कोई भी तो ऐसा नहीं है जो रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के खिलाफ न हो। देश की सरकार को भी भ्रष्टाचार से नफरत है। तमाम बडे अधिकारी भी ईमानदार होने का दावा करते नहीं थकते। मंत्रियों का भी यही कहना है कि भ्रष्टाचार देश का सबसे बडा शत्रु है। राजनेता शेर की तरह दहाडते रहते हैं कि उनके जीवन का एक मात्र मकसद देशवासियों की सेवा और भ्रष्टाचार को जड से मिटाना है। समाजसेवी अन्ना हजारे, रामदेव बाबा जैसे लोग भी इस रोग के खात्मे के लिए कम उठा-पटक नहीं कर रहे। पर भ्रष्टाचार है कि बढता ही चला जा रहा है। भ्रष्टाचार करनेवाले चेहरे भी बडे जाने पहचाने हैं।
इसी सप्ताह सीबीआई ने चार आयकर अधिकारियों को घूस लेने के कारण गिरफ्तार किया है। इनके साथ-साथ रियल्टी कंपनी एल्डेको के प्रबंध निदेशक और चार्टर्ड एकाउंटेंट को भी दबोचा गया है। कानपुर के आयकर आयुक्त के दिल्ली में स्थित निवास स्थान से तीस लाख रुपये बरामद भी कर लिये गये जो कर चोरी के मामले को निपटाने हेतु लिये गये थे। इसी आयकर आयुक्त ने कुछ दिन पहले ही अपनी टीम के साथ विभिन्न रियल एस्टेट के कारोबारियों के ठिकानों पर छापे मारे थे। घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किये गये इन अफसरों की छापामारी की हकीकत भी उजागर हो गयी है। ये भ्रष्ट पहले मुर्गे तलाशते हैं फिर उन्हें बडे इत्मीनान के साथ हलाल करते हैं। इस तरह से सरकारी ड्यूटी बजाने वाले ढेरों हैं। जिन्हें चोरों को पकडने की जिम्मेदारी दी गयी है, वही डकैती डालने में लगे हैं।
इनकम टैक्स यानी आयकर विभाग से वैसे भी सभी खौफ खाते हैं। इसी खौफ का फायदा अधिकारी और कर्मचारी उठाते चले आ रहे हैं। कुछ को छोडकर लगभग सभी रिश्वतखोरी को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। जो इन्हें घूस देते हैं वे भी फायदे में रहते हैं। असली नुकसान तो सरकार को होता है। सरकार इस नुकसान की भरपायी जनता का खून चूस कर करती चली आ रही है। जब मन में आता है पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढा देती है। चावल, दाल गेहूं और दूध की आसमान छूती कीमतों से आम आदमी मरता है तो मरता रहे। सरकार अपने ही लफडों में उलझी है। मंत्रियों-संत्रियों और दलालों ने उसका दिवाला निकाल कर रख दिया है। हर नेता मालामाल है। सरकार की तिजोरी से ज्यादा धन तो भ्रष्ट अफसरों, नेताओं और सौदागरों के तहखानों में भरा पडा है। अगर इस देश के अफसर ईमानदार होते तो वाइ.एस.जगन मोहन रेड्डी की पूंजी मात्र आठ साल में ३६ लाख रुपये से बढकर ३५६ करोड रुपये न हो पाती। सरकार भी अपने उन नेताओं को खुले सांड की तरह छोड देती है जो चुपचाप देश को लूटते हैं। उन्हें भी सिर-आंखों पर बिठाया जाता है जो सत्ता तक पहुंचाने में मददगार होते हैं। हमेशा यह कोशिश की जाती है कि पार्टी के प्रति वफादार नेता पर हाथ न डाला जाए। बेचारे अफसरों की क्या मजाल कि वे सत्ताधारी दल के नेता के काले-पीले धंधों की सुरंगों में घुसने और छापे-वापे डालने की हिम्मत भी दिखा पाएं। जो अफसर धारा के खिलाफ चलते हैं उनकी गत बिगाडकर रख दी जाती है। इसलिए बडी खामोशी और शालीनता के साथ मिलीभगत का खेल चलता चला आ रहा है। सभी भ्रष्टों को एक-दूसरे की पूरी खबर है। पर जो पकड में आ जाता है वही चोर कहलाता है। बाकी साहूकार की तरह सीना ताने रहते हैं।
