Thursday, February 17, 2011

जा को राखे सोनिया...

देश के वर्तमान प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिं‍ह और पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी पर कोई कितने भी आरोप लगा ले पर उन्हें भ्रष्टाचारी तो कतई नहीं सिद्ध किया जा सकता। यह बात अलग है कि जब देश के प्रधानमंत्रियों का लेखा-जोखा इतिहास की किताब में दर्ज होगा तो यह भी जरूर लिखा जायेगा कि यह दोनों प्रधानमंत्री खुद तो पूरी तरह से ईमानदार थे पर इनकी छत्र छाया में भ्रष्टाचारियों ने जमकर देश को लूटा और चांदी काटी। दोनों ईमानदार शासक बेइमानों पर अंकुश नहीं लगा पाये। अटल बिहारी वाजपेयी के शासन काल में महाजनों और सौदागरों ने देश की लुटिया डुबोने में कोई कसर नहीं छोडी तो मनमोहन के काल में भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारी इतने बेलगाम हो गये कि उन्हें बडे से बडा भ्रष्टाचार करने में कोई शर्म नहीं आयी। ऐसा लगा जैसे भ्रष्टाचारियों में एक दूसरे को मात देने की प्रतिस्पर्धा चल रही हो। इसी प्रतिस्पर्धा के चक्कर में देश लुटता रहा और देश के मुखिया यह सफाई देते रहे कि हम बेबस हैं। इसमें हमारा कोई दोष नहीं है। अटल बिहारी वाजपेयी और मनमोहन सिं‍ह बेबस और मजबूर होने के बावजूद देश के प्रधानमंत्री बने रहे। देश चलता रहा। देश चल रहा है...। देशवासी यह भी जान समझ रहे हैं कि इस देश को प्रधानमंत्री नहीं सोनिया गांधी चला रही हैं। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी की गुडबुक में जिन लोगों के नाम हैं उनकी अच्छी-खासी मनमानी चल रही है। अगर यह कहें कि उनकी मनमानियों और मक्कारियों की जानबूझ कर अनदेखी की जा रही है तो गलत नहीं होगा। मनमोहन सरकार में एक केंद्रीय मंत्री हैं विलासराव देशमुख। यह महाशय महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री रह चुके हैं। वर्तमान में ग्रामीण विकास मंत्रालय की कमान संभाले हुए हैं। विलासराव देशमुख का नाम सोनिया गांधी की गुडबुक के पहले पन्ने पर दर्ज है इसलिए उनके सभी गुनाह नजर अंदाज कर दिये जाते हैं। वैसे भी अपने भक्तों पर देवता हमेशा मेहरबान रहते हैं। उन पर कोई आंच नहीं आने देते। विलासराव देशमुख जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री थे तब विदर्भ में किसानों की आत्महत्याओं ने जोर पकड लिया था। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता था जब किसानों की आत्महत्या की खबर पढने और सुनने को न मिलती रही हो। देश और दुनिया के लोग हैरान थे कि आखिर ऐसा क्यों हो रहा है? महाराष्ट्र तो खाते-पीते प्रदेशों में गिना जाता रहा है। एक खुशहाल प्रदेश के अन्नदाता के इतने बुरे हाल कैसे हो गये कि उसे फांसी के फंदे पर झूलना पड रहा है। जहर खाकर जान देनी पड रही है! तब मनमोहन सरकार ने किसानों को राहत प्रदान करने के लिए हजारों करोड रुपये की सहायता उपलब्ध करायी थी। यह सहायता किसानों को मिली या नहीं मिली इसका जवाब देना आसान नहीं है। पर किसानों की चिं‍ता तो हर किसी को थी। तब एक सच्चाई यह भी उभर कर आयी थी कि विदर्भ के किसानों को साहूकारों ने त्रस्त कर रखा है। किसानों को कर्जा देने वाले यह साहूकार इतना अधिक ब्याज वसूलते हैं कि मूलधन ज्यों का त्यों बना रहता है। किसानों की जमीनें तक हडप कर ली जाती हैं और कर्ज चुकता नहीं हो पाता। किसानों का शोषण करने वाले साहूकार तो 'राजा' जैसा जीवन जीते हैं और किसानों को भीख का कटोरा हाथ में थामने को विवश होना पडता है। तब एकाएक होश में आयी महाराष्ट्र सरकार ने किसानों को लूटने-खसोटने वाले अनेकों साहूकारों पर कानूनी फंदा कसा था और कइयों को जेल की हवा भी खिलायी थी। सरकार के इस कदम को सबने सराहा था पर एक कटु सच यह भी था कि प्रदेश के मुखिया विलासराव देशमुख ने सच्चे राजा की भूमिका कतई नहीं निभायी। उन्होंने अपनों को बख्शा और गैरों को सजा दी।खामगांव के विधायक दिलीप सानंदा का परिवार साहूकारी का धंधा करता था। जिस तरह से दूसरे साहूकारों ने किसानों को कर्ज देकर लूटने-खसोटने का गोरखधंधा शुरू कर रखा था उसी तरह से विधायक सानंदा भी बहती गंगा में हाथ धो रहे थे। उनके खिलाफ कई शिकायतें आयीं। कई किसानों ने अपनी फरियाद सुनायी कि सानंदा परिवार ने उनकी करोडों रुपये की जमीन हथिया ली है। यह परिवार वर्षों से किसानों का शोषण करता चला आ रहा है। चूंकि विधायक का मामला था और देशमुख के इनसे काफी मधुर रिश्ते थे इसलिए इन पर आंच भी नहीं आयी। किसानों का शोषण करने में माहिर सानंदा परिवार देशमुख का अंधभक्त रहा है और देशमुख भी भक्त को प्रसन्न रखने की कला में माहिर हैं। देशमुख ने तो अपनी दोस्ती निभा दी पर सानंदा परिवार के खिलाफ शिकायतों का सिलसिला बढता चला गया। बात यहां तक जा पहुंची कि मामला कोर्ट में भी जा पहुंचा। अदालतें रिश्ते नहीं निभातीं। देशमुख ने जो दोस्ती निभायी थी और पुलिस कार्रवाई में जो बाधा डाली थी उसका खामियाजा सरकार को भुगतना पडा। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के अनुसार महाराष्ट्र सरकार को दस लाख का जुर्माना भरना पडा। सुप्रीम कोर्ट ने देशमुख को फटकार लगाते हुए कहा कि उनका व्यवहार घोर अराजकतावादी था। पर देशमुख को इस से कोई फर्क नहीं पडा। वे भले ही महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री नहीं हैं पर केंद्र में तो मौज मना ही रहे हैं। अदालत जिस शख्स को दोषी मानती है उसे कांग्रेस सुप्रीमो पाक-साफ मानती हैं इसलिए डॉ. मनमोहन सिं‍ह ने भी खुशी-खुशी ग्रामीण विकास मंत्रालय की कमान देशमुख को सौंप दी। यह भी गौर करने वाली बात है जब देशमुख को यह आलीशान तोहफा दिया गया तो किसानों के शोषक और हत्यारे विधायक सानंदा इतने प्रफुल्लित हुए कि उन्होंने अपने देवता को चांदी का मुकुट और चांदी की तलवार भेंट करने में जरा भी देरी नहीं लगायी। इतना ही नहीं सानंदा ने अपने गांव की दिवारों पर देशमुख को बधाई देने वाले बडे-बडे पोस्टर चिपकाये और लगाये गये जिन पर लिखा था-'जा को राखे साईयां, मार सके ना कोय...।'

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