Thursday, November 3, 2011

मगरमच्छों की भीड में एक चेहरा ऐसा भी!

उद्योगपति मुकेश अंबानी ने मुंबई में पांच हजार करोड की गगनचुंबी इमारत तानी तो धन्ना सेठ विजय माल्या को भी जोश आ गया। उन्होंने भी दारू की कमायी से जुटायी अरबों-खरबों की दौलत का जलवा दिखाने के लिए अंबानी की टक्कर की सर्वसुविधायुक्त बिल्डिंग खडी करनी शुरू कर दी। इस देश में ऐसे नजारे आम हैं। धनपति एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए भी कुछ इसी तरह से अपनी धन-दौलत और ताकत का प्रदर्शन करते रहते हैं। वे यह भी याद नहीं रखते कि इस देश की आधी से ज्यादा आबादी गरीबी और बदहाली से जूझ रही है। करोडों भारतीय ऐसे हैं जिन्हें टूटी-फूटी झोपडी तक नसीब नहीं है। स्वार्थी और बेहया उद्योगपतियों की भीड में एक शख्स हमेशा अलग खडा नजर आता है जिसे बार-बार नमन करने को जी चाहता है। विप्रो के अध्यक्ष अजीम प्रेमजी एक ऐसी हस्ती हैं जो दोनों हाथों से कमायी गयी अथाह दौलत को अपने ऐशो-आराम पर लुटाने की बजाय देशवासियों के हित में खर्च करना अपना कर्तव्य और धर्म मानते हैं।अजीम प्रेमजी ने ऐलान किया है कि अगले वर्ष वे देश के सभी जिलों में दो-दो ऐसे स्कूल खोलने जा रहे हैं जिनमें गरीबों के बच्चों की मुफ्त में शिक्षा-दीक्षा उपलब्ध करायी जाएगी। उनकी इस घोषणा और पहल की प्रतिस्पर्धा करने के लिए कोई भी उद्योगपति सामने नहीं आया है। दरअसल अंबानी, माल्या जैसे घोर मतलबपरस्त, अय्याशों के मुंह पर प्रेमजी ने एक तमाचा जडा है जिसे हम और आप तो देख-समझ रहे हैं पर देश को लूटने-खसोटने वाले औद्योगिक घराने जानबूझकर अनाडी और नासमझ बने रहना चाहते हैं। आजादी का असली फायदा तो देश के चंद औद्योगिक घरानों ने ही उठाया है। देश की सबसे बडी बीमारी भ्रष्टाचार के भी असली पोषक यही हैं। सरकारी नीतियों को अपने पक्ष में करने के लिए सांसदों, विधायकों, मंत्रियों, संत्रियों को चारा डालने की जो महारत इन्हें हासिल है, उसका भी कोई सानी नहीं है। यह सच्चाई जगजाहिर है कि अधिकांश उद्योगपति 'चंदे' और 'फंदे' की बदौलत सरकार में अपनी पैठ रखते हैं। सरकार इन पर हर तरह से मेहरबान रहती है। इन्हें अरबों-खरबों की जमीनें पानी के भाव मुहैय्या कराने के साथ-साथ मनचाही सुविधाएं उपलब्ध करवाने में कहीं कोई कमी नहीं की जाती। यहां तक करों में भी अपार छूट दी जाती है। यह मनमाना मुनाफा कमाते हैं और उस मुनाफे का कुछ हिस्सा राजनेताओं और नौकरशाहों तक पहुंचाने के बाद बाकी बचे सारे धन को अपने बाप की जागीर समझने लगते हैं। इतिहास गवाह है कि देश में होने वाले तमाम बडे-बडे घोटालों में उद्योगपतियों राजनेताओं और अफसरों की मिलीभगत रही है। यह लोग कमायी का कोई भी मौका नहीं छोडना चाहते। इसलिए इन्होंने शिक्षाजगत को भी नहीं बख्शा। देश में जहां-जहां राजनेताओं और उद्योगपतियों के द्वारा स्कूल कॉलेज भी चलाये जा रहे हैं जहां पर शिक्षा कम और धंधा ज्यादा होता है। शिक्षण संस्थाओं के नाम पर सरकारी जमीनें हथिया ली जाती हैं और फिर