Thursday, May 12, 2011
यह कैसा मज़ाक?
बहुजन समाज पार्टी की सुप्रीमो, उत्तरप्रदेश की बुलंद मुख्यमंत्री मायावती कहती हैं कि उन्हें भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से सख्त नफरत है। बहनजी ने कोलकाता में चुनाव प्रचार के दौरान अन्ना हजारे के भ्रष्टाचार उन्मूलन अभियान को सराहा। वे भाषण के दौरान यह रहस्योद्घाटन (!) भी करने से नही चूकीं कि उनकी पार्टी भ्रष्टाचार और राजनीति के अपराधीकरण के खिलाफ प्रारंभ से ही लडती चली आ रही है। उनकी यह लडाई सतत चलती रहेगी। मायावती जिस बसपा की कमान संभाल रही हैं उसकी स्थापना कांशीराम ने की थी। कांशीराम ने पार्टी को स्थापित करने के लिए अपना खून-पसीना बहाया था। शुरू-शुरू में तो लोग कांशीराम का मखौल उडाया करते थे। किसी को यकीन ही नहीं था कि साइकिल पर मीलों दौड लगाने वाले कांशीराम की मेहनत रंग लायेगी। पर कांशीराम की जिद थी कि दलितों, शोषितों और असहायों की लडाई लडने के लिए अपना जीवन समर्पित कर देना है और पार्टी की पुख्ता नींव तैयार करके ही दम लेना है। जो चलते रहते हैं वो आखिरकार अपनी मंजिल पा ही जाते हैं। जिद्दी और जुझारू कांशीराम को भी धीरे-धीरे सफलता मिलती चली गयी। बहुजन पार्टी का अस्तित्व कायम होता चला गया और वो दिन भी आ गया जब उनकी पार्टी उत्तरप्रदेश की सत्ता पर काबिज हुई। कांशीराम का मायावती पर जीवन पर्यंत विश्वास बना रहा। यह बात दीगर है कि कांशीराम के सपने साकार नहीं हो पाये। जबकि इन सपनों को साकार करने की जिम्मेदारी मायावती के कंधों पर ही थी। मायावती ने माया तो बटोरी पर दलितों और शोषितों की सच्ची साथी नहीं बन पायीं। जैसे-जैसे वे सत्ता का स्वाद चखती चली गयीं, दौलतमंद होती गयीं और भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों से भी घिरती चली गयीं। कांशीराम तो फकीर थे और वैसे ही चल बसे। उनके परिवार के नाम पर भी कोई धन-सम्पत्ति होने की कोई खबर सुनने और पढने में नहीं आयी। मायावती और उनके परिवार के विभिन्न सदस्यों के देखते ही देखते मालामाल होने की अनेकों जानकारियां मीडिया की सुर्खियां बनती रही हैं। मायावती ने अपने जन्मदिन पर धन उगाही के क्या-क्या खेल नहीं खेले। उन्हीं की पार्टी का एक विधायक तो इतना जालिम निकला कि उसने एक सरकारी अफसर को मनमाफिक चंदा न दिये जाने के कारण मौत के मुंह में ही सुला दिया। न जाने कितने अराजक तत्वों और भ्रष्टाचारियों ने बसपा सुप्रीमो की पनाह में राजनीति की नई-नई परिभाषाएं गढीं और सत्ता सुख भोगा। देश पर राज कर रहे नेताओं का यही असली चरित्र है। अधिकांश चेहरे यही मानकर चलते हैं कि जब तक हम रंगे हाथ पकडे नहीं जाएंगे तब तक कोई भी हमारा कुछ भी नहीं बिगाड पायेगा। हो भी यही रहा है। शातिर नेताओं को दबोचना आसान नहीं है इसलिए उनकी छाती हमेशा तनी रहती है। वर्तमान केंद्र सरकार की सर्वे-सर्वा और देश की सबसे पुरानी राजनीतिक पार्टी कांग्रेस की अध्यक्षा सोनिया गांधी भी कह चुकी हैं कि वे अन्ना हजारे के साथ हैं। यानी उन्हें भी भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों से कोई लगाव नहीं है। पर यह कितना हैरान कर देने वाली बात है कि उनकी नाक के नीचे उनके मंत्री अरबों-खरबों का आर-पार करते रहते हैं और उन्हें तभी खबर लगती है जब मीडिया हो-हल्ला मचाता है। सोनिया गांधी के दामाद के बारे में भी सुगबुगाहटें उठने लगी हैं कि वे सास के साये में वैसे ही गुल खिला रहे हैं जैसे अटलबिहारी वाजपेयी के दामाद ने खिलाये थे और चुटकियों में अरबपति बनने का चमत्कार दिखाया था।इतने महान नेता जब अपने आसपास के 'चमत्कार' को नहीं देख पाते तो घोर आश्चर्य होता है। अभी तक तो देशवासी यही देखते चले आ रहे हैं कि भ्रष्टाचार, अनाचार और रिश्वत-व्यापार सत्ता के साये में बेखौफ फूलता-फलता चला आ रहा है। जिनके हाथ में सत्ता होती है उनके आसपास रहने वालों की तकदीर बदल जाती है। सोनिया गांधी के दामाद राबर्ट वढेरा ने कुछ ही वर्षों में जो करोडों-करोडों की दौलत कमायी है उसे 'यूं' ही नहीं कमाया जा सकता। अटलबिहारी वाजपेयी के दामाद रंजन भट्टाचार्य के भी अटलजी के प्रधानमंत्री बनने के बाद ही दिन फिरे थे और देखते ही देखते वे अरबों में खेलने लगे थे। तब कुछ लोग कहते थे इस अचंभित कर देने वाली तरक्की से अटल जी अनभिज्ञ हैं! पर सवाल यह है कि ऐसी अनभिज्ञता किस काम की? जब कुछ दिनों के बाद राबर्ट वढेरा के कारनामों का पूरी तरह से पर्दाफाश हो जायेगा तो सोनिया गांधी के बारे में यही कहा जायेगा। इस देश के साथ ऐसे मजाक चलते ही रहते हैं। देश की जनता को ईमानदार नेताओं के मजाक सहने की आदत पड चुकी है...।
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