Thursday, May 5, 2011

क्या हम कायर हैं?

ऐसा बहुत ही कम होता है कि किसी की मौत पर लोग जश्न मनाएं। ओसामा बिन लादेन के मारे जाने की खबर सुनकर दुनिया के करोडों अमन पसंद लोगों ने खुशियां मनायीं और राहत की सांस ली। एक दरिंदे के अंत से लोग इतने प्रफुल्लित हो सकते हैं तो कल्पना करें कि जब लादेन जैसी हिं‍सक सोच रखने वाले तमाम आतंकवादियों का सफाया हो जायेगा तो कैसा उत्सवी वातावरण होगा। भारतवासी उस उत्सव का वर्षों से इंतजार कर रहे हैं। अमेरिका के हुक्मरानों ने तो लादेन को समंदर में दफन कर अपने देशवासियों की तमन्ना को पूरा कर दिया लेकिन भारत के शासक अपने दुश्मनों को खाक करने के लिए दूसरों का मुंह ताक रहे हैं। अमेरिका ने तो एक ही हमले को झेला। भारत में तो न जाने कितने हमले और धमाके हो चुके हैं। हजारों निर्दोषों की जानें जा चुकी हैं पर हमारी सरकार कुछ भी नहीं कर पायी। जब कोई हमला होता है तो आतंकवाद के खिलाफ भाषण देने वाले राजनेताओं की कतार लग जाती है पर बराक ओबामा जैसा दम कोई भी नहीं दिखाता। दुनिया के सबसे खूंखार आतंकवादी ओसामा बिन लादेन के ढेर कर दिये जाने की खबर आने के बाद हिं‍दुस्तान के कुछ नेता यह राग भी अलापते देखे गये कि अमेरिका ने अपने दुश्मन का तो सफाया कर दिया पर उसने भारत के जख्मों की कोई परवाह नहीं की। यानी दाऊद इब्राहिम और उन तमाम आतंकियों को मौत के मुंह में सुलाने की जिम्मेदारी भी अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा की थी जिसे उन्होंने पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया। ऐसी चाहत और सोच रखने वालों के बारे में अब क्या कहें? अमेरिका ने तो दस साल बाद हजारों मील दूर छिपे लादेन को मौत दे दी पर हमारे देश के शासक तो घाव पर घाव खाने के बाद भी शांति दूत का चोला ओढे बैठे हैं। पडोसी देश पाकिस्तान दाऊद इब्राहिम को कई वर्षों से पनाह दिये हुए है और हमारी सरकार पाकिस्तान के हुक्मरानों के समक्ष भिखारी की तरह हाथ फैलाये है कि मेहरबानी करके दाऊद को हमारे हवाले कर दो। पाकिस्तान के हुक्मरान कुछ भी सुनने और समझने को तैयार नहीं। उन्हें जो भाषा समझ में आती है उसे इस्तेमाल करने में भारत के शांति दूत खुद को असहाय पाते हैं। अमेरिका सरकार असहाय नहीं है। वह दुश्मन को किसी भी हालत में धूल चटाना जानती है। उसने पाकिस्तान को उसी की जमीन पर ऐसा तमाचा जडा है कि भविष्य में कोई भी आतंकवादी अमेरिका पर टेढी नजर डालने से पहले हजार बार सोचेगा। अमेरिका के राष्ट्रपति ने दिखा दिया है कि अपने देश की जनता की भावनाओं और उसके मान-सम्मान की किस तरह से हिफाजत की जानी चाहिए और शत्रुओं को किस तरह से ठिकाने लगाना चाहिए। भारतीय राजनेता तो सिर्फ बोलने में माहिर हैं। जब-जब कोई हमला होता है तब-तब इनके नेत्र और मुंह खुलते हैं। कुछ दिन बाद इन्हें कुछ भी याद नहीं रहता। दस साल तो बहुत बडी बात है। एक तरफ ओबामा हैं जिन्होंने लगातार दुश्मन का पीछा किया और उसे मार गिराने के बाद ही राहत की सांस ली। दूसरी तरफ हमारे यहां के राजनेता हैं जिन्हें अंधाधुंध दौलत बटोरने से ही फुरसत नहीं मिलती। ऐसे में आतंकवादियों और राष्ट्रद्रोहियों को क्या खाक ढेर कर पायेंगे। इतिहास गवाह है कि अथाह धन और वोट बैंक के लिए देश के अधिकांश नेता कोई भी खेल खेल सकते हैं। यही वजह है कि वर्षों बीत गये पर अफजल गुरु को फांसी पर नहीं चढाया गया। कसाब भी जेल में ऐश करते-करते अपनी मौत मर जाएगा पर उसे फांसी पर नहीं लटकाया जायेगा। भारत के बारे में अमेरिका की संसद में कहा भी जा चुका है कि यह देश केवल दुश्मनों की मार खा सकता है पर उन्हें सबक नहीं सिखा सकता। यह कडवी सच्चाई है लेकिन इस देश की आम जनता यह कतई नहीं बर्दाश्त कर सकती कि उसके नेताओं की ढुलमुल नीति की वजह से देश की ऐसी शर्मनाक छवि बने। पाकिस्तान में लादेन के मारे जाने के बाद खुद पाकिस्तान भी पूरी तरह से बेनकाब हो गया है। दहशतगर्दों का सुरक्षित ठिकाना है पाकिस्तान। ऐसे में इस देश पर अब यकीन करना सरासर बेवकूफी होगी। पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ और वर्तमान राष्ट्रपति जरदारी और प्रधानमंत्री युसुफ रजा गिलानी की तरफ से हमेशा यही कहा जाता रहा कि लादेन का उनके देश में होने का कोई सवाल ही नहीं उठता। पाकिस्तान के शहर एबटाबाद में लादेन के फ़ना कर दिये जाने के बाद यह खुलासा भी हो गया है कि पाकिस्तान हर दर्जे का झूठा और मक्कार देश है। १९९३ के बम विस्फोटों को अंजाम देने वाले दाऊद इब्राहिम, टाइगर मेमन, छोटा शकील, अयूब मेमन और उनके साथियों को पाकिस्तान सोलह-सत्रह साल से पनाह दिये हुए है। भारत की खुफिया एजेंसियां दाऊद इब्राहिम के विभिन्न पासपोर्ट और ठिकानों का भी खुलासा करती चली आ रही हैं। भारत सरकार बीस मोस्ट वांटेड आतंकवादियों को सौंपने की मांग करते-करते थक गयी है पर पाकिस्तान एक ही रट लगाये है कि वह खुद आतंकवाद से लहुलूहान है और उस पर बेवजह लांछन लगाये जाते हैं। लादेन के बारे में भी उसका यही राग था। सात समंदर पार बैठे अमेरिका ने पाकिस्तान की छाती पर चढकर उसके झूठ का पर्दाफाश कर दिया और हिदुस्तान पडोसी होने के बावजूद भी कुछ नहीं कर पाया! इस कुछ न कर पाने की शर्मिंदगी नेताओं को भले ही न हो पर आम जनता को तो है। उसके मन में बार-बार यह सवाल गूंजता रहता है कि क्या हम कायर हैं...? पाकिस्तान के परमाणु बमों के खौफ के चलते हमने अपने हाथ और पैर बांध लिये हैं और पाकिस्तान और उसके पाले-पोसे आतंकियों को हिं‍सा और आतंक का नंगा नाच करने की खूली छूट दे चुके हैं?

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