Friday, June 29, 2012

चमत्कार को नमस्कार करने की बेवकूफी

फिर कोई ठग शहरवासियों के करोडों रुपये समेट कर रफूचक्कर हो गया। ऐसा कई बार हो चुका है। लगभग बीस वर्ष पूर्व एक अन्ना ने लोगों को बेवकूफ बनाया था। शहर के सम्पन्न इलाके में एक दूकान खोली थी। दूकान में टीवी, फ्रिज, मोटरसाइकल, सोफा सेट से लेकर सभी रोजमर्रा के सामान थे। अन्ना ने ऐलान किया कि वह शहरवासियों को आधे दाम में ब्रांडेड सामान उपलब्ध कराने आया है। उसने शर्त यह भी रखी थी कि मनचाहे सामान की रकम जमा कराये जाने के पंद्रह दिन बाद सामान दिया जायेगा। अन्ना का प्रचार तंत्र इतना तगडा था कि लगभग पूरा शहर उसकी दूकान की तरफ दौड पडा। उसके पास अग्रिम रकम जमा कराने वालों का तांता लग गया। अन्ना शुरू-शुरू में तो कुछ लोगों को आधे दाम में सामान देकर अपनी साख बढाता चला गया। एक दिन ऐसा भी आया जब उसकी तिजोरी में नोट रखने की जगह ही नहीं बची थी। वह बोरों में नोट भरने लगा। लगभग तीन महीने बाद की एक सुबह शहर के सारे अखबारों में अन्ना के भाग जाने की खबर सुर्खियां बटोर चुकी थी। गुस्साये लोगों ने अन्ना की दुकान का शटर तोड डाला। उसमें जो थोडा बहुत सामान था उसे उठाकर डाकू की तरह ले उडे। हजारों शहरवासी ऐसे थे जिन्होंने पुलिस थाने पहुंचकर हो हल्ला मचाना शुरू कर दिया। सभी की एक ही मांग थी कि किसी भी तरह से पुलिस अन्ना को दबोचे और उनके खून पसीने की कमायी वापस दिलाये। बेचारी पुलिस क्या करती! अन्ना तो हजारों मील दूर किसी और शहर के लोगों को बेवकूफ बनाने के अभियान में लग चुका था।
इस घटना के बाद लगा था शहरवासी सचेत और सतर्क हो जाएंगे। किसी भी लालच के शिकार नहीं होंगे। पर फिर भी लगभग हर छह-आठ महीने में रूप बदल-बदलकर अन्ना आते रहे और लोगों के लालच का फायदा उठाते रहे। शहर में पिछले बीस वर्षों के दौरान कई लोगों ने प्रायवेट बैंक, फायनांस कंपनी और सोसायटी आदि का बोर्ड टांग कर अपनी-अपनी दूकानें खोलीं। जमा रकम पर मोटा ब्याज देने और कम से कम ब्याज पर लोन उपलब्ध कराने की विज्ञापनबाजी कर लोगों को जाल में फांसा। इस खेल में न जाने कितने लोग अपनी जीवन भर की कमायी से हाथ धो बैठे। शहर में आज भी कुछ ऐसे सहकारी बैंक और फायनांस कंपनियां आबाद हैं जो कभी भी डूब सकती हैं पर फिर भी लोग हैं कि आंख मूंदकर उन पर भरोसा बरकरार रखे हुए हैं। बीस वर्ष पूर्व जिस ठग अन्ना ने शहर की धडकनें बढायी थीं वह आंध्रप्रदेश का रहने वाला था। अब तो लोकल अन्ना भी ठगी के नये-नये गुर सीख चुके हैं और जब-तब शहर तो शहर गांव और कस्बों में भी ठगी के करिश्मों को अंजाम देने लगे हैं।
नागपुर शहर की पुलिस को इन दिनों एक आधुनिक ठग की तलाश है। उसकी पत्नी पकड में आ चुकी है जिसका चार सौ बीसी में बराबर का रोल था। मीडिया ने इस लुटेरी दंपति को बंटी और बबली नाम दिया है। बंटी और बबली अन्ना के ही वंशज हैं। जो देश के विभिन्न शहरों और महानगरों में अपने करतब दिखाते रहते हैं फिर भी आसानी से पहचान में नहीं आते। नागपुर वासियों को करोडों की चपत लगाने वाली इस चतुर-चालाक जोडी ने पहले तो तडक-भडक वाली फायनांस कंपनी खोली। फिर शुरुआत में १८ प्रतिशत प्रति माह ब्याज देने का ढि‍ढोरा पिटवाया। इतना ब्याज तो दुनिया का कोई भी बैंक देने से रहा। उन्होंने भी पहले ईमानदारी दिखायी और वायदे के अनुसार जमाकर्ताओं को ब्याज देकर खुश किया। इतना भारी-भरकम ब्याज देने वाली फायनांस कंपनी को अक्ल के अंधे लालची लोगों में अपनी पैठ जमाने में ज्यादा समय नहीं लगा। ऐसे लोगों ने भी अपना धन इस फायनांस कंपनी में जमा करवाना आरंभ कर दिया जो कानून के रखवाले समझे जाते हैं। खाकी वर्दी धारियों और ऊंचे ओहदे वालों को भी अंधाधुंध ब्याज के लालच ने अपनी गिरफ्त में ले लिया। इनकी देखा-देखी आम लोग भी अपनी जमा रकम और सोने-चांदी को बेचकर हाथ में आये धन को इस फायनांस कंपनी के हवाले करने से पीछे नहीं रहे।
सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हो चुके कई बुजुर्गों ने अपनी सारी जमा पूंजी यह सोचकर बंटी और बबली के चरणों में जाकर रख दी कि कुछ ही महीनों में धन दुगना-तिगुना हो जायेगा जिससे वे अपने पोते-पोतियों की शादी शाही ठाठ से निपटा लेंगे और उसके बाद भी मजे से रहेंगे। साल-डेढ साल तक फायनांस कंपनी कारोबार चलाती रही। उसके मालिकों की ईमानदारी के चर्चे भी होने लगे। फिर अचानक गुब्बारा फूट गया। मई माह की एक सुबह के सभी अखबारों में फ्रंट पेज पर यही खबर थी कि बंटी-बबली शहरवासियों को पचास करोड से ज्यादा का चूना लगा कर फुर्र हो गये हैं। अन्ना तो अपने चेले-चपाटों के साथ आया था। वह ऐसा भागा कि उसका सुराग आज तक नहीं मिल पाया है। बंटी-बबली अकेले नहीं थे। उनका साथ देने वालों में वो जमात भी शामिल थी जिन्हें 'नेता' कहा जाता है। आधुनिक ठग और लुटेरे जानते हैं कि नेताओं का वरदहस्त मिल जाए तो कोई उनका कुछ भी नहीं बिगाड सकता। बंटी एक राजनीतिक पार्टी का पसंदीदा सक्रिय कार्यकर्ता था। यही वजह थी कि उसने बेखौफ होकर करोडों का गेम जमाया और आज भी कानून के साथ आंख मिचौली खेल रहा है।

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