Thursday, June 21, 2012

ये जो पब्लिक है, सब जानती है?

आंध्रप्रदेश में १८ सीटों पर हुए उपचुनाव में जगमोहन रेड्डी ने १५ सीटों पर विजयश्री हासिल कर खुद के दमदार होने का पक्का सबूत दे दिया है। उनकी पार्टी वाईएसआर कांग्रेस ने सोनिया गांधी की कांग्रेस के होश ठिकाने लगा दिये हैं।
अपने पिता कांग्रेस के मुख्यमंत्री वाई राजशेखर रेड्डी के आकस्मिक निधन के बाद जगन ने आंध्रप्रदेश का मुख्यमंत्री बनने के लिए लाख हाथ पांव मारे, पर सफलता नहीं मिली। कांग्रेस के रवैय्ये से खिन्न जगन ने मायूस होकर बैठ जाने के बजाय संघर्ष का रास्ता चुना। जिस राजशेखर रेड्डी ने आंध्रप्रदेश में कांग्रेस की जडें जमाने के लिए जमीन-आसमान एक किया था और प्रदेश में कांग्रेस को सत्ता दिलायी उसी के बेटे की घोर उपेक्षा की गयी। जगन को यकीन था कि परिवारवाद की हिमायती कांग्रेस विरासत के रूप में उन्हें मुख्यमंत्री की कुर्सी सहज सौंप देगी। यकीन के टूटते ही उन्होंने भी अपना रंग दिखाना शुरू कर दिया। बगावत का झंडा थामा तो कांग्रेस ने घेरने के लिए वही दांव पेंच आजमाने शुरू कर दिये जिनका अक्सर वह इस्तेमाल करती आयी है। जगन पर आय से कई गुना अधिक धन जुटाने के आरोप लगने लगे। उन्हें पस्त करने के लिए कानून के घोडे दौडाये गये।
जगन के खजाने में जो अरबो-खरबो की दौलत है वह एकाएक नहीं आयी है। पिता के जीवित रहते उनकी तिजौरियां लबालब हो चुकी थीं। पिता कांग्रेस के वफादार सिपाही थे इसलिए उन्हें लूटने-खसोटने की पूरी छूट थी। जगन उसी लूट की दौलत के साम्राज्य को दिन दुगना रात चौगुना करने वाला आज्ञाकारी बेटा है। जगन ने जब कांग्रेस के हुक्म को नहीं माना तो कांग्रेस ने उसे वो दिन दिखा दिये जिसकी उसने कभी कल्पना तक नहीं की थी। परंतु जगन भी कच्ची मिट्टी के नहीं बने हैं। लडने की प्रवृत्ति उनमें कूट-कूट कर भरी है। उपचुनाव में १८ में से १५ सीटें जीत कर जगन ने यह दर्शा दिया है कि वह भले ही भ्रष्ट और बेइमान है, पर प्रदेश की आम जनता जो वोटर कहलाती है, उसके साथ है।
जगन कोई छोटे-मोटे खिलाडी नहीं हैं। ३६ लाख को चंद वर्षों में ३५६ करोड में बदलने का उनमें हुनर है। पिछले कुछ महीनों से उनके भ्रष्टाचार की खबरें देश भर के मीडिया में छायी हुई थी। मुझ जैसे अनेकों लोग यह मानकर चल रहे थे कि जगन की पार्टी की लुटिया को डूबने से कोई भी नहीं बचा सकता। जनता उसे जरूर सबक सिखायेगी पर जनता ने ही जिस तरह से भ्रष्टाचारी का साथ दिया है उससे यह मान लेना भी व्यर्थ जान पडता है कि यह जो पब्लिक है, सब जानती है। अगर जानती है तो समझती क्यों नहीं! जगन जैसे जगजाहिर अति भ्रष्टाचारी और घोर महत्वाकांक्षी नेताओं को धूल क्यों नहीं चटाती? वैसे यह भी सच है कि देश के हर