यह कितनी हैरत की बात है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव पिछले दो साल से निरंतर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अभियान चलाये हुए हैं। पर फिर भी भ्रष्टाचारियों की जमात बेखौफ है। जो पार्टी अन्ना और बाबा का साथ देने का दावा करती है उसी के मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार के चलते जेल की हवा खानी पडी है। मंत्री और विधायक व्याभिचार में लिप्त पाये गये हैं। ऐसे में लोगों को आंदोलन की सार्थकता पर भी संदेह होने लगा है। यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि अन्ना और बाबा के आंदोलन को लेकर बीते वर्ष जनता में जो उत्साह था वह अब नदारद होता चला जा रहा है। इनके द्वारा जिस तरह से केंद्र सरकार तथा सिर्फ कांग्रेस को ही दोषी ठहराया जाता है उससे भी कहीं न कहीं दाल में काला नजर आता है। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि कांग्रेस में भ्रष्टाचारियों की भरमार है पर दूसरी पार्टियों में बेईमानों और लुटेरों की कमी नहीं है। अन्ना और बाबा को उन प्रदेशों का भ्रष्टाचार पता नहीं क्यों दिखायी नहीं देता जहां भाजपा की सरकारें हैं? ये लोग भले ही आंखे मूंद लें पर जनता तो अंधी नहीं है। मीडिया भी इस हकीकत से वाकिफ हो गया है। इसलिए उसमें भी पहले जैसा उत्साह नहीं है। ऐसे में वो सपने बुरी तरह से टूटते दिखायी दे रहे हैं जिनके साकार होने की उम्मीदें जगायी गयीं थीं। विदेशों में जमा धन को वापस लाने का 'बाबा' का अभियान टांय-टांय फिस्स हो चुका है। सरकार देश में जमा काले धन को ही बाहर नहीं निकाल पा रही है। दरअसल इस मामले में उसकी नीयत ही साफ नहीं है। अन्ना का सशक्त लोकपाल बिल भी अधर में है। लगता नहीं कि वो हो पायेगा जो अन्ना और देशवासी चाहते हैं। देश की अधिकांश जनता बेहद निराश है। वह मान चुकी है कि हालात जस के तस रहने वाले हैं। एक-दूसरे को कटघरे में खडे करने की नौटंकी चलती रहेगी। सोनिया गांधी विपक्ष और अन्ना-बाबा को कोसती रहेंगी कि वे उनकी सरकार के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में लगे हैं। मीडिया का एक वर्ग भी उनके साथ खडा है। ऐसे में अगर यह कहें कि हिंदुस्तान के लोग ऐसे तमाशों को देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं तो यकीनन गलत नहीं होगा।
इसी सप्ताह सीबीआई ने चार आयकर अधिकारियों को घूस लेने के कारण गिरफ्तार किया है। इनके साथ-साथ रियल्टी कंपनी एल्डेको के प्रबंध निदेशक और चार्टर्ड एकाउंटेंट को भी दबोचा गया है। कानपुर के आयकर आयुक्त के दिल्ली में स्थित निवास स्थान से तीस लाख रुपये बरामद भी कर लिये गये जो कर चोरी के मामले को निपटाने हेतु लिये गये थे। इसी आयकर आयुक्त ने कुछ दिन पहले ही अपनी टीम के साथ विभिन्न रियल एस्टेट के कारोबारियों के ठिकानों पर छापे मारे थे। घूस लेने के आरोप में गिरफ्तार किये गये इन अफसरों की छापामारी की हकीकत भी उजागर हो गयी है। ये भ्रष्ट पहले मुर्गे तलाशते हैं फिर उन्हें बडे इत्मीनान के साथ हलाल करते हैं। इस तरह से सरकारी ड्यूटी बजाने वाले ढेरों हैं। जिन्हें चोरों को पकडने की जिम्मेदारी दी गयी है, वही डकैती डालने में लगे हैं।
