Thursday, October 20, 2011
पर्दे के पीछे के शिकारी
लोग हैं कि चैन से जीने नहीं देते। बोलो तो तकलीफ। चुप रहो तो तरह-तरह के शक-शुबहा। अन्ना हजारे पिछले कुछ महीनों से लगातार बोल रहे थे। समझदार हैं, इसलिए उन्होंने जान लिया कि लोग अब बोर होने लगे हैं। हर मामले में उनकी टांग फंसाई कई लोगों को रास नहीं आ रही है। उनके साथी प्रशांत भूषण पर भी जो हमला हुआ उससे भी वे सोचने को विवश हो गये कि अगर ऐसे ही चलता रहा तो बात बिगड सकती है। बात न बिगडे इसलिए उन्होंने कुछ दिनों तक बात ही न करने का निर्णय ले डाला। अन्ना के मौन व्रत धारण करने के बाद अन्य लोगों ने धडाधडा बोलना शुरू कर दिया। अन्ना ने मौन व्रत धारण करने से पहले जब यह कहा कि स्वास्थ्य और आत्मिक शांति के लिए वे यह मार्ग अपनाने जा रहे हैं तो कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह चुप नहीं रह पाये। उन्होंने गोली दागी कि झूठ बोल रहे हैं अन्ना। भ्रष्टाचार के संगीन आरोपों के चलते जेल भेज दिये गये कर्नाटक के भाजपाई पूर्व मुख्यमंत्री बी.एस.येदियुरप्पा को लेकर दागे जाने वाले सवालों से बचने के लिए उन्होंने मौन साध लिया है। आरोपों-प्रत्यारोपों के इस जमाने में असली सच की तह तक पहुंच पाना बेहद मुश्किल होता चला जा रहा है। बहरहाल, अन्ना टीम के एक दमदार सदस्य हैं संतोष हेगडे जिनके चलते येदियुरप्पा को यह दिन देखने पडे हैं। उन्होंने बडी ही वजनदार बात कही है कि जरूरत से ज्यादा बोलने पर बेशुमार गलतियां होती चली जाती हैं। वैसे चुप्पी के भी कई मायने होते हैं। यह चुप्पी ही है जो कुछ लोगों के चेहरे पर खूब फबती है। अपने देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह अक्सर चुप रहते हैं। पर लोग हैं कि उसमें भी अर्थ खोजते रहते हैं। देश और दुनिया के कई महानुभावों को उनकी मंद-मंद मुस्कराहट और चुप्पी बहुत भाती है। वे चाहते हैं कि हिंदुस्तान का यह पी.एम. यूं ही अपना काम करता रहे। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा उनकी खामोशी के जबरदस्त मुरीद हैं। वे यह रहस्योद्घाटन भी कर चुके हैं कि वैसे तो मनमोहन सिंह बोलते नहीं पर जब बोलते हैं तो उन्हें पूरा संसार सुनता है। वैसे यह कला हर किसी के नसीब में नही होती। दिग्विजय सिंह जैसे लोग जब बोलते हैं तो लोग सुनते कम और खीजते ज्यादा हैं।अन्ना कांग्रेस पर जब खुलकर तीर चलाने लगे तो दिग्गी राजा उन्हें भाजपा और संघ के हाथों की कठपुतली घोषित करने लगे। प्रशांत भूषण ने कश्मीर में जनमत-संग्रह की फुलझडी क्या छोडी कि जहां-तहां बम फटने लगे। कुछ लोगों ने प्रशांत भूषण को सुप्रीम कोर्ट के उनके चेंबर में जा घेरा और घूसों और मुक्कों की बरसात कर दी। अपने देश में ऐसे पच्चीस-पचास बुद्धिजीवी हैं जो मानवाधिकार के नाम पर ऊलजलूल बकवास करते रहते हैं। प्रशांत भूषण के देश को तोडने और आहत करने वाले बयान ने अन्ना को भी हैरत में डाल दिया। मौनव्रत में रहने के बावजूद वे अपना आक्रोश दबा नहीं पाये। उन्होंने अपने ब्लॉग पर लिखा कि मैं आज भी कश्मीर के लिए पाकिस्तान से लडने और अपनी कुर्बानी