Thursday, July 7, 2011

कुछ तो करो सरकार!

विदेशों में जमा कालाधन वापस न लाने पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगायी है। फटकार तभी लगायी जाती है जब कोई सुन कर भी अनसुना कर देता है। देश की सरकार के भी यही हाल हैं। अंधी और बहरी सरकार के मुंह पर तमाचा मारते हुए उच्चतम न्यायालय ने विदेशों में जमा काले धन की जांच और उसे वापस लाने के उपायों की निगरानी के लिए एक उच्चस्तरीय विशेष जांच दल का गठन कर यह संकेत भी दे दिये हैं कि अगर शासक इसी तरह से सोये रहे तो उसे ही पहल करनी पडेगी। वैसे सरकार भी कम चालाक नहीं है। वह भी हमेशा यही कहते नहीं थकती कि उसे भी देश की चिं‍ता है और वह भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने और काले धन को वापस लाने की मंशा रखती है। सरकार यह संकेत देना भी नहीं भूलती कि भ्रष्टाचार को रातोंरात खत्म नहीं किया जा सकता। सरकार कहती तो बहुत कुछ है पर करती कुछ खास नहीं। पहाड को हिलाने के लिए उंगली लगाना काफी नहीं होता। पर सरकार का तो कुछ ऐसा ही रवैय्या दिखायी देता हैं। सरकारें पता नही इतनी बेरहम और असंवेदनशील क्यों हो जाती हैं कि वे अपने ही देश के करोडों लोगों की गरीबी और बदहाली को नजर अंदाज कर चंद लोगों की तिजोरियां भरने के स्वार्थ में फंस कर रह जाती हैं! यह देश गरीब तो कतई नहीं है। अगर गरीब होता तो इसकी दौलत विदेशों में नही सड रही होती। अगर यह गरीब होता तो मंदिरों और देवालयों में अरबों-खरबों के हीरे-जवाहरात और सोना-चांदी ना भरे पडे होते। दरअसल इस देश को गरीब बनाया है उस सोच ने जो इंसानों को तो कुचल डालना चाहती है पर बाबाओं और पत्थर की मूर्तियों को पूजते रहना चाहती है। उसके लिए जीते जागते इंसानों की कोई कीमत नहीं है। इस देश में न जाने कितने ऐसे मंदिर और अखाडे हैं जहां अरबों-खरबों के भंडार भरे पडे हैं। कुछ पाखंडी साधु-संन्यासी और पंडे इस अपार धन-दौलत का सुख भोग रहे हैं और देश की गरीबी को चिढा रहे हैं। इन दिनों श्री पद्मनाभ स्वामी मंदिर का नाम देश और दुनिया में छाया हुआ है। अभी तक तो यह मंदिर देश में भी उतना जाना-पहचाना नहीं था। इस मंदिर से मिले खरबों रुपये के खजाने ने हर किसी को चौंका कर रख दिया है। एक लाख करोड रुपये कम नहीं होते। इनसे लाखों लोगों का जीवन संवर सकता है। इस मंदिर के तहखानों में से जो बेहिसाब दौलत निकली है वह तो कुछ भी नहीं है। अभी तो असली रहस्य से पर्दा उठना बाकी है। मंदिर के खजाने को लेकर देश भर में बहसबाजी का दौर भी चल पडा है। कई लोग यह चाहते हैं कि इस धन का जन कल्याण हेतु सदुपयोग होना चाहिए। तर्कशास्त्री यू. कलनाथन जैसे लोगों का मानना है कि यह धन भी इस देश के लोगों का है इसलिए इसे उनके कल्याण के लिए खर्च करने में कोई हर्ज नहीं है। वैसे भी जो धन किसी के काम न आए और पडे-पडे सड जाए उसका क्या फायदा? हीरे-जवाहरात, स्वर्ण मुद्राएं, सोने की ईटों और नोटों की गड्डियां किसी संग्रहालय या प्रदर्शनी में रखने की चीज़ नहीं हैं। परंतु इस देश में अपने ही तौर तरीकों के साथ चलने वालों की भरमार है। तभी तो लोगों के कल्याण की बात करने वाले तर्कशास्त्री का विरोध किया जाता है और उन्हें ठिकाने लगाने की कोशिश में उनके घर में तोडफोड और आगजनी की जाती है। तर्क शास्त्री को यह बात भी समझा दी जाती है कि इस देश में अपने दिल की बात उजागर करना गुनाह है। सुप्रीम कोर्ट की मेहरबानी से अभी तो एक ही मंदिर के तहखानों ने इतनी दौलत उगली है जिससे देश के प्रदेश केरल, जहां पर यह मंदिर स्थित है का सारा कर्ज चुका कर प्रदेश के चेहरे की रौनक बढायी जा सकती है। इसी देश में शिरडी का साई मंदिर, मुंबई का सिद्धि विनायक, तिरुपति बालाजी, माता वैष्णोदेवी, श्री सबरीमाला संस्थान जैसे सैकडों मंदिर और पूजालय हैं जहां हीरे-जवाहरात, स्वर्ण मुद्राओं, सोने की इंटों और नोटों के अंबार लगे हैं। इसी देश का दूसरा चेहरा है जहां गरीबी, बदहाली और भूखमरी का साम्राज्य है। न जाने कितने युवक रोजगार न मिलने के कारण अपराधी बनने को विवश हो जाते हैं। देश में आज समस्याओं का अंबार लगा है। अधिकांश समस्याएं धन के अभाव के चलते बनी हुई हैं। देश के साधु-संतो और बाबाओं के साथ-साथ मंदिरों में जो दौलत भरी पडी है उसे उजागर करना और जनहित के काम में लाया जाना वक्त की मांग है। यह धन और दौलत इस देश का कायाकल्प कर सकते हैं। इंसानों की दुनिया में इंसानों से बढकर और भला कौन हो सकता है! जो लोग यह कहते हैं कि मंदिरों की तमाम दौलत भगवान की है तो वे यह क्यों भूल जाते हैं कि इंसानों को भी तो भगवान ने ही पैदा किया हैं। कोई भी पिता अपनी औलादों को भूख से बिलबिलाते नहीं देख सकता। अब यह सरकार सोचे कि उसे क्या करना है। जनता को भी जागना होगा। विदेशों में जमा काला धन तो जब आयेगा तब आयेगा पर देश में जहां-तहां बेकार पडे धन की अनदेखी कब तक होती रहेगी?

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