Thursday, May 19, 2011

नकाबपोशों का दम

यह वो दौर है जिसमें नेताओं और पत्रकारों के चमकते चेहरों के नकाब निरंतर उतरते चले जा रहे हैं। लोगों को पत्रकारों का पतित चेहरा बेहद हैरान-परेशान करता है। नेताओं की दुष्टता, नमकहरामी और नालायकी ज्यादा नहीं चौंकाती। पिछले दिनों महिला पत्रकार प्रिया दत्त के दलाली में लिप्त होने के खुलासे ने उन लोगों के पैरों तले की जमीन खिसका कर रख दी जो उसे एक आदर्श पत्रकार मानते थे। प्रिया दत्त ने जो नाम वर्षों की मेहनत की बदौलत कमाया था उसी पर उसने चंद सिक्कों के लालच में आकर ऐसा बट्टा लगाया कि सिर उठाकर चलने के काबिल नहीं रही। ऐसी ही दुर्गति प्रभु चावला की हुई। करोडों की इज्जत एक ही झटके में खो बैठे। प्रिया दत्त की तरह प्रभु को भी चांदी के सिक्कों की खनक ले डूबी। प्रभु चावला ने वर्षों तक चर्चित पत्रिका 'इंडिया टुडे' का संपादन किया और देश के आम पाठकों के दिलों में जगह बनायी। 'आज तक' न्यूज चैनल में राजनेताओं, उद्योगपतियों और कलाकारों से 'सीधी बातचीत' कर ख्याति पाने वाले इस संपादक की अमर सिं‍ह से हुई बातचीत की हकीकत ने लोगों को यह सोचने पर विवश कर दिया है कि क्या देश के बडे-बडे संपादक इतने गिरे हुए भी हो सकते हैं...?अमर सिं‍ह और प्रभु चावला के बीच हुई बातचीत की कुछ अंश यकीनन हैरान कर देने वाले हैं:प्रभु चावला: हलो प्रभु चावला बोल रहा हूं अमर सिं‍ह जी कहां हैं यार?अमर सिं‍ह: हलो...।प्रभु चावला: माननीय अमर सिं‍ह जी...।अमर सिं‍ह: हां मेरी बारह बजे प्रेस है।प्रभु चावला: हां मेरी बात तो सुन लीजिए। अखबार में भी आपने छपवा ही दिया... अमर सिं‍ह: क्या?प्रभु चावला: कि हमने (प्रभु चावला) माफी नहीं मांगी तो आप (अमर सिं‍ह) केस करेंगे...।अमर सिं‍ह: (ठठाकर हंसे) ह...ह...ह...ह...।प्रभु चावला: आज इतनी बडी पोलिटिकल डेवलपमेंट हो रही है। सीडबल्यूसी से इस्तीफा दिलवा दिया। अभी बारह बजे से क्यों चला रहे हैं। पोलिटिकल ज्यादा इंटरेस्ट है न। हम करेंगे इसके ऊपर। मैं वादा कर रहा हूं आपको।अमर सिं‍ह: नहीं तो मैं बारह बजे इस पर कर देता हूं। हम क्या करें...।प्रभु चावला: नहीं यू आर ए इम्पार्टेंट परसन। आई एम नॉट टाकिं‍ग एज ए-एज ए। आज मैं सुबह से स्टुडियों में खडा हूं। खडा होकर नटवर सिं‍ह की.... रहा (अश्लील गाली दी गयी है) हूं। सोनिया गांधी की... (यहां पर भी बेहद आपत्तिजनक शब्द प्रयोग में लाये गये हैं)अमर सिं‍ह: नहीं आप देखिये न, आप भले किसी की भी... मैं एज ए ब्रदर बोल रहा हूं। (अमर सिं‍ह ने भी प्रभु चावला वाली अभद्र भाषा का इस्तेमाल किया है।)प्रभु चावला और अमर सिं‍ह के बीच हुई बातचीत बहुत लंबी है जिसमें दोनों ने कमीनगी की तमाम हदें पार कर दी हैं। नटवर सिं‍ह और सोनिया गांधी को अपमानित करते हुए उस भाषा का इस्तेमाल किया गया है जिसका अक्सर सडक छाप गुंडे मवाली करते हैं। उपरोक्त वार्तालाप तब की है जब प्रभु चावला इंडिया टुडे ग्रुप के सर्वेसर्वा थे। मालिकों से ज्यादा उनका रुतबा था लेकिन अपने रुतबे का वे किस तरह से इस्तेमाल कर रहे थे उसका भी इस बातचीत से पता चल जाता