Thursday, February 24, 2011
नेताओं की गुंडागर्दी
शरद पवार देश के नामी-गिरामी नेता हैं। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री भी रह चुके हैं। वर्षों से केंद्र की सत्ता की मलाई खा रहे हैं। राजनीति से ज्यादा क्रिकेट के प्रति उनका जो लगाव है वह देशवासियों से छिपा नहीं है। कई लोगों का मानना है कि शरद पवार राजनीति के ऐसे मंजे हुए खिलाडी हैं जिन्हें मात देना हर किसी के बस की बात नहीं है। खुद पर निरंतर लगने वाले गंभीर से गंभीर आरोपों के जवाब में चुप्पी अख्तियार कर लेना उनकी पुरानी आदत है। उन पर देशद्रोही, माफिया सरगना दाऊद इब्राहिम के करीबी होने के बहुतेरे आरोप लगे। पर वे खामोशी ओढे रहे। सामाजिक कार्यकर्ता खैरनार का तो यह भी दावा है कि दाऊद को यदि शरद पवार की छत्रछाया नहीं मिलती तो वह हिंदुस्तान की धरती पर बम-बारूद बिछाकर असंख्य भारतीयों की जान लेने की हिम्मत और जुर्रत नहीं कर पाता। कहने वाले तो यह भी दावे के साथ कहते हैं कि आज की तारीख में शरद पवार बेहिसाब दौलत के मालिक हैं। उनकी तिजोरियों में अरबों-खरबों रुपये और हीरे-जवाहरात का जखीरा भरा पडा है। धन संपत्ति के मामले में अंबानी-टाटा जैसे उद्योगपति उनके समक्ष दूध पीते बच्चे हैं। शरद पवार की इकलौती पुत्री भी सांसद हैं। उनके भतीजे अजीत पवार महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री हैं। यानि पूरा कुनबा देश की राजनीति में जमा हुआ है। केंद्रीय कृषि मंत्री शरद पवार के पुत्र की भूमिका उनके भतीजे निभाते चले आ रहे हैं। अजीत पवार खुलकर कहने और करने वाले शख्स हैं। वे जो कहते हैं उस पर अमल भी करते हैं। उनका मानना है कि राजनीति में वही सफल हो सकता है जिसे गुंडागर्दी में महारत हासिल हो। राजनीति में अभूतपूर्व सफलता तभी मिलती है जब शराफत के चोले को उतार फेंका जाए और खुलकर 'दादागिरी' की राह अपना ली जाए। दरअसल राजनीति सीधे-सादे लोगों के बस की बात ही नहीं है। जब तक टेढे नहीं बनेंगे तब तक कुछ भी हासिल नहीं होगा। यकीनन अजीत दादा की तारीफ करने में कंजूसी नहीं की जानी चाहिए। इस तरह की स्पष्टवादिता के लिए बहुत बडा कलेजा चाहिए। इस मामले में महाराष्ट्र के इस धाकड उपमुख्यमंत्री का कोई हाथ भी नहीं पकड सकता। जो दिल में आता है कह देते हैं। पत्रकारों को भी फटकारने और लाठी-डंडे का भय दिखाने में पीछे नहीं रहते। ताऊ भले पत्रकारों से भतीजे के किये-धरे की माफी मांग लें पर भतीजे के कालर टाइट रहते हैं। राजनीति के पुराने और नये खिलाडी में यही तो फर्क है। अजीत पवार का एक ही सपना है जैसे भी हो महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनना है। इसके लिए वे अपनी फौज भी तैयार कर रहे हैं। अपनी फौज के सिपाहियों का मनोबल बढाये रखना हर कप्तान का दायित्व होता है। दरअसल इसी दायित्व को निभाते हुए अजीत दादा ने अपने चंगुओं-मंगुओं को कर्तव्य और निष्ठा का पाठ पढाते-पढाते खुद को 'टांग्या' की उपाधि से विभूषित कर डाला। मराठी के इस शब्द का अर्थ है: बदमाश और आवारा छोकरा। इस मूलमंत्र से कौन वाकिफ नहीं है कि राजनीति में अपने नेता को आदर्श मानकर उसके चरित्र और क्रियाकलापों का अनुसरण करने वाले ही आगे बढते हैं। तय है जिन्हें आगे बढना है वे अपने गुरु के आदेश का पालन करेंगे ही। ऐसे में राजनीति का क्या होगा?... जैसे सवालों पर ज्यादा दिमाग खपाने की कोई जरूरत नहीं बचती। सब कुछ प्रत्यक्ष दिखायी दे रहा है। कुछ भी लुका-छिपा नहीं है। हमारे देश के राजनेताओं को सच का आईना दिखाने वाले कतई पसंद नहीं आते। भ्रष्टाचार के खिलाफ अभियान चलाने वाले बाबा रामदेव ने जब भ्रष्ट मंत्रियों की हकीकत बयां की तो एक कांग्रेस के सांसद इतने बौखला गये कि बाबा को गालियां देने पर उतर आये। ऐसा तो हो नहीं सकता कि सांसद गालियों का अर्थ न जानता हो। योगगुरु तो भ्रष्टाचार मिटाने और विदेशों में जमा काले धन को वापस लाने की बात कर रहे थे और सांसद महोदय उन्हें ब्लडी इंडियन और कुत्ता कहकर अपनी असली औकात दिखा गये...।सच तो यह है कि यह गाली किसी रामदेव को नहीं दी गयी है बल्कि उन सभी राष्ट्रभक्तों को दी गयी है जिन्हें अपने देश से प्यार है और गद्दारों से नफरत है। तय है कि सांसद के मुंह से भद्दी-भद्दी गालियां इसलिए बरसीं क्योंकि उन्हें बाबा के द्वारा भ्रष्टाचार के खिलाफ चलाये जा रहे अभियान से डर लगने लगा है। सांसद महोदय भ्रष्टाचार, बेईमानी, लूट-खसोट और काले धन के हिमायती हैं। जो लोग इनके साथ खडे हैं और जिन्होंने आंख, कान और मुंह बंद कर रखे हैं वे अच्छे और भले लोग हैं और विरोध करने वाले ब्लडी इंडियन... कुत्ते हैं...।अरुणाचल प्रदेश के सांसद निनोंग एरिंग और महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत दादा के बीच ज्यादा फर्क दिखायी नहीं देता। दोनों को आईना दिखाने वालों से नफरत है। दोनों यही चाहते हैं कि दुनिया का सारा कारोबार उन्ही के हिसाब से चले। जो इनकी न माने उसके होश ठिकाने लगा दो। जनता के वोट से चुने गये कुछ जनप्रतिनिधि कितने मुंहफट, निर्लज्ज और बेलगाम हो जाते हैं उसका जीता-जागता प्रमाण हैं ये लोग। पत्रकार बेचारे इन नेताओं के लिए क्या-क्या नहीं करते। गली-कूचों से शहरों में लाते हैं। राजधानियों की रोशनियों में पहुंचाते हैं और यह नेता मतलब निकलते ही दूध में गिरी मक्खी की तरह उन्हें निकाल फेंकते हैं! दरअसल अजीत दादा जैसे अहंकारी सत्ताधीशों की निगाह में असली पत्रकार वही है जो उनके पक्ष में लिखे। उनकी तारीफों के पुल बांधे। जो ऐसा नहीं कर सकते उन्हें डंडे से सबक सिखाना भी दादा को खूब आता है। कुछ नेता यह काम पर्दे में रहकर करते हैं और दादा जैसे राजनेता डंके की चोट पर...।
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