भी एक देह भोगी की हवस का जिस तरह से सहज निशाना बनी वो कोई नयी बात नहीं है। नयी बात तो यह है कि उसने हवसखोर नेता को मौत की नींद सुला कर एक नया अध्याय रचा है...।इसी देश में ऐसे राजनीतिज्ञ भी हुए हैं जिन्होंने बेरहमी की तमाम सीमाएं लांघने में कभी कोई संकोच नहीं किया। देश की राजधानी दिल्ली में कभी सुशील शर्मा का सिक्का चलता था। युवक कांग्रेस का नेता था वह। बहुत ऊपर तक पहुंच थी उसकी। सुशील शर्मा के वैभव और रसूख से प्रभावित होकर नैना साहनी नामक युवती ने पहले उससे प्यार किया फिर शादी भी कर ली। नैना साहनी उन महत्वाकांक्षी युवतियों में शामिल थी जो राजनीति में पांव जमाने के लिए नेताओं से सहर्ष रिश्ते जोडती हैं। २ जुलाई १९९५ के दिन युवा नेता सुशील शर्मा ने गोली मार कर नैना साहनी की हत्या कर दी। हत्या के बाद भी जब उसका जी नहीं भरा तो उसने उसके टुकडे-टुकडे कर तंदूर में मुर्गे की तरह भूनकर इंसानी दरिंदगी का वो चेहरा पेश किया जिसे देख-सुनकर लोग दहल उठे। दरअसल सुशील शर्मा को अपनी पत्नी पर शक हो गया था कि उसके दूसरे मर्दों के साथ भी अवैध संबंध हैं। कई युवतियों के साथ जिस्मानी ताल्लुकात रखने वाले सफेदपोश नेता ने सिर्फ शक के चलते ही अपनी पत्नी का वो हश्र कर डाला कि मानवता भी कांप उठी। इस कांड से उन महिलाओं को शिक्षा लेनी चाहिए थी जो राजनीति में किस्मत आजमाने के सपने देखा करती हैं और हर नेता को फरिश्ता मान लेती हैं। इस दानवी कृत्य के बाद भी न जाने कितनी महत्वाकांक्षी युवतियां सफेदपोश भेडि‍यों के चंगुल में फंस कर बर्बाद हुई और कई तो बे-मौत मारी भी गयीं।अभी ज्यादा वक्त नहीं गुजरा जब पूरे देश में उत्तरप्रदेश के एक अय्याश विधायक अमरमणि त्रिपाठी के मोहपाश में फंसकर जान गंवाने वाली मधुमिता का हैरतअंगेज तूफानी किस्सा गूंजा था। मधुमिता भी हद दर्जे की महत्वाकांक्षी युवती थी। वीर रस की कविताएं लिखा करती थी। खूबसूरत भी थी। देश के विभिन्न शहरों में होने वाले कवि सम्मेलनों में शिरकत करती रहती थी। ऐसे ही किसी कार्यक्रम में अमरमणि त्रिपाठी की नजर उस पर पडी और फिर दोनों को जिस्मानी तौर पर एक होने में देरी नहीं लगी। विधायक त्रिपाठी ने मधुमिता को ऐसे-ऐसे सपने दिखाये कि वह अपना अच्छा-बुरा भूल गयी। वह एक भावुक कवियत्री थी। राजनीति की अंधी गलियों में चलने वाले कर्मकांडो का भी उसे पूरा ज्ञान था। पर उसके मन में तो दौलत से खेलने और राजनीति के क्षेत्र में चमकने का सपना पल रहा था। खूबसूरत नारियों की देह को भोगने के अभ्यस्त हो चुके अमरमणि ने मधुमिता को दो बार गर्भवती बनाया और तीसरी बार जब फिर यह नौबत आयी तो मधुमिता विद्रोह पर उतर आयी। नेता संग सात फेरे लेने की जिद करने लगी। नेता के घर में पहले से ही एक पत्नी विराजमान थी। वैसे भी नेताओं को विद्रोह कभी रास नहीं आता। मधुमिता का काम तमाम कर दिया गया। देश भर में हो-हल्ला मचा। विधायक को जेल हो गयी। एक होनहार कवियत्री दास्तां बन कर रह गयी। कविता, शशि, शारदा, अनुपमा आदि... आदि न जाने कितनियों की कतार है जो राजनेताओं के करीब गयीं और फिर कब्र में पहुंचा दी गयीं। उनकी सारी महत्वाकांक्षाएं धरी की धरी रह गयीं। वे अगर अनपढ और गंवार होतीं तो बात आयी-गयी हो जाती। एकाध को छोडकर अधिकांश जानती समझती थीं कि वेश्या बन चुकी राजनीति के गलियारे में साधू कम और दुर्जन ज्यादा हैं। फिर भी उस जाल में जा उलझीं जिससे निकल पाना आसान नहीं होता। नैना भून दी गयी और रूपम ने भून डाला। रूपम, नैना, मधुमिता आदि के प्रति सहानुभूति दिखाने वालों की भीड को देखकर मन में यह विचार भी कौंधता है कि इनके प्रति इतनी अंधी सहानुभूति क्यों? क्या सिर्फ इसलिए कि यह महिलाएं हैं? क्या इनकी अमर्यादित भूल कोई मायने नहीं रखती? औरत होने भर से अगर यह दया और सहानुभूति की पात्र बनती रहेंगी तो बात और बिगडेगी।

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