है। एक संपादक एक जगजाहिर दलाल से जिस तरह से माफी मांगता दिखायी देता है उससे यह सहज ही अनुमान लगाया जा सकता है कि आज के तथाकथित बडे संपादक कितने बिकाऊ हो चुके हैं। एक तरफ यह लोग निष्पक्ष और निर्भीक पत्रकारिता के ढोल पीटते हैं और दूसरी तरफ भ्रष्टाचारियों के तलवे चाटते हुए माफी तक मांगने से नहीं कतराते। जब संपादकों के यह हाल हैं तो पत्रकारों को गिरने-पडने और दंडवत होने से कौन रोक सकता है! दरअसल इनसे बडा और कोई मुखौटेबाज हो ही नहीं सकता। इंडिया टुडे पत्रिका के संपादन काल में प्रभु चावला ने न जाने कितनी बार महिलाओं को सम्मान देने की पैरवी करने वाले लेख प्रकाशित किये होंगे और भ्रष्ट नेताओं के खिलाफ आग उगली होगी। 'आजतक' चैनल पर भी उनका अलग ही चेहरा होता था। इस बातचीत के सामने आने के बाद यही कहा जा सकता है कि प्रभु चावला जैसे शातिर चेहरे ढोंग करने में माहिर हैं। लोगों की भावनाओं के साथ खिलवाड करते हुए मुंह में राम और बगल में छुरी की कहावत को चरितार्थ करना इन्हें खूब आता है। राजनेताओं की जी हुजूरी कर राज्यसभा में जाने की लालायित रहे प्रभु चावला की अमर सिं‍ह जैसे नेताओं से दोस्ती यही दर्शाती है कि भ्रष्ट नेताओं और संपादकों में जबरदस्त गठजोड हो चुका है। यह लोग एक-दूसरे के हितों के लिए काम करते हैं। इनका देश सेवा से कोई लेना-देना नहीं है।इंडिया टुडे ग्रुप से बाहर कर दिये गये प्रभु चावला अभी भी पत्रकारिता कर रहे हैं। जबकि होना यह चाहिए था कि ऐसे चाटुकार को कोई अपने पास भी न बिठाता लेकिन न्यू इंडिया एक्सप्रेस को शायद ऐसी ही जुगाडु हस्ती की तलाश थी। प्रभु चावला फिर से चम्मचागिरी के खेल में लग गये हैं। बडे-बडे राजनेताओं के साक्षात्कार के बहाने चांदी काट रहे हैं। अमर सिं‍ह भी बडे बेआबरू होने के बाद भी राजनीति का दामन नहीं छोड रहे हैं। कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी को गालियां देने वाले अमर सिं‍ह कांग्रेस में शामिल होने के रास्ते तलाश रहे हैं। कांग्रेस के सांसद संजय निरुपम और महाराष्ट्र सरकार के दमदार मंत्री नारायण राणे भी कभी सोनिया गांधी के लिए अमर्यादित भाषा का इस्तेमाल किया करते थे पर कालांतर में उन्होंने शिवसेना को छोडकर कांग्रेस में जगह पा ली और उनके सभी गुनाह माफ कर दिये गये। अमर सिं‍ह को भी कांग्रेस गले लगा लेगी और प्रभु चावला भी किसी-न-किसी राजनीतिक पार्टी की चम्मचागिरी कर राज्यसभा के सांसद बनने में सफल हो जाएंगे। वहां ऐसे लोगों की बहुत जरूरत रहती है। देश की लगभग सभी राजनीतिक पार्टियां अपने तलुवे चाटने वाले पत्रकारों और संपादकों को खुश करने के लिए राज्यसभा में भेजती ही रहती हैं। जो बात कल तक राजनीति पर लागू होती थी, आज पत्रकारिता पर भी लागू होने लगी है। यही वजह है कि प्रभु चावला जैसे लोगों की ताकत और कीमत पत्रकारिता में यथावत बनी हुई है... और बनी रहेगी। शोर मचाने वाले लाख दहाडते रहें पर राजनीति के दलाल अमर सिं‍ह और पत्रकारिता के 'आदर्श पुरुष' प्रभु चावला जैसों की कहीं न कहीं दाल अवश्य गलती रहेगी...।

No comments:

Post a Comment