प्रदेश की जनता भावुकता से ओतप्रेत रहने की बीमारी से ग्रस्त है। वह जिन स्थानीय नेताओं से जुडी होती है उनकी हर बुराई को नजरअंदाज कर देती है। गुंडे मवाली किस्म के नेता भी इसलिए चुनाव जीतते चले जाते हैं क्योंकि वे अपने वोटरों की देखभाल करने में कोई सुस्ती नहीं बरतते। दक्षिण भारतीय राज्यों की जनता की भावुकता तो और भी अजब-गजब है। जयललिता को जेल भेजा जाता है तो वह अपनी जान देने पर उतारू हो जाती है। फिल्म अभिनेता रजनीकांत बीमार पडते हैं तो उनके प्रशंसक फांसी के फंदे पर झूल जाते हैं। वाई राजशेखर रेड्डी की मृत्यु का समाचार सुनते ही न जाने कितने उनके चाहने वाले बेहोश हो गये थे और कुछ ने तो मौत को भी गले लगा लिया था। जहां ऐसे चाहने वालों की भरमार हो वहां बडे से बडा भ्रष्टाचार और अनाचार कोई मायने नहीं रखता। जगन मोहन जैसे नेता लोगों की इसी कमजोरी का भरपूर फायदा उठाते चले आ रहे हैं। इनके यहां धन-दौलत के अंबार लगे हुए है। चुनाव के मौसम में खूब धनवर्षा करते हैं। आंध्रप्रदेश के इस उप चुनाव में ४६ लाख में से ३० लाख मतदाताओं को नोट देकर खरीदा गया। कार्यकर्ताओं को भी लाखों की खैरात बांटी गयी। चुनाव प्रचार के दौरान ३२ किलो सोना, १३ किलो चांदी तथा लगभग पचास करोड रुपये नगद जब्त किये गये। राजनीतिक पार्टियों द्वारा इस सारी दौलत का सदुपयोग चुनाव जीतने के लिए किया जाना था पर कुछ प्रत्याशियों की किस्मत दगा दे गयी।  इस उपचुनाव में धन की बरसात करने में कोई भी पार्टी पीछे नहीं रही। जब उपचुनाव में ये हाल हैं तो सोचिए, आम चुनाव में क्या-क्या नहीं होता होगा। जेल की सलाखों के पीछे रहकर अपना दमखम दिखाने वाले जगन को भले ही आंध्रप्रदेश की जनता 'अनाथ' मानती हो पर दरअसल पर्दे के पीछे उसके साथ कई खिलाडी खडे हुए हैं जो उसे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर देखना चाहते हैं।
न्यूज चैनलों और अखबारों में सुर्खियां बटोरने वाली यह खबर आप तक भी पहुंची ही होगी कि  बीसीसीआई अध्यक्ष एन.श्रीनिवासन पर जगन मोहन की कंपनी में १३५ करोड रुपये के निवेश किये जाने को लेकर शिकंजा कसा जा चुका है, यह तब की बात है जब जगन के पिता राजशेखर रेड्डी आंध्रप्रदेश के मुख्यमंत्री थे। इस निवेश के बदले श्रीनिवासन की सीमेंट फैक्ट्रियों को भारी मात्रा में अतिरिक्त पानी उपलब्ध कराया गया था। यानी इस हाथ ले और उस हाथ दे का दस्तूर हर कहीं चलता है। इस परंपरा को निभाने में वो राजनेता भी पीछे नहीं रहते जिन्हें जनता अपना मसीहा मानती है। राजशेखर रेड्डी भी प्रदेश की जनता के मसीहा कहलाते थे। जब मसीहा ऐसे सौदे कर सकते हैं तो सोचिए,... राजनीति के असली सौदागर क्या कुछ नहीं कर गुजरते होंगे।

No comments:

Post a Comment