तरह-तरह से लूटमार का सिलसिला शुरू कर दिया जाता है। हाल ही में महाराष्ट्र के विभिन्न सरकारी मान्यता प्राप्त स्कूलों की जांच की गयी तो ऐसे-ऐसे फर्जीवाडे सामने आये कि प्रबुद्धजनों ने माथा पीट लिया। सनद रहे कि देश के इस महाप्रदेश में अधिकांश स्कूल और कॉलेज व्यापारियों के साथ-साथ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस के नेताओं तथा उनके चेले-चपाटों के द्वारा संचालित किये जाते हैं। तथाकथित देशसेवकों के स्कूलों में छात्रों की संख्या बढा-चढा कर दर्शायी जाती है। जिस स्कूल में पचास छात्र पढते हैं वहां पर पांच-सात सौ छात्रों का उपस्थित रहना और पढना-लिखना दर्शाकर शासन के साथ धोखाधडी की जाती है। मुंबई में लगभग चालीस हजार, नागपुर में अस्सी हजार, पुणे में दो लाख, कोल्हापुर में एक लाख, रायगढ में पचास हजार, नांदेड में साठ हजार और जलगांव के विभिन्न स्कूलों में लगभग पचास हजार फर्जी छात्रों के होने का पर्दाफाश होने के बाद भी अभी और आंकडों का आना बाकी है। महाराष्ट्र में पचास लाख फर्जी छात्रों के होने का अनुमान है। इस धोखाधडी की एक खास वजह यह भी है कि महाराष्ट्र सरकार प्रत्येक छात्र के नाम पर कम से कम सौ रुपये प्रतिमाह की नगद सहायता प्रदान करने के साथ-साथ और भी कई तरह के फंड उपलब्ध कराती है। इससे सहज ही अंदाजा लगाया जा सकता है कि शिक्षा की आड में कितना बडा फरेब और घोटाला किया जा रहा है। यह ऐसी ठगी है जिसे सफेदपोश बेखौफ होकर अंजाम देते चले आ रहे हैं। जब महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री के इलाके में ही ऐसे फर्जी स्कूल चल रहे हों तो फिर दूसरों को तो खुद-ब-खुद शह मिल ही जाती है। हालांकि मगरमच्छों के लिए ऐसी लूटमारें कोई खास मायने नहीं रखतीं।मेडिकल कॉलेज, इंजिनियरिंग कॉलेज आदि में जो लाखों-करोडों का गुप्त डोनेशन लिया जाता है उसका आंकडा तो बेहद चौंकाने वाला है। यही अंधाधुंध कमायी ही नेताओं और व्यापारियों को स्कूल कॉलेज खोलने को मजबूर करती है। यह लोग अपनी-अपनी तिजोरियां भरते रहते हैं और शिक्षा का भट्ठा बैठता चला जाता है। गरीबों के बच्चे तो स्कूलों का मुंह तक नहीं देख पाते। कॉलेज तो बहुत दूर की बात है। अजीम प्रेमजी इस सच से वाकिफ हैं। इस खतरनाक सच ने उन्हें यकीनन चिं‍तित और आहत किया होगा तभी उनके दिल-दिमाग में गरीब बच्चों को मुफ्त में शिक्षा दिलाने के लिए स्कूल-दर-स्कूल खोलने का विचार आया है। विप्रो के अध्यक्ष सरकार की कार्यप्रणाली को लेकर भी बेहद चिं‍तित रहते हैं। उनका मानना है कि सरकार और नौकरशाही में निर्णय लेने की क्षमता का जबरदस्त अभाव दिखायी देता है। यही वजह है कि देश के आर्थिक विकास की रफ्तार थम-सी गयी है और महंगाई ने आम आदमी को इस कदर जकड लिया है कि उसका उससे बाहर निकलना मुश्किल हो गया है। हिं‍दुस्तान की सरकार को कौन और कैसे-कैसे चेहरे चला रहे हैं यह बताने और बार-बार दोहराने की तो कोई जरूरत ही नहीं बचती...।

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