Thursday, July 21, 2011

जरूरी है जयचंदो की शिनाख्त

खबर है कि भारत सरकार ने हाल ही में दो अत्याधुनिक विमान खरीदें हैं। हर तरह के सुरक्षा उपकरणों से सुसज्जित इन विमानों की कीमत सैकडों करोड रुपये है। इन्हें खासतौर पर राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री के लिए मंगवाया गया है ताकि उडान के दौरान उन पर कोई आंच न आए। इस देश में १० करोड ऐसे बदनसीब हैं जिन्हें भरपेट खाना नहीं मिल पाता। खुले आकाश के नीचे अपनी रातें गुजारने वालों की संख्या भी बेहिसाब है। आम लोगों की सुरक्षा का कहीं अता-पता नहीं है। शासकों के पास इनकी चिं‍ता करने का समय ही नहीं है। वे अपनी ही लडाई में उलझे हैं। इस मनमोहन सरकार का क्या हश्र होगा कुछ भी समझ में नही आ रहा है। यह तय है कि इससे कोई भी खुश नहीं है। चारों तरफ असंतोष के बादल मंडरा रहे हैं। सरकार के प्रति लोगों का विश्वास इस कदर घट चुका है कि अब वे मानने लगे हैं कि यह सरकार उनके किसी काम की नहीं। पर कोई विकल्प भी नहीं है। आखिर करें तो क्या करें! मुंबई में हुए सीरियल बम धमाकों ने तो जैसे लोगों को जागने के लिए विवश कर दिया है। जागे हुए लोग स्पष्ट देख रहे हैं कि आतंकवादियों से निपटने के लिए यह सरकार खुद को तैयार नहीं कर पा रही है। इच्छाशक्ति का तो जैसे दिवाला ही पिट गया है। देश में जितनी बार भी बम धमाके हुए हैं सभी में कहीं न कहीं इनके पीछे पाकिस्तान खडा दिखायी दिया है पर मनमोहन सरकार हाथ पर हाथ धरे रहने के सिवाय और कुछ भी नहीं करना चाहती। कांग्रेसी जिस राहुल गांधी को येन-केन प्रकारेन देश का प्रधानमंत्री बनाने पर तुले हैं वे कहते हैं कि देश में होने वाली सभी आतंकवादी घटनाओं को रोकना संभव नहीं है। कांग्रेसियों के इस भावी प्रधानमंत्री ने यह कहकर देशवासियों को अचंभे में डाल दिया है। राहुल गांधी से तो लोग कुछ और ही उम्मीद लगाये हुए थे। उनका बयान यह कहता प्रतीत होता है कि सरकार के पास और भी कई काम हैं। यही एक समस्या नहीं है जिसपर वह हर वक्त माथापच्ची करती रहे। देशवासी मनमोहन सरकार की कमजोरी से अच्छी तरह से वाकिफ हो गये हैं। यही कमजोरी है जिसके चलते आतंकियों के मंसूबे आसानी से पूरे होते चले आ रहे हैं और सरकार चलानेवाले जख्मों पर मरहम लगाना छोड पडौसी देश के हौसले बढाने के काम में लगे हैं। १३ जुलाई को हुए मुंबई बम धमाकों में अपनी जान गंवाने वाले मृतकों के परिजनों और घायलों के दिल पर क्या बीती होगी जब उन्होंने कांग्रेस के महान नेता दिग्विजय सिं‍ह के यह बोलवचन सुने होंगे कि इन धमाकों के पीछे हिं‍दू कट्टरवादियों का हाथ हो सकता है। बिना किसी सबूत के इतनी बडी बात कह गुजरने वाले नेताजी के लिए तो यह रोजमर्रा का काम है पर जिन्होंने अपनों को खोया है उनके लिए तो यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं हो सकती। इस तरह की भ्रामक बयानबाजी करने वाले नेताओं की कौम यह भूल गयी है कि उनके यही बयान आतंकवाद के पोषक पाकिस्तान तक यह संदेश पहुंचाते हैं कि हिं‍दुस्तान के नेता तो एक दूसरे पर कीचड उछालते रहते हैं। इनमें एकता का नितांत अभाव है इसलिए इनके देश में बम-बारुद बिछाते रहो और इन्हें आपस में लडाते रहो। पाकिस्तान अपने मकसद में कामयाब होता चला आ रहा हैं। ये नेताओं के ही बयान हैं जो देशवासियों के दिलों में भी एक-दूसरे के प्रति संदेह के बीज बोने का भी काम करते हैं। आतंकवाद से लडने के लिए सही सोच और सही राह पर चलने की बजाय राजनीतिक रोटियां सेंकने में लगे नेताओं को अहमदाबाद की रेशमा से सबक लेना चाहिए जिसने देशभक्ति का अद्वितीय उदाहरण पेश किया है। अहमदाबाद में शहजाद नामक एक शख्स को गिरफ्तार किया गया है जो अवैध हथियारों को बेचने के साथ-साथ आतंक और हिं‍सा फैलाने के लिए अपने घर में ही बम बनाया करता था। यह लगभग निश्चित है कि उसकी इस कारस्तानी से कुछ लोग तो जरूर वाकिफ रहे होंगे पर किसी ने भी उसके इस राष्ट्रद्रोही कृत्य का पर्दाफाश करने की हिम्मत नहीं दिखायी। आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त शहजाद का भंडाफोड करने की पहल की उसी की पत्नी रेशमा ने। रेशमा ने पुलिस को फोन पर बताया कि उसका पति बम बनाता है। पुलिस ने शहजाद को आठ बमों के साथ गिरफ्तार भी कर लिया है। रेशमा ने अपने पति को नहीं, एक राष्ट्रद्रोही को सीखंचों के पीछे पहुंचाने में अहम भूमिका निभायी है। इसके लिए उसकी जितनी भी प्रशंसा की जाए कम होगी। यह तो तय हो चुका है कि आतंकवादियों और अपराधियों का कोई धर्म नहीं होता। न ही उनका किसी से कोई रिश्ता-नाता होता है। पर अक्सर देखा गया है कि अधिकांश लोग अपने आसपास चलने वाली संदिग्ध गतिविधियों को जानबूझकर या फिर भय के चलते नजरअंदाज कर देते हैं। आगे जाकर यही गलती बहुत भारी पडती है। लोग यह मानकर चलते हैं कि किसी को पकडने या पकडवाने का काम तो पुलिस के जिम्मे है। हम क्यों बेकार में आफत मोल लें। पर इस तथ्य को याद रखें कि देश की सुरक्षा एजेंसियां शक के आधार पर विदेशी चेहरों से तो पूछताछ कर सकती हैं पर अपने ही देश के हर नागरिक को संदेह के आधार पर निशाना नहीं बना सकतीं। जयचंद तो कहीं भी हो सकते हैं। हजारों मील बैठे मौत के सौदागरों के हाथ इतने लंबे हैं कि वे जयचंदो तक अपनी पहुंच बना ही लेते हैं। गद्दारों के ईमान को खरीदना बहुत आसान होता हैं। आसपास के गद्दारों की भी शिनाख्त होना निहायत जरूरी है और यह काम हम सबको मिलजुल कर करना होगा। नेताओं की तरह हवा में तीर छोडने से बात नहीं बनेगी...।

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