Wednesday, January 25, 2012

असली अपराधी कौन है?

हम उत्सव प्रेमी हैं। इसलिए त्योहार मनाना हमारी आदत में शुमार है। स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को भी त्योहारों में शामिल किया जा चुका है। त्योहारों में सिर्फ खुशी तलाशी जाती है। अपनी-अपनी तरह से मौज मजा और आनंद लूटा जाता है। आसपास कौन भूख से कराह रहा है और किसकी अर्थी उठने वाली है, इस पर माथामच्ची करना बेवकूफी माना जाता है। हिं‍दुस्तान के नेताओं ने आम जनता को सपनों के संसार में जीने का हुनर सिखा दिया है। फिर भी सचाई तो सचाई है। उसे कोई कैसे बदल सकता है! हालांकि इस देश के शासक कतई नहीं चाहते कि लोग इस सच को जानें और समझें कि देश की एक चौथाई आबादी भूख और कुपोषण के नुकीले पंजों में फंसी हुई है। मात्र २३ करोड लोगों को ही प्रतिदिन भरपेट भोजन मिल पाता है। जब कि देश की आबादी १२५ करोड से ऊपर पहुंच चुकी है। यानी १०० करोड जनता रईसों के तमाशों के बीच जैसे-तैसे अपने दिन काट रही है। विदेशियों के लिए इस देश की गरीबी किस तरह से मनोरंजन का साधन बन चुकी है उसे जानने के लिए इस खबर से रू-ब-रू होना भी जरूरी है। अंडमान-निकोबार में आदिवासी महिलाओं को गरीबी और भुखमरी के चलते विदेशियों के समक्ष नग्न होकर नाचने को मजबूर होना पडता है। विदेशी इन दृश्यों की वीडियोग्राफी अपने देश में जाकर दिखाते हैं और यह भी बताते हैं दुनिया के सबसे बडे लोकतंत्र का एक चेहरा यह भी है। इस देश के नेता कहते हैं कि देश निरंतर तरक्की कर रहा है। यूनीसेफ के आंकडों के अनुसार तीन साल तक के भारतीय कुपोषित बच्चों की तादाद ४७ प्रतिशत है। देश के ४२ प्रतिशत बच्चों का वजन सामान्य से कम है। हिं‍दुस्तान के प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिं‍ह इसे राष्ट्रीय शर्म के रूप में स्वीकार भी कर चुके हैं। पर इस घोर समस्या का हल शायद उनके पास नहीं है। तभी तो वे यह कहने में संकोच नहीं करते कि देश से गरीबी और भ्रष्टाचार भगाने के लिए मेरे पास कोई जादू की छडी नहीं है। मनमोहन सिं‍ह से देश की निरीह जनता यह जानना चाहती है कि चंद ताकतवर लोगों के पास ऐसी कौन सी जादू की छडी है कि उन्होंने उन्हें तथा उनकी सरकार को सम्मोहित कर रखा है। वे देश की सारी की सारी दौलत समेटे चले जा रहे हैं और आप मुकदर्शक बने हुए है! आपके राज में अमीरों के लिए तो चांदी काटने के अवसर ही अवसर हैं पर मर रहा है देश का आम आदमी। वह स्पष्ट देख रहा है कि उसके खून-पसीने की कमायी भ्रष्टाचार की भेंट चढ रही है। भ्रष्टाचारी फलफूल रहे हैं और कहीं न कहीं कानून व्यवस्था भी उनका साथ देती चली आ रही हैं। धर्म और जाति की राजनीति करने वाले नेता इस हकीकत से अच्छी तरह से वाकिफ हैं कि हिं‍दुस्तान में मुसलमान और जन जातीय परिवार ही सबसे ज्यादा गरीबी के शिकार हैं। इन्हीं के परिवारों के बच्चों को कुपोषण का शिकार होकर असमय मौत के मुंह में समाना पडता है।राजनीति के खिलाडि‍यों को चुनाव के समय ही दलितों और पिछडों की याद आती है। इसी मौसम में ही उन्हें दलितों, शोषितों और मुसलमानों की तमाम समस्याएं दिखायी देने लगती हैं। वे हमेशा इस हकीकत से मुंह मोडे रहते हैं कि यह गरीबी ही है जो अच्छे भले परिवार के युवकों को अपराधी बना रही है। किसी के हाथ में बम तो किसी के हाथ में बंदूक थमा रही है। आज देश जिन नक्सलियों से आहत और परेशान है वे भी गरीबी और बदहाली की देन हैं। पुरानी कहावत है कि पेट की भूख इंसान को शैतान बना देती है। अच्छा भला इंसान कानून को अपने हाथ में लेने को विवश हो जाता है। काश! इस देश के शासक इस सच को समझ पाते और उनका हर कदम देश की गरीबी, भूखमरी, असमानता और बदहाली को मिटाने की राह की तरफ बढता। यहां तो राजनेताओं को घपलों और घोटालों से ही फुर्सत नहीं मिलती। पहले लाखों के भ्रष्टाचार की खबरें लोगों को चौंकाती थी पर अब अरबों-खरबों की लूट किसी चेहरे पर कोई शिकन नहीं लाती। दरअसल लोग अंदर ही अंदर खौल रहे हैं। नेताओं पर जहां-तहां बरसते जूते-चप्पल आम लोगों के गुस्से की निशानी हैं। वो दौर बहुत पीछे छूट गया है जब जनता समाज सेवकों और नेताओं को फूल की मालाओं से लाद दिया करती थी। ऐसा नहीं है कि देश का हर नेता बेईमान है। पर ईमानदारों को भी भ्रष्टों के पाप का फल इसलिए भुगतना पड रहा है, क्योंकि वे तटस्थ हैं। देखकर भी चुप हैं!आकडे चीख-चीख कर बता रहे हैं कि जब से देश आजाद हुआ है तब से लेकर अब तक लगभग ५० बडे घोटाले हो चुके हैं और ६५ लाख करोड रुपये भ्रष्टाचारी नेताओं और नौकरशाहों की तिजौरियों और बैंकों में समा चुके हैं। यह धन अगर देश के विकास में लगा होता तो कहीं भी गरीबी, बदहाली, लूटपाट, मारकाट और तरह-तरह की अपराधगिरी नजर नहीं आती। आज देश के हालात यह हैं कि एक तरफ ऊंची-ऊंची अट्टालिकाएं हैं तो दूसरी तरफ झुग्गी झोपडि‍यों का अनंत संसार है जहां बदहवास, भूखे नंगे भारतवासी अपनी किस्मत को कोसते रहते हैं। अट्टालिकाओं में रहने वालों को अपने आसपास की सचाई से कोई लेना-देना नहीं है। यह भी गजब की विडंबना है कि इस देश का हर नागरिक तीस हजार के विदेशी कर्जे से लदा हुआ है। इस कर्जे की रकम को डकारने वाले मजे से जी रहे हैं और जिन्होंने कुछ लिया-दिया नहीं है उन्हें सजा भुगतनी पड रही हैं। यह भी कम चौंकाने वाली बात नहीं है कि हर नेता दूसरे पर उंगली उठाता है और खुद को पाक-साफ और सामने वाले को अखंड भ्रष्टाचारी बताता है। देश में चल रहे इस तमाशे पर हास्य व्यंग्य कवि घनश्याम अग्रवाल की यह पंक्तियां कितनी सटीक बैठती है:
''बेताल के
इस सवाल पर
विक्रम से लेकर
अन्ना तक
सभी मौन हैं,
कि जब सारा देश
भ्रष्टाचार के खिलाफ है
तब स्साला,
भ्रष्टाचार करता कौन है?''

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