Tuesday, February 7, 2012
ललचाने और भरमाने का खेल
लीडरों को लीडरी करनी है और किसी भी हालत में सत्ता का सुख भोगना है इसलिए वे न जाने कैसे-कैसे वादे करते चले जा रहे हैं। उन्हें इस बात की कतई चिंता-फिक्र नहीं है कि वे इन वादों को कैसे पूरा कर पायेंगे। उन्हें लगता है यदि मतदाताओं को प्रलोभन नही देंगे तो उनकी नैय्या पार नहीं हो पायेगी। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो उत्तरप्रदेश की सत्ता हथियाने के लिए किसी भी हद तक जाने को तैयार हैं। अपनी चुनावी रैलियों में उन्होंने मतदाताओं के समक्ष यहां तक कह डाला कि मायावती की सरकार के कार्यकाल में जिन महिलाओं के साथ दुराचार की घटनाएं हुई हैं उन्हें समाजवादी पार्टी सत्ता में आते ही नौकरियां प्रदान करेगी। साथ में उन्होंने यह भी वादा किया कि वे भुक्तभोगी महिलाओं को जब तक रोजगार नहीं दे पायेंगे तब तक उन्हें एक हजार रुपये प्रतिमाह भत्ता देते रहेंगे। मुलायम सिंह का यह शर्मनाक प्रलोभन दर्शाता है कि सत्ता को पाने के लिए नेता नाम का जीव किस हद तक गिर सकता है। जिन्हें कानून व्यवस्था में सुधार की बात करनी चाहिए और यह भरोसा दिलाना चाहिए कि यदि वे सत्ता में आते हैं तो महिलाओं पर आंख उठाने वालो के हाथ-पैर कटवा कर रख देंगे वही यह कह रहे हैं कि आतंक और दुराचार की शिकार महिलाओं को नौकरी और भत्ता देंगे! आखिर यह कैसा मजाक है? यकीनन रक्षा करने की बजाय असुरक्षा को बढावा देने की नीति ही मुलायम जैसे नेताओं की राजनीति है जिसके चलते उत्तरप्रदेश गुंडों और दुराचारियों का सुरक्षित ठिकाना बनकर रह गया है। मुलायम सिंह के लाडले अखिलेश यादव भी कम नहीं हैं। उन्हें जब और कुछ नहीं सूझा तो वे अपने चुनावी भाषणों में यह कहते नजर आये कि मायावती ने तो शाम की दवा भी महंगी कर दी है। जो गरीब अपनी थकान मिटाने के लिए बडी आसानी से अद्धा या बोतल खरीदने की ताकत रखते थे अब पौए के लिए भी मोहताज हैं। अगर हमारी पार्टी की सरकार आती है तो गरीबों की शामें रंगीन हो जाएंगी। मायावती को तो गरीबों की चिंता नहीं है। हम ही हैं जो हर किसी के असली शुभचिंतक हैं। इतिहास गवाह है कि जब-जब चुनाव आते हैं तब-तब हर राजनीतिक पार्टी गरीबों और अल्पसंख्यकों की शुभचिंतक बन जाती है। भारतीय जनता पार्टी ने गरीब छात्रों को लैपटॉप देने का वादा किया है। ऐन चुनाव के मौके पर अल्पसंख्यकों के आरक्षण का ऐलान करने वाली कांग्रेस पार्टी ने बीस लाख लोगों को रोजगार देने का डंका पीटा है।यह कितनी गजब की बात है कि उत्तरप्रदेश में अकेले बसपा ही नहीं, कांग्रेस, सपा और भाजपा भी राज कर चुकी हैं। इनके हाथ में जब सत्ता थी तब तो यह पार्टियां कुछ नहीं कर पायीं और अब फिर से सत्ता पाने के सपने को येन-केन-प्रकारेण साकार करना है तो जनता को सपने दिखाये जा रहे हैं। लालच पर लालच दिये जा रहे हैं। भाजपा तथा कांग्रेस की तो देश के अन्य प्रदेशों में भी सरकारें हैं और वहां के गरीब बच्चों को भी लैपटॉप की दरकार है और बेरोजगारों को रोजगार की तलाश है। वहां पर उन्होंने ऐसी पहल और चमत्कार क्यों नहीं दिखाया? यह सचाई जगजाहिर है कि जहां पर यह दल सत्ता पर काबिज हैं वहां के हाल बडे ही बेहाल हैं और जहां की सत्ता इन्हें झटकनी है वहां का कायाकल्प कर देने का दावा करते नहीं थकते हैं। देश की साठ प्रतिशत से अधिक गरीब जनता को सबसे पहले रोटी, कपडा और मकान के साथ-साथ शिक्षा की सख्त जरूरत है। पर इस तरफ किसी पार्टी का ध्यान नहीं है। सस्ता अनाज का प्रलोभन देकर जनता को मोहताज बनाने की साजिश की जा रही है। छत्तीसगढ में गरीबों को तीन से चार रुपये किलो चावल उपलब्ध करवाने के बाद भी प्रदेश में कोई परिवर्तन नहीं हो पाया है। सस्ता अनाज गरीबों तक पहुंचने से पहले भ्रष्टाचारी व्यापारियों तक पहुंच जाता है। सरकारी योजनाओं का असली फायदा तो व्यापारी और अधिकारी उठाते हैं।दरअसल चुनावी दौर में की जाने वाली लगभग सभी घोषणाएं मात्र छलावा साबित होकर रह जाती हैं। जिस पार्टी की जहां सरकार बनती है वहां पर उसके कार्यकर्ताओं और अन्य चहेतों की लूटमारी शुरू हो जाती है। इस लूटमार को करवाना शासकों की मजबूरी होता है। वे चाहकर भी इस पर कोई अंकुश नहीं लगा पाते। आम जनता तो लूट के तमाशों को देखते रहने को विवश होती है।आज की तारीख में देश का ऐसा कोई प्रदेश नहीं है जो कर्ज से न लदा हो। उत्तरप्रदेश, जहां की सत्ता पर काबिज होने के लिए अंतहीन वादों की बरसात की जा रही है, दो लाख करोड से अधिक के कर्ज में डूबा है। बहन मायावती ने न जाने कितने हजार करोड रुपये पत्थर की मूर्तियां बनाने और सजवाने में फूंक डाले हैं। जिंदा इंसानों की चिंता करना कभी उन्होंने जरूरी नहीं समझा। ऐसे प्रदेश में राजनीतिक पार्टियां अपने चुनावी वादों को पूरा करने के लिए धन कहां से लाएंगी? रास्ता एक ही है कि सरकारी खजाने को लूटा जायेगा और प्रदेश को और अधिक कर्ज में डुबो कर रख दिया जायेगा। तय है कि देश के प्रदेश का विकास तो होने से रहा। पर बर्बादी तो तय ही है...।
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