Saturday, March 12, 2011

पीडा में मुस्काओ थोडा

आज भी होली का नाम सुनते ही दिल प्रफुल्लित हो उठता है। आंखों के सामने कई-कई रंग तैरने लगते हैं। होली ही एकमात्र ऐसा त्योहार है जो लगभग हर देश में किसी न किसी रूप और नाम के साथ मनाया जाता है।हम भारतवासी तो वैसे भी उत्सव प्रेमी कहलाते हैं। हर त्योहार बडे उत्साह के साथ मनाना हमारी परंपरा का हिस्सा रहा है। पर होली की तो बात ही निराली है। इंसानों के साथ-साथ खुद प्रकृति भी इस उमंगों भरे त्योहार को मनाने के लिए लालायित रहती है। रंग-बिरंगे फूलों से महकती हवाओं में गूंजने वाला यह मधुर संदेश सहज ही सुना जा सकता है कि ऊपर वाले ने इस धरती पर हर प्राणी को गाने और मुस्कराने के लिए भेजा है। इंसान का जीवन तो वैसे भी अनमोल है। बार-बार नहीं मिलता। इसलिए जीवन में जितनी खुशियां लूट सकते हो लूट लो। निराशा और हताशा से मुक्ति पाकर मस्ती में डूब जाओ। हर शत्रुता, भेदभाव और मनमुटाव को भुलाकर दुश्मनों को भी गले लगा लो...। इसलिए तो कहा गया है कि बसंत ऋतु का यह उत्सव स्नेह, अपनत्व, उल्लास का ऐसा उत्सव है जिसकी खुमारी जीवन का वास्तविक आनंद देती है। इस सर्वसमावेशी त्योहार के मनाये जाने के पीछे हमारे पूर्वजों की मूल भावना यकीनन यही रही होगी कि समाज में अपनत्व, भाईचारा और अमन शांति बनी रहे। आपसी रिश्तों की डोर ढीली न होने पाये। पर क्या वाकई बुजुर्गों की मंशा और सीख पर अमल होता है? यह इंसान की फितरत है कि वह जिन्हें अपना आदर्श मानता है उन्हीं का अनुसरण भी करता है। पिछले दिनों युवा नेता वरुण गांधी की शादी सम्पन्न हुई। वरुण गांधी कांग्रेस पार्टी की सुप्रीमो सोनिया गांधी के परिवार के अभिन्न अंग हैं। यह बात दीगर है कि सोनिया गांधी और वरुण गांधी की मां मेनका गांधी के बीच वर्षों से मनमुटाव चला आ रहा है। शादी से पूर्व वरुण गांधी खुद अपनी ताई सोनिया को ससम्मान आमंत्रित करने गये थे। वरुण को यकीन था कि उसके भाई राहुल गांधी और बहन प्रियंका तो उसकी खुशी में हर हाल में शामिल होंगे ही। देश के असंख्य लोगों की निगाहें इस ओर लगी थीं। करोडों लोग ऐसे भी थे जो यह मानकर चल रहे थे कि मैडम सोनिया इस शादी में अवश्य परिवार सहित शिरकत कर एक महान उदाहरण पेश करेंगी। वे पूर्व में भी देश के समक्ष अपनी महानता, त्याग और दरियादिली की मिसालें पेश करती आयी हैं। पारिवारिक रंजिश तो बहुत छोटी बात होती है। बडे लोग इन रंजिशों से बहुत ऊपर होते हैं। परंतु वरुण गांधी की शादी में न सोनिया पहुंचीं और न ही राहुल और प्रियंका। सोनिया भक्त यह भी कह सकते हैं कि यह तो गांधी परिवार का आपसी मामला है। आम लोगों का इससे क्या लेना-देना...। कांग्रेसी सफाई देने के लिए स्वतंत्र हैं और लोग भी सोचने और निर्णय लेने के लिए स्वतंत्र हैं। सच तो यह है कि कांग्रेस सुप्रीमो के प्रति आम सजग जनों की जो विभिन्न टिप्पणियां आयीं उन्हें सकारात्मक तो कतई नहीं कहा जा सकता। वैसे भी भारतीयों के लिए शादी ब्याह भी किसी उत्सव से कम नहीं होते। जब बडों ने त्योहारों की गरिमा का ख्याल रखना बंद कर दिया है तब आम आदमी को कोसना व्यर्थ है। इसलिए तो कहते हैं कि पूर्व में मनायी जाने वाली होली और आज की होली में काफी परिवर्तन आ चुका है। पहले लोग वाकई दिल खोलकर होली खेला करते थे। ऊंच-नीच और अपने पराये की भावना को भूलकर आत्मीयता के साथ एक-दूसरे को रंगों की बौछारों में भिगो दिया जाता था। ढोल-मजीरा, नगाडे की थाप और होली के गीतों के बीच भंग की मस्ती की बात ही कुछ खास हुआ करती थी। पर अब तो होली शराब और कबाब के बिना अधूरी मानी जाती है। होली के दूसरे दिन देश के लगभग सारे अखबार खून-खराबे और पुरानी शत्रुताओं और रंजिशों को भुनाने की खबरों से भरे रहते हैं। अधिकांश अमन-प्रेमी होली के दिन घर में दुबक कर रहना पसंद करते हैं। वे बाहर निकल कर कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। महिलाओं का तो सडकों पर अकेले निकलना ही मुश्किल हो जाता है। सडकों पर या तो पुलिस वाले होते हैं या फिर ऐसे युवकों की मदहोश टोलियां जो पी-खाकर इतनी मस्तायी रहती हैं कि उन्हें किसी की बहन-बेटी की इज्जत के साथ खिलवाड करने में कोई भय नहीं लगता। देश के निरंतर बिगडते हालातों ने भी लोगों की चिं‍ताएं बढा दी हैं। गरीबी, महंगाई, बेरोजगारी तो पुरानी बातें हो गयी हैं। अब तो और भी तरह-तरह की परेशानियां हैं जिनसे देशवासी निरंतर जूझ रहे हैं।कवि वीरेंद्र मिश्र की लिखी यह पंक्तियां काबिले गौर हैं:''महानगर में रहें, या रहें गांवों में,हमने देखा है, लोग जी रहे हैं तनावों में...''त्योहार आदमी तब मना सकता है जब वह बेफिक्र हो। बेफिक्री तब आती है जब सबकुछ ठीक-ठाक चल रहा हो। पर यहां तो देश के किसान आत्महत्या कर रहे हैं। युवा अपराधों की ओर अग्रसर हैं। महिलाएं असुरक्षित हैं और राजनेताओं को देश को लूटने से फुर्सत नहीं है। फिर भी हम हिंदुस्तानी बहुत दिलवाले हैं। हमने अपना हौसला नहीं खोया है और न ही इतने निराश हैं कि त्योहार मनाना छोड दें। यह त्योहार ही तो हैं जो हमें तमाम परेशानियों को भुला देने की ताकत देते हैं। होली तो फिर होली है...युवा कवि गिरीश पंकज की कविता की कुछ पंक्तियों के साथ आप सबको होली की अनेकानेक शुभकामनाएं-जीना भी एक कला हैपीडा में मुस्काओ थोडासाफ दिखेगा तुम्हें नजारापरदे जरा उठाओ थोडाखुशियां हो जाती हैं दूनीबेशक इन्हें लुटाओ थोडाहोगा परिवर्तन भी इक दिनसोए लोग जगाओ थोडा।

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