Thursday, November 17, 2011

यह कैसा मज़ाक है?

कांग्रेस की सुप्रीमो सोनिया गांधी ने कई दिनों बाद अपनी चुप्पी तोडी। वे मानती हैं कि भाषणबाजी से भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं हो सकता। अपने भाषण में उन्होंने टीम अन्ना को भी नहीं बख्शा। जहां-तहां बोलने के लिए खडे हो जाने वाले अन्ना के साथियों को अपने अंदर झांकने की सलाह भी थकी-हारी सोनिया ने दे डाली। पर यहां कौन किसी की सीख और सलाह पर चलता है। सभी खुद को ज्ञानी-ध्यानी समझते हैं। हर राजनेता को यही लगता है कि वही हिं‍दुस्तान की बागडोर संभालने का असली हकदार है। दूसरे इसे बेच खा रहे हैं और बेच खाएंगे। जिनके पास देश की सत्ता है वो उसे जकडे और दबोचे हुए हैं और दूसरे छीनने-झपटने को बेताब हैं। हर तरफ यही लडाई चल रही है। यह सच्चाई किसी से छिपी नहीं है कि आजादी के ६४ साल गुजर जाने के बाद भी देश के प्रदेश बिहार, उत्तर प्रदेश के लोगों को रोजगार की तलाश में जहां-तहां भटकना पडता है। मायानगरी मुंबई में लाखों बेरोजगारों को पनाह मिलती आयी है। कुछ कर गुजरने की चाह रखने वाले हर मेहनतकश को यह नगरी अपने में समाहित कर लेती है और इतना कुछ दे देती है कि वह यहीं का होकर रह जाता है। पिछले दिनों कांग्रेस सांसद संजय निरुपम ने जब यह कहा कि मुंबई उत्तर भारतीयों की बदौलत ही चलती-फिरती और सांस लेती है तो शिवसेना वालों ने हंगामा खडा कर दिया था। निरुपम से कई कदम आगे बढते हुए कांग्रेस के भावी प्रधानमंत्री राहुल गांधी ने उत्तर प्रदेश में अपने चुनावी मिशन की शुरुआत करते हुए जब जनता को संबोधित करते हुए कहा कि तुम लोग कब तक महाराष्ट्र जाकर भीख मांगोगे और कब तक पंजाब में जाकर मजदूरी कर अपना खून-पसीना बहाते रहोगे तो जैसे बवंडर ही मच गया। सब के सब बौखला उठे। राहुल गांधी युवा हैं और अपनी माताश्री की तरह हर बार किसी और का लिखा भाषण नहीं पढते। उनके अंदर का एंग्री यंगमैन बेकाबू हो जाता है। अच्छे-अच्छे धुरंधर वक्ता भावावेश में अपने शब्दों पर नियंत्रण नहीं रख पाते। राहुल गांधी तो नेता हैं। भीड को देखकर अपना आपा खो बैठना नेताओं की आदत में शुमार होता है। पर राहुल के मुंह से निकले 'भीख' शब्द ने तो जैसे हंगामा ही बरपा दिया। इस बार भी सबसे ज्यादा मिर्ची शिवसेना को ही लगी। उसकी तरफ से प्रतिक्रिया आयी कि जिस उत्तर प्रदेश ने नेहरू गांधी परिवार को सत्ता की भीख दी उन्हीं का वारिस यूपी वालों को 'भिखारी' कह रहा है। रेलवे की नौकरी के लिए साक्षात्कार देने गये उत्तर भारतीयों पर डंडे और मुक्के चला चुकी पार्टी के नेताओं ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश से मुंबई में कोई भीख मांगने नहीं आता। हर कोई मेहनत करके रोजी-रोटी कमाता है। राहुल गांधी ने मेहनत कश देशवासियों का अपमान किया है। देश और प्रदेश के हर कांग्रेस विरोधी नेता को राहुल गांधी पर निशाना साधने का जैसे मौका मिल गया। न्यूज चैनलों पर पक्ष और विपक्ष के नेता आपस में ऐसे भिड गये जैसे किसी तमाशे को अंजाम दिया जा रहा हो। ऐसे तमाशों का अब आम जनता पर कोई फर्क नहीं पडता। उसका सिरदर्द बढाने के लिए ढेरों समस्याएं हैं जो राजनेताओं और सत्ता के निर्मम खिलाडि‍यों की देन हैं।