देने के लिए सहर्ष तैयार हूं। उन्होंने देशवासियों को याद दिलाया कि वे देश के सजग सैनिक रहे हैं और भारत-पाक युद्ध में भाग लेकर अपने माथे पर गोली भी झेल चुके हैं। उस गोली का निशान आज भी उनके माथे पर कायम है। यकीनन अन्ना का देश प्रेम बेमिसाल है। ऐसे में प्रशांत भूषण जैसे देश तोडक मनोवृत्ति के शख्स का उनकी टीम में रहना नहीं सुहाता। अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अर्थ यह तो नहीं है कि आप कश्मीर को भारत से अलग करने की बात करने लगें। प्रशांत भूषण माओवादियों के पक्ष में भी निरंतर बयानबाजी कर देशवासियों को निराश करते रहे हैं। पर फिर भी लोकतांत्रिक व्यवस्था में असहमत होने पर हिंसा का मार्ग अपनाना कतई उचित नहीं लगता। उत्तर प्रदेश की यात्रा के दौरान टीम अन्ना के अरविंद केजरीवाल पर चप्पल फेंक दी गयी। उन पर चप्पल फेंकने वाले युवक जितेंद्र पाठक का कहना है कि केजरीवाल देश की जनता को बरगलाने में लगे हैं। कल तक इसी युवक को केजरीवाल में देश को जगाने वाला एक देशभक्त नजर आ रहा था। वह भ्रष्टाचार के खिलाफ दिल्ली में चले अन्ना के आंदोलन में भी भाग ले चुका है। प्रशांत भूषण पर हमला करने वाला तेजिंदर सिंह बग्गा भी अन्ना हजारे के समर्थन में तिहाड जेल के बाहर जोरदार प्रदर्शन कर चुका है। गजब की सच्चाई तो यह भी है कि जितेंद्र पाठक कांग्रेस पार्टी और बग्गा भारतीय जनता युवा मोर्चा की कार्यकारिणी में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करवा चुके हैं। ऐसे में यह भी लगने लगा है कि भ्रष्टाचार के खिलाफ चलायी जा रही अन्ना हजारे की मुहिम को राजनीति के शिकारी लहुलूहान कर खत्म कर देने पर उतारू हैं। अरविंद केजरीवाल पर चली चप्पल को नजअंदाज नहीं किया जा सकता। इस चप्पल को जिस हाथ ने उछाला है उसके पीछे और भी कई दिमाग हो सकते हैं। इनकी शिनाख्त करना बेहद जरूरी है। इस देश में कई ताकतें ऐसी हैं जो भ्रष्टाचार के रावण का दहन नहीं होने देना चाहतीं। इसलिए वे भ्रष्टाचार के अंधेरे के खिलाफ मशाल उठा कर चल रहे हर चेहरे को संदिग्ध दर्शाने पर तुली हैं। हम मानते हैं कि इस दुनिया के हर इंसान में कोई न कोई छोटी-मोटी कमी और कमजोरी होती है पर इसका अर्थ यह नहीं कि जो काम अभी तक किसी ने नहीं किया हो, उसी काम को करने के लिए अगर देश के चंद जुनूनी चेहरे सामने आये हैं तो उनकी हौसला-अफजाई करने की बजाय बेवजह टांग खिंचाई की जाए। ऐसे में तो असली समस्या धरी की धरी रह जाएगी और पर्दे के पीछे बैठकर तीर चलाने वालों का मकसद पूरा हो जायेगा। दरअसल अब वो समय आ गया है जब इस देश की आम जनता को साजिशकर्ताओं की अनदेखी कर भ्रष्टाचार के खिलाफ लडने के लिए आगे आने वाले योद्धाओं का भरपूर साथ देना चाहिए। सच्चे इंसान की पहचान कर पाना ज्यादा मुश्किल काम नही है। अगर हम इस दायित्व को निभाने में सफल होंगे तभी देश का हर नागरिक खुशहाल होगा और दिवाली की जगमगाहट पर कुछ लोगों का नहीं बल्कि हर किसी का अधिकार होगा। आप सबको दिवाली की हार्दिक शुभकामनाएं।
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