इनकम टैक्स यानी आयकर विभाग से वैसे भी सभी खौफ खाते हैं। इसी खौफ का फायदा अधिकारी और कर्मचारी उठाते चले आ रहे हैं। कुछ को छोडकर लगभग सभी रिश्वतखोरी को अपना जन्मसिद्ध अधिकार मानते हैं। जो इन्हें घूस देते हैं वे भी फायदे में रहते हैं। असली नुकसान तो सरकार को होता है। सरकार इस नुकसान की भरपायी जनता का खून चूस कर करती चली आ रही है। जब मन में आता है पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें बढा देती है। चावल, दाल गेहूं और दूध की आसमान छूती कीमतों से आम आदमी मरता है तो मरता रहे। सरकार अपने ही लफडों में उलझी है। मंत्रियों-संत्रियों और दलालों ने उसका दिवाला निकाल कर रख दिया है। हर नेता मालामाल है। सरकार की तिजोरी से ज्यादा धन तो भ्रष्ट अफसरों, नेताओं और सौदागरों के तहखानों में भरा पडा है। अगर इस देश के अफसर ईमानदार होते तो वाइ.एस.जगन मोहन रेड्डी की पूंजी मात्र आठ साल में ३६ लाख रुपये से बढकर ३५६ करोड रुपये न हो पाती। सरकार भी अपने उन नेताओं को खुले सांड की तरह छोड देती है जो चुपचाप देश को लूटते हैं। उन्हें भी सिर-आंखों पर बिठाया जाता है जो सत्ता तक पहुंचाने में मददगार होते हैं। हमेशा यह कोशिश की जाती है कि पार्टी के प्रति वफादार नेता पर हाथ न डाला जाए। बेचारे अफसरों की क्या मजाल कि वे सत्ताधारी दल के नेता के काले-पीले धंधों की सुरंगों में घुसने और छापे-वापे डालने की हिम्मत भी दिखा पाएं। जो अफसर धारा के खिलाफ चलते हैं उनकी गत बिगाडकर रख दी जाती है। इसलिए बडी खामोशी और शालीनता के साथ मिलीभगत का खेल चलता चला आ रहा है। सभी भ्रष्टों को एक-दूसरे की पूरी खबर है। पर जो पकड में आ जाता है वही चोर कहलाता है। बाकी साहूकार की तरह सीना ताने रहते हैं।
यह कितनी हैरत की बात है कि अन्ना हजारे और बाबा रामदेव पिछले दो साल से निरंतर भ्रष्टाचार और भ्रष्टाचारियों के खिलाफ अभियान चलाये हुए हैं। पर फिर भी भ्रष्टाचारियों की जमात बेखौफ है। जो पार्टी अन्ना और बाबा का साथ देने का दावा करती है उसी के मुख्यमंत्री को भ्रष्टाचार के चलते जेल की हवा खानी पडी है। मंत्री और विधायक व्याभिचार में लिप्त पाये गये हैं। ऐसे में लोगों को आंदोलन की सार्थकता पर भी संदेह होने लगा है। यह तथ्य भी काबिलेगौर है कि अन्ना और बाबा के आंदोलन को लेकर बीते वर्ष जनता में जो उत्साह था वह अब नदारद होता चला जा रहा है। इनके द्वारा जिस तरह से केंद्र सरकार तथा सिर्फ कांग्रेस को ही दोषी ठहराया जाता है उससे भी कहीं न कहीं दाल में काला नजर आता है। इसमें दो मत नहीं हो सकते कि कांग्रेस में भ्रष्टाचारियों की भरमार है पर दूसरी पार्टियों में बेईमानों और लुटेरों की कमी नहीं है। अन्ना और बाबा को उन प्रदेशों का भ्रष्टाचार पता नहीं क्यों दिखायी नहीं देता जहां भाजपा की सरकारें हैं? ये लोग भले ही आंखे मूंद लें पर जनता तो अंधी नहीं है। मीडिया भी इस हकीकत से वाकिफ हो गया है। इसलिए उसमें भी पहले जैसा उत्साह नहीं है। ऐसे में वो सपने बुरी तरह से टूटते दिखायी दे रहे हैं जिनके साकार होने की उम्मीदें जगायी गयीं थीं। विदेशों में जमा धन को वापस लाने का 'बाबा' का अभियान टांय-टांय फिस्स हो चुका है। सरकार देश में जमा काले धन को ही बाहर नहीं निकाल पा रही है। दरअसल इस मामले में उसकी नीयत ही साफ नहीं है। अन्ना का सशक्त लोकपाल बिल भी अधर में है। लगता नहीं कि वो हो पायेगा जो अन्ना और देशवासी चाहते हैं। देश की अधिकांश जनता बेहद निराश है। वह मान चुकी है कि हालात जस के तस रहने वाले हैं। एक-दूसरे को कटघरे में खडे करने की नौटंकी चलती रहेगी। सोनिया गांधी विपक्ष और अन्ना-बाबा को कोसती रहेंगी कि वे उनकी सरकार के खिलाफ अनर्गल आरोप लगाकर सस्ती लोकप्रियता हासिल करने में लगे हैं। मीडिया का एक वर्ग भी उनके साथ खडा है। ऐसे में अगर यह कहें कि हिंदुस्तान के लोग ऐसे तमाशों को देखने के अभ्यस्त हो चुके हैं तो यकीनन गलत नहीं होगा।
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