Thursday, May 26, 2011
शोषकों का असली चेहरा
देश के उद्योगपति मुकेश अंबानी का नया घर एक अरब डालर यानी ४५०० करोड रुपये में बन कर तैयार हो गया है। दुनिया में किसी और रईस का घर इतना महंगा नहीं है। इस घर में सभी तरह की सुख-सुविधाओं का जमावडा है। मुंबई स्थित इस घर को 'एंटालिया टॉवर' नाम दिया गया है। इस टॉवर को जो भी देखता है दांतों तले उंगली दबा लेता है। विदेशियों को तो यकीन ही नहीं होता कि गरीबों के देश भारत में जहां करोडों लोग रात को भूखे पेट खुले आकाश के नीचे सोते हैं, वहां ऐसा सर्व सुविधा संपन्न सत्ताइस मंजिला घर हो सकता है जिसमें मात्र एक परिवार रहता हो। मुकेश अंबानी देश के धन्नासेठ हैं। उनके लिए ४५०० करोड रुपये कोई मायने नहीं रखते। उन्होंने कभी गरीबी देखी ही नहीं इसलिए वे यह अनुमान भी नहीं लगा सकते कि इतने रुपयों से देश के लाखों गरीबों को छत मिल सकती है। पर उन्हें देश की गरीबी और गरीबों से क्या लेना-देना। उनकी तो अपनी एक अलग दुनिया है जहां मंत्रियों, अफसरों, फिल्मी सितारों और क्रिकेटरों की तामझाम रहती है। उनकी रंगीन महफिलों में आम आदमी झांक भी नहीं सकता। वे अपनी बीवी को उसके जन्मदिन पर हवाई जहाज तोहफे में देकर देश-दुनिया तक यह संदेश पहुंचा चुके हैं कि वे ब‹डे दिलदार हैं। मुकेश अंबानी और अनिल अंबानी अपने पिता धीरुभाई अंबानी के पदचिन्हों पर चलते चले आ रहे हैं। धीरुभाई अंबानी अपने साम्राज्य के फैलाव के लिए कुछ भी कर गुजरने को तैयार रहते थे। भ्रष्ट अफसरों और मंत्रियों-संत्रियों को थैलियां पहुंचा कर अपना काम निकलवाना उन्हें खूब आता था। इसी कला की बदौलत उन्होंने टाटा-बिडला को भी पछाड दिया था। ऐसे चतुर और चालाक बाप के बेटों ने विरासत में मिली परंपरा को कायम रखा और जमकर तरक्की की। यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि भाइयों के कामकाज करने के तौर-तरीकों ने रिश्तों में ऐसी दरार डाली कि दोनों ने अलग-अलग रास्ते अख्तियार कर लिये पर दौलत समेटने की नीति में कोई बदलाव नहीं आया। मुकेश अंबानी पर्दे में रहकर अपना काम करते हैं और अनिल खुल्लम-खुला। अनिल को अपनी इस खासियत के चलते कई तकलीफों का भी सामना करना पडा। देश के कुख्यात नेता अमर सिंह से उनकी दोस्ती जगजाहिर है। अमर सिंह की बदौलत राज्यसभा के सांसद बनने का सौभाग्य भी अनिल को मिल चुका है। कई बडे-बडे घोटालों में भी उनका नाम उछला है। टू-जी स्पेक्ट्रम घोटाले में लिप्त होने के बाद भी अभी तक जेल नहीं भेजे गये। लगता है थैलियों ने अपना काम कर दिया है। पर इस मामले में मुकेश अंबानी खुशकिस्मत हैं। वे सिर्फ धंधा करने और माल समेटने में ही यकीन रखते हैं। उन्हें मालूम है कि राजनेताओं की दोस्ती कितनी महंगी पडती है इसलिए वे अपने पिता के उसूलों पर चलने के पक्षधर हैं। इस हाथ दो और उस हाथ लो। बाकी सब कुछ भूल