Thursday, March 3, 2011

कहां से आएगा सच्चा नायक?

रिश्वत लेने और देने वाले पहले से ज्यादा चालाक हो गये हैं। नोटों की गड्डियां मुसीबत खडी कर सकती हैं इसलिए शातिर और चालाक लोगों ने इस परंपरा को निभाने के लिए नये-नये तौर तरीके ईजाद कर लिये हैं। अभी हाल ही में नालको के चेयरमैन सह प्रबंध निदेशक को सोने की ईटे लेते पकडा गया है। देने वाले का भी पता चल गया है पर उसे फौरन सलाखों के पीछे नहीं भेजा जा सका। हमारे यहां यही सबसे बडी बुराई भी है और कमजोरी भी। रिश्वत देने वाले को वो सजा नहीं दी जाती जिसका वह हकदार होता है। देने वाले न हों तो लेने वालों के पैदा होने का सवाल ही नहीं उठता। अपना काम निकालने के लिए नौकरशाहों को भ्रष्ट करना व्यापारियों और उद्योगपतियों का जाना-पहचाना धंधा है। ये धंधेबाज सोने और चांदी की ईटों की खैरात बांटकर मंत्रियों और अफसरों को खरीदते-खरीदते न जाने कितनी सफलता (?) की सीढिं‍यां चढ जाते हैं। इनमें से कुछ टाटा, बिडला, अंबानी बन पूरे देश को अपनी उंगलियों पर नचाते हैं और खून-पसीने की कमायी खाने वाले इन्हें देखते ही रह जाते हैं। यह ऐसी दास्तां है जिसका कोई ओर-छोर नहीं है। हदें पार हो चुकी हैं इसलिए हाहाकार मचा है जो बहुत दूर तक सुनायी दे रहा है। कल तो जो सच्चाई पर्दे में कैद थी आज पूरी तरह से बाहर आ गयी है। लोग जान गये हैं कि वर्तमान राजनीतिक व्यवस्था में देश का किसी भी हालत में भला नहीं हो सकता। भला सिर्फ उन्हीं का होगा जिनके हाथ में सत्ता है या फिर जो सत्ता को खरीदने की ताकत रखते हैं। देश की विधानसभाओं और संसद में भ्रष्टाचारियों का ही वर्चस्व है। अधिकांश विधायक और सांसद देश को लूटने की फिराक में लगे रहते हैं। उनके पास उनके लिए भी वक्त नहीं जिन्होंने इन पर आस्था जताकर लोकतंत्र के मंदिर तक पहुंचाया। जिन्होंने मंदिरों की पवित्रता नष्ट कर दी है क्या उन्हें दंड नहीं मिलना चाहिए...? कौन इन्हें दंडित करेगा? आज यह सवाल सभी देशप्रेमियों के दिल और दिमाग में हलचल मचाये हुए है। देश को किसी सच्चे नायक की तलाश है। पर अफसोस! सवा सौ करोड की आबादी वाले देश में आज एक भी सच्चा नायक नहीं मिल रहा है। दरअसल जिस रफ्तार से नायक खलनायक बनते चले गये उसी के चलते अब भारतवासी किसी पर आसानी से यकीन करने को तैयार नहीं हैं।देश को अपने चंगुल में ले चुके सर्वव्यापी भ्रष्टाचार के खिलाफ योग गुरु बाबा रामदेव ने ताल ठोक दी है। उनके साथ समाज सेवक अन्ना हजारे, भाजपा के कारतूस रामजेठमलानी, किरण बेदी, सुब्रम्हण्यम स्वामी, गोविं‍दाचार्य, स्वामी अग्निवेश, कवि हरिओम पवार जैसे लडाकू चेहरे भी खडे नजर आ रहे हैं। बीते सप्ताह देश की राजधानी दिल्ली स्थित रामलीला मैदान में बाबा ने ऐलान किया कि 'हम योग भी सिखाएंगे और भ्रष्टाचार को भी मिटाएंगे। विदेशों में जमा किया काला धन वापस लाया जाएगा। यही नहीं, देश के बच्चों को राजनीति व भ्रष्टाचार रोकने की शिक्षा भी दी जाएगी।' कांग्रेस पर खुल कर निशाना साधते बाबा के विचारों से हर कोई