Thursday, June 14, 2012

यही है राजधर्म?

यह कितनी हैरतअंगेज सच्चाई है कि हर कोई जानता है कि गुटखा और शराब सेहत को बिगाड कर रख देते हैं। फिर भी इनका चलन इतना आम हो गया है कि यह नशे के सामान बडी आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं। गुटखा तो स्कूलों और कॉलेजों के आसपास के पान ठेलों पर बेखौफ होकर बेचा जाता है। छात्र इसके आकर्षण से बच नहीं पाते। धीरे-धीरे हालात कुछ ऐसे हो जाते हैं कि उन्हें इसकी लत लग जाती है।
देश के कई शहर ऐसे हैं जहां हर फर्लांग पर देसी और अंग्रेजी शराब की दूकानें और बीयर बार खुल चुके हैं जहां सुबह से शाम तक पीने वालों का जमावडा लगा रहता है। गुजरात में शराब बंदी है पर वहां भी अवैध शराब आसानी से उपलब्ध हो जाती है। महाराष्ट्र के उपमुख्यमंत्री अजीत पवार ने पूरे प्रदेश में गुटखे पर पाबंदी लगाने की घोषणा की है। इस तरह की घोषणाएं पहले भी होती रही हैं पर अंतत: गुटखा लॉबी जीत जाती है और सरकार हार जाती है। यही वजह है कि मुख्यमंत्री की घोषणा को लोग गंभीरता से लेने को तैयार नहीं हैं। राज्य के मंत्रिमंडल में ही जब अंतिम फैसला होगा तभी गुटखे पर बैन लग पायेगा। हो सकता है कि अजीत पवार पूरे मन से गुटखे पर पाबंदी लगाने की तैयारी कर चुके हों पर दूसरे मंत्री क्या चाहते हैं उसका पता तो कुछ दिन बाद तब चलेगा जब उपमुख्यमंत्री की घोषणा को कानूनी जामा पहनाया जायेगा। सरकार चलाने वाले मंत्री और विधायक इतने अनाडी नहीं हैं कि वे इस हकीकत से बेखबर हों कि गुटखा असंख्य लोगों की कमजोरी बन चुका है। कई उम्रदराज गुटखे को बडी शान के साथ चबाते हैं। उनकी देखा-देखी कॉलेजों और स्कूलों में पढने वाले कम उम्र के लडके भी खुद को इस जहर के हवाले कर बैठते हैं। गुटखे में मिलाया जाने वाला जानलेवा रसायन न जाने कितने युवकों को कैंसर का रोगी बनाता चला आ रहा है। सरकार का ध्यान गुटखे की बिक्री से मिलने वाली टैक्स रूपी कमायी पर ज्यादा रहता है। उसे मुख कैंसर के वो तमाम मरीज नजर नहीं आते जो गुटखे के शिकार होकर अस्पतालों में इलाज के लिए पहुंचते हैं और डॉक्टरों की जेबें भरते हैं।
गुटखा और शराब ऐसे नशे हैं जो बडी आसानी से कहीं भी मिल जाते हैं। इन्हें पाने के लिए ज्यादा दिमाग नहीं खपाना पडता। एक रुपये से लेकर तीन रुपये तक मिलने वाले गुटखे के पाउच को बेचने के लिए लाखों-करोडों रुपये विज्ञापन में फूंक दिये जाते है। यह भी कम चौंकाने वाली बात नहीं है कि सुपारी, इलायची आदि की भले ही कितनी कीमतें बढ जाएं पर गुटखा के दाम नहीं बढते। क्यों नही बढते?  इसलिए कि उसमें घटिया से घटिया साम्रगी और बेहद हानिकारक रसायनों का इस्तेमाल किया जाता है। कीमतें आसमान के पार भी चली जाएं पर मौत के सौदागर हमेशा फायदे में ही रहते हैं। मौत के सौदागरों का धंधा मंदा न पडे इसके लिए उनका साथ देने वाले अनेकों ताकतवार लोग हैं। कई नेताओं और समाज सेवकों की दाल-रोटी इन्हीं के दम पर चलती है।
गुटखा और शराब को एक ही सिक्के के दो पहलू कहें तो गलत नहीं होगा। एक समय वो था जब शहरों और कस्बों में गिनी-चुनी शराब की दुकानें और बीयर बार हुआ करते थे। अब तो गिनना ही मुश्किल हो गया है। सरकारें शराब पर प्रतिबंध लगाने की घोषणाएं तो खूब करती हैं पर उससे होने वाली कमायी उनके ईमान को बिगाड कर रख देती है। कुछ वर्ष पूर्व हरियाना में शराब बंदी की गयी थीं। पर मामला गडबडा गया। अवैध शराब विक्रता चांदी काटने लगे। मुख्यमंत्री बंसीलाल अवैध शराब माफियाओं के धनबल के समक्ष टिक नहीं पाये। हरियाना में फिर सरकारी ठेके आबाद हो गये। यह भी सच है कि अगर मुख्यमंत्री अपने फैसले पर टिके रहने की कसम खा लेते तो प्रदेश को शराब से मुक्ति मिल सकती थी। शासन और प्रशासन की कमान हाथ में होने के बावजूद मुख्यमंत्री का बेबस हो जाना ऐसे कई सवाल ख‹डे करता है जिनके जवाब नदारद हैं। इस प्रदेश की जागरूक महिलाएं पति परमेश्वरों की दारूखोरी से त्रस्त रहती हैं। उनकी औलादें भी पियक्कड बन कोई काम-धाम नहीं करतीं। ऐसे में बेचारी मांएं खून के आंसू रोती है और सरकार को कोसती रहती हैं। हरियाना से लगा पंजाब जो कभी सांप्रदायिक और आतंकवाद की आग में जल रहा था आज नशे के डंक झेल रहा है। जगह-जगह शराब और बीयर के ठेके खुल गये हैं। पंजाब में जहां कभी दूध और दही का क्रेज था अब दारू के दरिया बह रहे हैं। जहां युवक और युवतियां डूबकियां लगाते-लगाते अपनी जान से भी हाथ धो बैठते हैं पर फिर भी कोई सबक लेने को तैयार नहीं है। एक सर्वे बताता है कि पंजाब में १५ से ३५ साल की उम्र के लोगों में नशे का चलन आम होता चला जा रहा है। चुनावों के मौसम में नेता शराब और बीयर से मतदाताओं को ललचाते हैं। आम जनता को होश खोते देखना उन्हें अच्छा लगता है और फायदे का सौदा भी। वैसे अकेले पंजाब को ही कोसना और दोष देना निरर्थक है। देश के अन्य प्रदेशों के मुखियाओं को भी जनता को नशे के गर्त में धकेलने में कोई शर्म महसूस नहीं होती। सभी को सिर्फ और सिर्फ 'कमायी' से लगाव है। यही उनका राजधर्म है...।

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