Thursday, February 16, 2012

छात्र क्यों बना हत्यारा?

दिल को दहला कर रख देने वाले इस दृष्य की कल्पना करें। एक शिक्षिका क्लासरूम में बडी तन्मयता के साथ छात्रों को पढा रही है। इस बीच अचानक एक छात्र आता है और शिक्षिका पर धडाधड चाकू के वार कर उसका काम तमाम कर देता है। बेचारी शिक्षिका को कुछ सोचने-समझने का समय ही नहीं मिल पाता। वह यह भी नहीं जान पाती कि दरअसल उसका कसूर क्या है। हां ऐसा ही कुछ हुआ बीते सप्ताह चेन्नई के एक स्कूल में। नवीं क्लास के एक छात्र ने चाकू के दस वार कर अपनी शिक्षा की हत्या कर दी। हत्या के बाद वह शहर की सडकों पर टहलता रहा। दरअसल वह पिछले कुछ दिनों से अपने स्कूल बैग में चाकू छुपाये मौके की तलाश में था। आखिरकार उसे मौका मिल ही गया और उसने वो क्रुर हरकत कर डाली जिसकी उम्मीद इतनी कम उम्र के बच्चे से नहीं की जा सकती। यह हत्यारा छात्र एक पढे-लिखे परिवार से है। उसके माता-पिता आर्थिक रूप से भी काफी सक्षम हैं। अपनी टीचर को उसने इसलिए मौत उपहार में दे दी क्योंकि उसके पढाई-लिखाई में फिसड्डी होने के कारण वे अक्सर उसे डांटा-फटकारा करती थीं। शिक्षिका ने जब छात्र के माता-पिता को उसके पढाई-लिखाई में कमजोर होने की रिपोर्ट पहुंचाई तो उसे बहुत गुस्सा आया। स्कूल में शिक्षिका और घर में माता-पिता की फटकार के चलते वह शिक्षिका को अपना सबसे बडा शत्रु समझने लगा। उसके मन में इतनी कडवाहट भर गयी कि उसने उनका कत्ल करने में देरी नहीं की। यह कोई छोटी-मोटी बात नहीं है। न ही इसे महज खबर मानकर नजरअंदाज किया जा सकता है। नवीं कक्षा का छात्र जिसकी उम्र मात्र पंद्रह वर्ष है, आखिर इतना हिं‍सक क्यों हो गया कि उसने अपने हाथ खून से रंग डाले? कॉलेज के छात्रों के द्वारा अपने प्राध्यापकों के साथ मारपीट और यदा-कदा हत्या कर गुजरने की खबरें तो अभी तक सुनी और पढी जाती रही हैं पर यह खबर तो वाकई दिल दहला देने वाली सचाई है। जिस बालक ने यह नृशंस कृत्य किया है वह अपनी करनी पर बेहद शर्मिंदा है, वह यह भी मानता है कि उसके हाथों एक ऐसा अपराध हो गया है जो कि अक्षम्य है। छात्र के व्यापारी पिता का कहना है कि शिक्षिका के द्वारा बार-बार शिकायती पत्र भेजने के कारण उन्होंने अपने बेटे के साथ काफी बुरा व्यवहार किया। कई बार मारा-पीटा भी। वे खुद को कोस रहे हैं। काश... उन्होंने अपने बेटे को समझने की कोशिश की होती तो बात यहां तक न पहुंचती। इस अनर्थ की वजह से वे भी शर्मिंदा हैं। इस मामले में शिक्षिका को दोष देने से पहले हमें और भी बहुत-सी बातों पर गौर करना होगा। हमारे यहां की शिक्षा प्रणाली में छात्रों का उचित मूल्यांकन और मार्गदर्शन एक पुरानी समस्या है। जिसका समाधान तलाशने की की कहीं कोई पहल नहीं की गयी। दोष तो उन मां-बाप का भी है जो अपनी संतानों को हमेशा अव्वल देखना चाहते हैं। बच्चे का रूझान किस तरफ है इस ओर ध्यान देने की उनके पास फुर्सत ही नहीं रहती। चेन्नई में घटी इस घटना की तह में जाएं तो हम पाते हैं कि एक मासूम छात्र जो लगातार पढाई में पिछड रहा था, टीचर उसमें सुधार लाने की तमाम कोशिशें कर रही थी इस बीच उसे उसके साथी छात्रों के समक्ष लताडा भी जा रहा था। जिसकी वजह से वह आहत हो उठा। उसे लगा वह किसी काम का नहीं है। वह तो सिर्फ स्कूल और घर में प्रताडि‍त होने और मार खाने के लिए ही है। ऐसे में अगर उसे कोई प्यार से समझाने और सही रास्ता दिखाने वाला मिलता तो यकीनन उसे खूनी नहीं बनना पडता। अपने देश में अक्सर ऐसी खबरें सुनने और पढने में आती रहती हैं कि परीक्षा में फेल होने पर किसी छात्र या छात्रा ने आत्महत्या कर ली। इंजिनियरिंग और मेडिकल के छात्रों के द्वारा की जाने वाली आत्महत्याओं का आंकडा भी कम चौकाने वाला नहीं है। छात्रों के साथ किये जाने वाला भेदभाव भी उनकी आत्महत्या का कारण बनता है। आज भी हमारे यहां जातिवाद का बोलबाला है जिसका खामियाजा बेकसूरों को भुगतना पडता है। नामी-गिरामी कॉलेजों में दलित छात्रों को नीचा दिखाये जाने की खबरें भी अक्सर पढने में आती रहती हैं। यह भी कम चिं‍ता की बात नहीं है कि शिक्षा के क्षेत्र में राजनेताओं और पूंजीपतियों ने अपना कब्जा जमा लिया है। इन धुरंधरों के स्कूलों और कॉलेजो में वही होता है जो यह चाहते हैं। तय है कि धन कमाना ही इनका मूल उद्देश्य होता है। धन कमाने के लिए कैसे-कैसे हथकंडे अपनाये जाते हैं इस पर ज्यादा दिमाग खपाना बेमानी है। सन २०१० में कोलकाता में रवनजीत रावला नाम के स्कूली छात्र ने पिटाई से परेशान होकर आत्महत्या कर ली थी। तब देशभर में खूब हो-हल्ला मचा था। देश की शिक्षा प्रणाली पर भी उंगलियां उठायी गयी थी। इस घटना के बाद स्कूलों में बच्चों की पिटायी को अपराघ घोषित कर दिया गया। राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग ने जो दिशा निर्देश जारी किये हैं उनमें स्पष्ट कहा गया है कि बच्चों की पिटायी करने वाले शिक्षकों को अब बख्शा नहीं जायेगा। इसके साथ ही अब उन शिक्षकों को सुधरना होगा जो छात्रों के साथ भेदभाव करते हैं। गरीब, दलित, शोषित, काले गोरे, मोटे-पतले और दब्बू छात्रों पर व्यंग्य बाण बरसाने वाले शिक्षकों को नौकरी से भी हाथ धोना पड सकता है। कुछ विद्धान यह भी मानते हैं कि इस तरह के कडे नियम-कायदों से शिक्षकों पर नकारात्मक प्रभाव भी पडना तय है। वैसे हमारे यहां यह परंपरा है कि हर नये कदम का विरोध करने वाले झंडे तान कर खडे हो जाते हैं। अगर इन्हीं के अनुसार चला जाए तो कहीं कोई सुधार नहीं हो सकता।

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