Thursday, July 12, 2012

इन्हें आप क्या कहेंगे?

पिछले कुछ वर्षों से देश का तमाम मीडिया निरंतर शोर मचाता चला आ रहा है कि बसपा की सुप्रीमो मायावती आय से कई गुना अधिक दौलत जुटाकर खरबपति राजनेताओं में शामिल हो गयी हैं। यह शोर बेवजह भी नहीं है। २००३ में बहन जी की कुल सम्पत्ति मात्र एक करोड रुपये की थी। पता नहीं उनके हाथ में ऐसी कौन सी जादू की छडी आ गयी कि २००७ तक इस दौलत का आंकडा ५० करोड के उस पार जा पहुंचा। २०१२ में राज्यसभा का नामांकन भरते हुए उन्होंने अपनी संपत्ति १११ करोड रुपये घोषित की है। मायावती ने देश के विशालतम प्रदेश उत्तरप्रदेश की जब-जब कमान संभाली तब-तब उन पर भ्रष्टाचार के गंभीरतम आरोप लगे। दूसरे राजनेताओं की तरह वे भी इसे विरोधियों की साजिश बताती रहीं और धन-दौलत का अंबार खडा करती चली गयीं। देश की जागरूक बिरादरी ने जब सवालों की बौछार की तो उन्होंने बेखौफ होकर कहा कि मैंने दूसरे नेताओं की तरह कभी भी इस सच को नहीं छुपाया कि दलित की बेटी मालामाल हो चुकी हैं। मेरे पास जो कुछ भी है, वह सबके सामने है। वे यह कहना भी कभी नहीं भूलीं कि उनकी तिजोरी में आया सारा का सारा धन उनके समर्थकों का है, जो उन्हें तथा पार्टी को मजबूत बनाने के लिए देते चले आ रहे हैं।
यह मामला कोर्ट में भी चला गया था, लेकिन बहन जी खुशकिस्मत हैं क्योंकि सुप्रीम कोर्ट ने उन पर चल रहे आय से अधिक सम्पत्ति के मामले को खत्म कर दिया है। सत्ता का स्वाद चखते ही हैरतअंगेज तरीके से अरबों-खरबों की मालकिन बनने वाली मायावती राजनीति की इकलौती खिलाडी नहीं हैं। और भी कई हैं जिन्होंने कंगाल से करोडपति बनने का चमत्कार दिखाया और देश का कानून उनका बाल भी बांका नहीं कर पाया! पार्टी के नाम पर चंदा हजम करने वाले एक नहीं अनेक हैं। उद्योगपतियों, धनासेठों और माफियाओं से मिलने वाले इफरात धन को आम जनता से मिलने वाला चंदा बताकर राजनैतिक पार्टियां खुद को पाक-साफ दर्शाती आ रही हैं। इसलिए किसी भी राजनैतिक पार्टी के नेता ने मायावती से इस सवाल का जवाब मांगने की जुर्रत नहीं की, कि समर्थक तो हमेशा पार्टी के लिए ही धन देते हैं। इस धन को पार्टी के खाते में जमा होना चाहिए। पर बहन जी ने इस धन को कोठियों, हीरे जवाहरात और फार्म हाऊसों की कतार लगाने में कैसे फूंक डाला? आय से अधिक सम्पत्ति का मामला समाजवादी मुलायम सिं‍ह पर भी चल रहा है। पर ऐसा लगता नहीं कि उनका भी कुछ बिगड पायेगा। इस देश की जनता को हमेशा इस भ्रम में रखा जाता है कि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ जांच चल रही है। दोषी पाये जाने पर उन्हें हर हालत में सजा होगी। आश्चर्य... कुछ ही बदकिस्मत होते हैं जो दोषी सिद्ध हो पाते हैं। राजनेताओं को कसूरवार ठहराना बहुत मुश्किल काम है। बेचारा कानून देखता रह जाता है। सफेदपोश अपराधी बडी आसानी से बच जाते हैं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री ओम प्रकाश चोटाला ने भी प्रदेश की गद्दी पर विराजमान होने के बाद कम लूटपाट नहीं मचायी थी। कहते हैं कि उन्हें दूसरों की जो चीज पसंद आ जाती थी वो उन्हीं की हो जाती थी। भ्रष्टाचार करने और रिश्वत लेने का उनका अपना अंदाज था। उद्योगपतियों और व्यापारियों की महंगी आलीशान कारों, कोठियों, और कारखानों पर उनकी हमेशा गिद्ध दृष्टि बनी रहती थी। उन पर भी आय से अधिक सम्पत्ति के अनेको आरोप लगे थे। मीडिया भी खूब चीखा-चिल्लाया था।
पंजाब के वर्तमान मुख्यमंत्री प्रकाश सिं‍ह बादल और उनके लाडले सुपुत्र सुखवीर सिं‍ह, जो कि प्रदेश के उपमुख्यमंत्री हैं, के खिलाफ भी हजारों करोड की अवैध दौलत एकत्रित करने का मामला अदालत पहुंचा था, लेकिन गवाहों के पलटी मार जाने के कारण पिता-पुत्र पूरी तरह से बच गये और आज भी पंजाब पर राज कर रहे हैं। यह हिं‍दुस्तान की बदनसीबी है कि पहले तो भ्रष्टाचारी नेता पकड में नहीं आते, अगर आते भी हैं तो मजबूत साक्ष्यों के अभाव और गवाहों के मुकर जाने के कारण बच निकलते हैं। बडे-बडे मगरमच्छों को बचाने के लिए सरकार भी कम हाथ-पैर नहीं मारती। मुलायम सिं‍ह और मायावती केंद्र सरकार को बचाने की कीमत वसूलते चले आ रहे हैं। केंद्र सरकार की भी मजबूरी है। कुर्सी को बचाये रखने के लिए न जाने किन-किनका साथ लेना और देना पडता है। सत्ता के जगजाहिर दलाल अमर सिं‍ह कभी बडे काम की हस्ती थे। प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिं‍ह तक उनका लोहा मानते और स्वीकारते थे। मुलायम सिं‍ह का साथ छूटते ही अमर सिं‍ह कटी पतंग बन कर रह गये। जेल की हवा भी खानी पडी। कभी सरकार को बचाने में बडी भूमिका निभाने वाला खुद को ही नहीं बचा पाया। चारा घोटाला के चलते लालू प्रसाद यादव भी जेल की हवा खा रहे होते। पर बचे हुए हैं। जिस दिन वे भूले से भी श्रीमती सोनिया गांधी और डॉ. मनमोहन सिं‍ह के खिलाफ मुंह खोलेंगे उस दिन उन्हें भी उनकी औकात दिखाने में देरी नहीं की जायेगी। वैसे लालू इतने लल्लू नहीं हैं कि ऐसी-वैसी कोई भूल या बेवकूफी करें। इस मुल्क की राजनीति में खुद्दारी किसी काम नहीं आती। जिन्हें इस सच्चाई पर यकीन न हो उन्हें ममता बनर्जी को याद कर लेना चाहिए। उसूल की एकदम पक्की हैं। जो कहती हैं उस पर अडिग रहती हैं पर राजनीति के कई दिग्गज उन्हें बेवकूफ मानते हैं। असली अक्लमंद तो मुलायम सिं‍ह जैसे मौका परस्त हैं जिन्हें सौदेबाजी और वादाखिलाफी करने में जरा भी शर्म नहीं आती।

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