Friday, October 28, 2011
वो दिन कब आयेगा?
कांग्रेस सांसद संजय निरुपम स्वयं को उत्तर भारतीयों का एक सशक्त नेता मानते हैं। कभी शिवसेना में रह चुके हैं इसलिए बोलने के मामले में किसी भी तरह का जोखिम लेने को तत्पर रहते हैं। खुद को चर्चा में बनाये रखने की कला का भी उन्हें खूब ज्ञान है। ऐन दिवाली से पहले नागपुर में हुए उत्तर भारतीयों के सम्मेलन में उन्होंने फरमाया कि मुंबई की लाइफ लाइन उत्तर भारतीयों के हाथ में है। अगर ये लोग एक दिन के लिए भी काम बंद कर दें तो मुंबई ठप हो जाएगी। संजय का तीर निशाने से जरा भी नहीं चूका। शिवसेना के कार्याध्यक्ष उद्धव ठाकरे आग बबूला हो उठे। उनका बयान आया कि मुंबई की रफ्तार को रोकने की कोशिश करने वालों के होश ठिकाने लगा दिये जाएंगे। कार्यकर्ता भी जोश में आ गये। शिवसेना के कार्यकर्ताओं ने मुंबई में विभिन्न स्थानों पर संजय निरुपम के दीवाली की शुभकामनाओं वाले पोस्टरों पर कालिख पोत डाली तो कांग्रेस के कार्यकर्ता भी पीछे नहीं रहे और उन्होंने भी उद्धव ठाकरे के पोस्टरों के साथ जैसे को तैसा की कहावत को चरितार्थ कर अपनी मनोकामना पूरी कर डाली। जुबानी जंग ने पोस्टर जंग की शक्ल अख्तियार कर ली। इसका भी खूब प्रचार हुआ। कांग्रेस और शिवसेना दोनों ने फटाके और फुलझडियां छोडने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। वैसे भी संजय निरुपम जब से कांग्रेस में आये हैं तब से खुद को कांग्रेस का वफादार सिपाही साबित करने के अभियान में लगे हैं। जब वे शिवसेना में थे तब जी भरकर कांग्रेस की ऐसी-तैसी किया करते थे। उनके बुलंद तेवरों को देखते हुए ही उन्हें शिवसेना के मुखपत्र सामना का कार्यकारी संपादक बनाया गया था। उनके संपादकत्व में प्रकाशित होने वाले सामना के अंकों में कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी को भी नहीं बख्शा जाता था। तब शिवसेना उत्तर भारतीयों पर जब-तब टूट पडा करती थी पर संजय निरुपम मौन रहते थे। इसी मौन के इनाम के तौर पर शिवसेना ने उन्हें राज्यसभा का सांसद बनाने का मौका भी दिया था। जब उन्हें लगा कि शिवसेना में ज्यादा दिनों तक दाल नहीं गलने वाली तो उसे नमस्कार कर कांग्रेस का दामन थाम लिया। कांग्रेस ने कुछ साल तक इंतजार करवाया फिर लोकसभा का चुनाव लडवाया। शिवसेना के समय की बोयी फसल काम आयी और वे चुनाव जीत गये। वर्तमान में वे मुंबई में कांग्रेस के सांसद हैं और उनकी सोच और भाषा बदल गयी है। अब वे उत्तर भारतीयों के जबरदस्त हितैषी हो गये हैं। इसी का नाम राजनीति है जो फिलहाल इस देश में चल रही है। शिवसेना सुप्रीमों बाल ठाकरे ने अपने अखबार सामना की सम्पादकीय में समर्थकों को आह्वान किया कि इस बार कांग्रेस नरकासुर का वध करके दिवाली मनाएं।गौरतलब है कि नरकासुर एक राक्षस था, जिसका भगवान श्री कृष्ण ने अपनी पत्नी सत्यभामा की सहायता से संहार किया था। नरकासुर ने सोलह हजार लडकियों को कैद कर रखा था और उन पर बेहद जुल्म ढाता था। श्री कृष्ण ने सभी लडकियों को जालिम की कैद से मुक्ति दिलवायी थी। इसी उपलक्ष्य में दिवाली के एक दिन पहले नरक चतुर्दशी मनायी जाती है।यह कोई पहला मौका नहीं था जब बाल ठाकरे ने कांग्रेस को निशाने पर लिया हो। उत्तर भारतीयों की तारीफ करना संजय निरुपम को भले ही महंगा न पडा हो पर कांग्रेस के दिग्गज तो हिल ही गये। वैसे भी पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस हिलडुल ही तो रही है। जिसे देखो वही उसकी जमीन खिसकाने पर उतारू है। डॉ. मनमोहन सिंह के राज में जिस तरह से महंगाई में निरंतर इजाफा होता चला जा रहा है उससे आम आदमी बहुत बुरी तरह से खिन्न है। विरोधी दलों और नेताओं को तो जैसे मनचाही मुराद मिल गयी है। जो देशवासी सोचने-समझने में सक्षम हैं वे नेताओं की तमाशेबाजी को देखकर हतप्रभ हैं। मुल्क की मूल समस्याओं पर ध्यान देने और सोचने की किसी भी दल और नेता के पास फुर्सत नहीं दिखती। सभी एक-दूसरे के खिलाफ बयानबाजी में जुटे हैं। भ्रष्टाचार और काला धन देश की सबसे भयंकर समस्याएं है। देश की आधी से ज्यादा जनता वर्तमान व्यवस्था से नाखुश है। कुछ लोगों ने इस काली व्यवस्था को बदलने की ठानी है पर इसमें राजनीति आडे आ रही है। जन आंदोलन करने वालों को तरह-तरह से प्रताडित किया जा रहा है। सत्ता का सुख भोग रहे राजनेता इस तथ्य को भी भूल गये हैं कि आम जनता ने उन्हें भ्रष्ट व्यवस्था को बदलने के लिए चुना है। होना तो यह चाहिए था कि देश की तरक्की के रास्ते में आने वाली समस्याओं को दूर करने के लिए बिना पार्टीबाजी के दलदल में धंसे सभी नेता एक मंच पर खडे नजर आते। पर नजारा तो हैरान और परेशान करने वाला है। भ्रष्टाचार और काले धन के खिलाफ अलख जगाने वालों के खिलाफ भी कुछ चेहरे 'एकजुट' हो चुके हैं। उन्हें हर किसी में खोट नजर आता है। ऐसे में आम जनता के दिमाग में यह सवाल भी कुलबुलाने लगा है कि अगर हिंदुस्तान में सभी चोर और अपराधी हैं तो फिर साधु कौन है? आखिर वो वक्त कब आयेगा जब राजनीति को किनारे रख आम आदमी के हित में सोचा और किया जायेगा?यकीन मानिए अब लोग बयानों और भाषणों से उकता गये हैं। जो जिसके जी में आता है बोल देता है और खुद को नायक का दर्जा देने पर तुल जाता है। देश भर के अखबारों, न्यूज चैनलों में वही नेता छाये नजर आते हैं जो विवाद खडा करने में माहिर हैं। गंभीर और विचारवान नेताओं को हाशिये में डालने और वाचालों की वाह-वाही करने के षडयंत्र को इस देश की आम जनता भी समझने और परखने लगी है इसलिए देश में जनक्रांति के आसार भी नजर आ रहे हैं जिसे न सत्ताधारी भांप पा रहे हैं और न ही वे जो सत्ता हथियाने की फिराक में हैं।
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