Thursday, February 9, 2012
किसी में है हिम्मत?
जो नहीं जानते थे उन्हें भी खबर हो गयी है कि इस देश में एक लाजवाब धन कुबेर है जिसने जोड-जुगाड कर चंद वर्षों में इतनी माया समेट ली है कि जिसकी कल्पना कर पाना आम आदमी के बस की बात नहीं है। वैसे पोंटी चड्ढा भी कभी आम आदमी था। अपने हुनर की बदौलत अब वह 'खास' हो गया है। वैसे इस हुनर की बदौलत और भी कई 'कलाकारों' ने अथाह दौलत का साम्राज्य खडा करने में सफलता पायी है। पर फिर भी पोंटी वाकई लाजवाब है। पोंटी का असली नाम गुरदीप सिंह चड्ढा है। उम्र है लगभग ५६ वर्ष। १० हजार करोड रुपये से अधिक दौलत का मालिक है वह। वैसे तो वह बसपा की महारानी मायावती का खास माना जाता है पर उसकी दोस्ती लगभग देश के हर बडे राजनेता से है। मंत्रियों और अफसरों के साथ उसकी शामें बीतती हैं। उपहार देने के मामले में वह किसी को भी निराश नही करता। इसलिए देश के अधिकांश प्रदेशों में उसे आसानी से अरबो-खरबों के सरकारी ठेके मिल जाते हैं। सरकारी खजाने को चूना लगाने और खनिज संपदा को बेच खाने का उसका अपना एक अंदाज है। पंजाब के कांग्रेसी पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह से लेकर समाजवादी मुलायम सिंह तक उसके अटूट तार जुडे हैं। दरअसल उसने सताधारियों के कंधों पर सवारी कर अपने सपनों को साकार किया है। पोंटी के ठिकानों पर जब छापामारी की गयी तो यह खबरें भी आयीं कि मायावती को झटका देने के लिए जानबूझकर इस छापामारी को अंजाम दिया गया। पोंटी के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरेंद्र सिंह से पुराने ताल्लुकात होने के कारण पंजाब में होने वाले विधानसभा चुनावो का इंतजार किया गया और जैसे की चुनाव संपन्न हुए तो पोंटी को घेर लिया गया। दरअसल यह घेराबंदी मायावती को उत्तरप्रदेश के चुनावों में घेरने के लिए की गयी। पर माया के चेहरे पर कोई शिकन नजर नहीं आयी। उनके पास ऐसे ढेरों पोंटी हैं। जिनपर वे कृपा बरसाती रहती हैं और अपने आर्थिक साम्राज्य की जडे और मजबूत करती रहती हैं। भारतीय जनता पार्टी के पास भी कई पोंटी हैं। कर्नाटक के खनिज माफिया रेड्डी बंधु और न जाने कितने सरकारी ठेकेदार और भू-माफिया इस पार्टी ने देश में यहां-वहां पाल रखे हैं। कांग्रेस तो इस मामले में सबकी गुरु है ही। देश का ऐसा कोई बिरला ही नेता होगा जिसके आंगन में पोंटियों की तूती न बोलती हो। सौदागर किस्म के राजनेताओं को तो नित नये पोंटियों की तलाश रहती है। बताते हैं कि नितिन गडकरी जब भारतीय जनता पार्टी के अध्यक्ष बन कर पहली बार दिल्ली पहुंचे तो वे भी पोंटी चड्ढा से मिलने को बेताब थे। गडकरी देश के ऐसे नेता हैं जो राजनीति के साथ व्यापार में भी पारंगत हैं। विदर्भ में उनकी शक्कर मिलें हैं जिनके जरिये वे अपना वोट बैंक बनाने की कवायद में लगे रहते हैं। इसी तंत्र के दम पर पहली बार उन्होंने लोकसभा का चुनाव लडने की ठानी है।पोंटी चड्ढा पर मेहरबान रहने वाले तो बहुतेरे हैं पर मायावती के बारे में हुआ खुलासा यकीनन चौंकाता है। बहन जी ने पोंटी को पांच चीनी मिलें जिनकी वास्तविक कीमत दो हजार करोड रुपये थी, महज २०६ करोड में देकर अपनी दरीयादिली दिखा दी। उन्हीं की मेहरबानी से पोंटी चड्ढा को उत्तरप्रदेश में मनमाने दामों पर शराब बेचने की छूट मिली हुई है। पोंटी का बाप किसी देसी दारू भट्टी के सामने नमकीन बेचा करता था और बेटे ने नेताओं को पटाकर चुपके-चुपके इतनी तरक्की कर ली कि उसका अरबो-खरबों का शराब का कारोबार है। उत्तरप्रदेश तथा पंजाब में कई मल्टीप्लेक्स और मॉल हैं। कांग्रेस के उम्रदराज नेता नारायण दत्त तिवारी, जो राजभवन में अय्याशी करते धरे गये थे, ने सबसे पहले पोंटी के परिवार की 'योग्यता' को परखा था। उन्होंने कमाऊ और पटाऊ परिवार को पहाड के जिलों में जबरदस्त कमायी के ठेके दिलवाये थे। मायावती तो 'परंपरा' को निभाती चली आ रही हैं। पोंटी भी बहन जी के वफादार सिपाही की भूमिका निभाने में कोई कमी नहीं रखता। तभी तो उसे मायावती का 'अमर सिंह' भी कहा जाता है। अमर सिंह और मुलायम सिंह यादव ने मिलकर देश और प्रदेश की राजनीति में कैसे-कैसे गुल खिलाए और चांदी काटी इससे तो हिंदुस्तान का बच्चा-बच्चा वाकिफ है ही। अमर सिंह और पोंटी चड्ढा जैसों को सत्ता का दलाल भी कहा जाता है। खोटे सिक्कों को भी सत्ता दिलवाने में यह भरपूर मदद करते हैं। विधानसभा चुनाव लडने के लिए देश के निर्वाचन आयोग ने सोलह लाख रुपये की राशि तय की है। पर इतनी राशि से तो नगरपालिका का चुनाव भी नहीं लडा जा सकता। अधिकांश विधानसभा प्रत्याशी डेढ से दो करोड रुपये खर्च कर विधानसभा चुनाव जीतने के सपने को पूरा कर पाते हैं। फिर सवाल उठता है कि इतना धन आता कहां से है? इसे उपलब्ध कराते हैं पोंटी चड्ढा, अमर सिंह और रेड्डी बंधु जैसे सरकारी डकैत। राजनीतिक पार्टियां अपने-अपने प्रत्याशियों के किसी भी तरह से विजयश्री दिलाने के लिए पिछले रास्ते से जो अपार धन उपलब्ध कराती हैं वह इन्हीं कमाऊ पुतों की तिजोरियों से आता है। जब पार्टियां सत्ता में आ जाती हैं तो यह कमाऊ पूत बिगडैल सांड की तरह सरकारी खजाने की लूटमार में लग जाते हैं। भूले से कहीं जब यह पकड में आ भी जाते हैं तो इन्हें बचाने के लिए भी तमाम कानून कायदे और मर्यादाओं को ताक में रख दिया जाता है। वर्षों से सतत चले आ रहे इस चलन को रोक पाने की किसी में है हिम्मत?
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