जाओ। किसी से कोई रिश्ता-नाता मत रखो। देश की जनता के खून-पसीने की कमायी से अपनी तिजोरियां भरते चले जाओ और दिन-रात ऐश करो। वे देश के इकलौते उद्योगपति हैं जिन्हें क्रिकेट से खास लगाव है। लगभग हर मैच में बीवी-बच्चों के साथ नजर आते हैं। आम दर्शकों के करीब फटकना नहीं चाहते इसलिए करोडों रुपये खर्च कर खास वीवीआईपी गैलरी बुक करवा कर तालियां बजाते हैं। अरबों रुपयों के घर में जश्न मनाने और क्रिकेट मैचों में शाही अंदाज से थिरकने वाले मुकेश अंबानी की जीवन शैली पर टाटा समूह के चेयरमैन रतन टाटा ने लंदन के एक समाचार पत्र को दिये गये साक्षात्कार में बडा ही सटीक सवाल उठाया है कि मुकेश अंबानी उस महल में क्यों रह रहे हैं? उस महल में रहने वाले को आसपास रहने वालों के प्रति संवेदनशील होना चाहिए और उसे यह देखना चाहिए कि क्या वह उनकी जिंदगी में कोई बदलाव कर सकता है। अगर वह (मुकेश अंबानी) संवेदनशील नहीं है तो यह और भी दुखद है, क्योंकि भारत में ऐसे लोग चाहिएं जो अपनी अथाह दौलत से लोगों के कष्टों को दूर करने का रास्ता ढूढ सकें...। मुकेश अंबानी प्रेमजी नहीं हैं जो देशवासियों के लिए अपने जीवन भर की कमाई समर्पित कर दें। उनके लिए घर-परिवार पहले और देश बहुत बाद में है। दरअसल वे तो हद दर्जे के स्वार्थी हैं। हाथ में आयी दौलत का पूरा उपभोग कर अपने जीवन को सार्थक कर लेना चाहते हैं। मानवता, नैतिकता, संवेदना और सहानुभूति भी उनके लिए महज शब्द हैं। इसलिये वे शब्दों के चक्कर में उलझकर खुद को तथा अपने बीवी-बच्चों को राजसी ठाठ-बाट भरे भौतिक सुखों से वंचित नहीं करना चाहते।उद्योगपति रतन टाटा खानदानी रईस हैं। उन्हें कभी भी अंबानियों की तरह सर्कसबाजी करते नहीं देखा गया। उनका रहन-सहन आमजनों-सा रहा है। यह उन्हीं का दम था जो वे मुकेश को आईना दिखाने का साहस कर सके। वैसे यह साहस तो राष्ट्रभक्त नेताओं को दिखाना चाहिए था। पर मुकेश अंबानी के सामने मुंह खोलने के लिए जो दम-खम चाहिए उसे ये बेचारे कहां से लाएंगे? वैसे भी टू-जी स्पेक्ट्रेम और राष्ट्रमंडल खेल घोटालों ने कइयों की देशभक्ति का पर्दाफाश कर दिया है। दिल्ली की तिहाड जेल में हत्यारों, लुटेरों और चोर उचक्कों से ज्यादा नेताओं की भीड बढती चली जा रही है। ये नेता भ्रष्टाचार से कमायी गयी दौलत को उडाने के आदी रहे हैं। मुकेश अंबानी के पास भी जो अपार दौलत है वह उनके खून-पसीने की कमायी हुई नहीं है। हिंदुस्तान के करोडों लोगों ने विश्वास कर जब उनकी कंपनियों के शेयर खरीदे तभी वे इतने धनवान बन पाये। लोगों की अमानत के धन पर ऐश करना महंगा भी पड सकता है इसका अंदाजा शायद मुकेश अंबानी को नही है। जेल की सजा भुगत रहे नेता भी इस गुमान में थे कि देश की तमाम दौलत उनके बाप की जागीर है। वे जैसे चाहें वैसे उसे फूंक सकते हैं।
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