सहमत है पर घूम-फिर कर बात वहीं पर आ जाती है कि क्या देश की तमाम जनता इस बडबोले योगी पर विश्वास करने को तैयार है? कहा जा रहा है कि राजनीति में आने की छटपटाहट में योग गुरु बाबा रामदेव आज हर वह पैंतरा अपना और आजमा रहे हैं जो राजनीति और सत्ता का भूखा व्यक्ति अपनाता है। राजनीति के धुरंधरों का यह भी मानना है कि बाबा को अपने बारे बहुत बडी गलतफहमी हो गयी है। वे यह भूल गये हैं कि लोग उनके पास योग सीखने और निरोगी रहने के गुर जानने के लिए आते हैं। बाबा अपने योग कार्यक्रमों में एकत्रित होने वाली अपार भीड को देख हवा में उड रहे हैं और उन्हें लगने लगा है कि यह भीड उन्हें एक राजनेता के रूप में भी स्वीकार करने को आतुर है।बाबा रामदेव खुद को साधु-संन्यासी कहते नहीं थकते। पर वे यह भी भूल गये हैं कि राजनीति संत का पेशा नहीं है। योग की दुकान से सत्ता के गलियारों में अपनी पैठ जमाने की तीव्र लालसा पाले बाबा के विरोध में जहां बहुतेरे लोग ख‹डे नजर आते हैं वही उनके पक्षधरों की भी कमी नहीं है। अच्छी-खासी पूंजीपतियों की जमात उनके साथ है। कुछ मीडिया दिग्गज भी प्रचारक और प्रायोजक की भूमिका में हैं। सत्ता की चाशनी किसे अच्छी नहीं लगती। इसके लिए अच्छे-अच्छों को भटकते देखा गया है। मुझे यह पंक्तियां लिखते वक्त साध्वी उमा भारती की याद आ रही है। वे जब धार्मिक प्रवचन करती थीं तब लाखों-करोडों की चहेती थीं पर राजनीति ने उनका जो हश्र किया वो किसी से छिपा नहीं है। उमा भारती को भी यह भ्रम हो गया था कि उनके प्रवचन सुनने के लिए जो हजारों-लाखों की भीड जुटती है वह उन्हें एक राजनेता के रूप में भी सहर्ष स्वीकार कर लेगी। वे भारतीय जनता पार्टी से जुड गयीं। एक लहर थी जिसने साध्वी की नैया पार भी लगा दी। वे मध्यप्रदेश की मुख्यमंत्री भी बनीं पर राजनीति के खिलाडि‍यों ने उनके ऐसे होश ठिकाने लगाये कि वे कहीं की नहीं रहीं। आज की तारीख में साध्वी यहां से वहां भटक रही हैं और उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। राजनीति और सत्ता की भूख ने उनकी छवि को इस कदर धूमिल करके रख दिया है कि इस जन्म में तो कहीं कोई सुधार की गुंजाइश ही नहीं दिखती। बाबा रामदेव के इरादे नेक हो सकते हैं पर उनके इर्द-गिर्द खडे नजर आने वाले कुछ चेहरे पूरी तरह से स्वच्छ नहीं हैं। जेठमलानी जैसे सत्ता लोलुपों ने जब भाजपा को कहीं का नहीं छोडा तो बाबा कहां दिखेंगे राम ही जानें...। कहा तो यह भी जा रहा है कि बाबा तो पूरी तरह से भारतीय जनता पार्टी के मोहरे हैं? इस पार्टी ने सत्ता तक पहुंचने के लिए जिस तरह से कभी साध्वी उमा भारती, ऋतंभरा और अन्य कई साधु-संतों को आगे कर वोट हथियाये थे वैसे ही बाबा को आगे खडा कर फिर से केंद्र की सत्ता पाने के सपने देखने शुरू कर दिये हैं। अगर यह सच है तो बाबा रामदेव और भाजपा के सपने धरे के धरे रह जाने वाले हैं क्योंकि इस देश की जागरूक जनता अब और अधिक धोखे खाने को तैयार नहीं है...।

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