यह भी गौर करने वाली बात है कि ग्रामीण विकास मंत्री जयराम रमेश जब यह फरमाते हैं कि भारत सबसे गंदा देश है तो कहीं कोई हलचल नहीं होती। किसी का मुंह नहीं खुलता!राहुल गांधी जब यह कहते हैं कि उत्तर प्रदेश के हालात देखकर उन्हें गुस्सा आता है तो न जाने कितने लोगों का खून इस सवाल के साथ खौल उठता है कि देश पर पचास साल से ज्यादा समय तक राज करने वाली युवराज की कांग्रेस ने इस प्रदेश को खुशहाल बनाने के लिए आखिर ऐसा क्या किया है कि आज उन्हें यहां की बदहाली पर पीडा हो रही है? केंद्र में उनकी सत्ता है और देश के कैसे हालात हैं क्या उनसे राहुल वाकिफ नहीं हैं? वो जमाना लद गया जब लोग हर नेता पर यकीन कर लेते थे। खुद नेताओं ने ही नेतारुपी जीव की साख लगभग खत्म करके रख दी है। ऐसे में राहुल पर विश्वास करने वाले कम और अविश्वास करने वाले ज्यादा हैं। हर समझदार शख्स जान-समझ रहा है कि राहुल गांधी की नजर भी अगले वर्ष उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनावों पर टिकी है। यहां की जीत ही उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी पर बिठा सकती है। उत्तर प्रदेश ने हमेशा नेहरू और गांधी खानदान को सत्ता और ताकत बख्शी पर इस प्रदेश का चेहरा नहीं बदल पाया। कांग्रेस ने यदि यूपी और बिहार को औद्योगिक राज्य बनाया होता तो यहां के लोगों को कहीं भी जाने की जरूरत न पडती। बाद में इन प्रदेशों की जिन्होंने भी सत्ता संभाली उन्होंने केवल और केवल अपनी तथा आने वाली दस-बीस पुश्तों के लिए सभी इंतजाम कर लिये। बेचारी आम जनता वहीं की वहीं रही। उसे अपना पेट भरने के लिए मुंबई, दिल्ली जैसे महानगरों की खाक छाननी पडी। यह सिलसिला कहां और कब जाकर थमेगा कोई नहीं जानता। उत्तर प्रदेश में कांग्रेस से लोगों का मोहभंग होने के पश्चात समाजवादी पार्टी के मुखिया मुलायम सिं‍ह जब मुख्यमंत्री बने थे तो कुछ उम्मीद जागी थी। समाजवादी समाज के साथ न्याय करेगा और हर प्रदेशवासी के हिस्से में खुशहाली आयेगी। पर कुछ भी नहीं बदला। सिर्फ मुलायम सिं‍ह और उनका परिवार अरबों-खरबों में खेलने लगा। अमर सिं‍ह जैसे दलालों ने जीभर कर चांदी काट ली। भारतीय जनता पार्टी को भी मौका मिला पर वह भी कोई कमाल नहीं दिखा सकी।बहुजन पार्टी की कर्ताधर्ता मायावती की माया तो अपरंपार है। उन्हें मूर्तियां बनवाने और लगवाने से ही फुर्सत नहीं मिलती। वे अपनी करनी से इतना घबरायी हुई हैं कि अपने जीवनकाल में ही अपनी प्रतिमाएं स्थापित किये जा रही हैं। हाथ आये मौके को वे खोना नहीं चाहतीं। दलितों की तथाकथित मसीहा जनता की सेवा किये बिना ही अमर हो जाना चाहती हैं। वे इस दंभ में हैं कि उन्हें उत्तर प्रदेश की सत्ता से हटाना किसी भी राजनीतिक पार्टी के बस की बात नहीं है। बांटो और राज करो के खेल में भी गजब की महारत हासिल कर चुकी हैं वे। राहुल गांधी बहन जी के भ्रम की धज्जियां उडाने पर उतारू हैं। वे उन पर केंद्र से मिलने वाले फंड को हडप कर जाने से लेकर और न जाने कितने आरोप जडते हैं और वे सुने को अनसुना कर उनका मजाक उडाने लगती हैं। दरअसल इन दिनों देश में हर तरफ ऐसा ही कुछ चल रहा है। क्या आपको नहीं लगता कि देश का भी मजाक उडाया जा रहा है?

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