Thursday, July 26, 2012

गीदड भभकियां

इन दिनों अगर कोई सबसे ज्यादा परेशान है तो वह है मनमोहन सरकार। मुल्क की आम जनता तो यह मान ही चुकी है कि इस सरकार के रहते उसका उद्धार नहीं हो सकता। अराजकता और महंगाई का दानव बेकाबू होता चला जा रहा है और सरकार अपनी ही समस्याओं में उलझी हुई है। डॉ. मनमोहन और सोनिया गांधी की गठबंधन सरकार के मंत्रियों को भी देश की कोई चिं‍ता नहीं है। ममता बनर्जी और शरद पवार जैसे मंत्रियों की मतलबी फौज ने साबित कर दिया है कि इस देश की जनता की समस्याएं उनके लिए कोई मायने नहीं रखतीं। उनके अहंकार और मान-सम्मान के सामने देश की भी कोई अहमियत नहीं है।
तृणमूल कांग्रेस की मुखिया ममता बनर्जी और राष्ट्रवादी कांग्रेस के सरदार शरद पवार का कहना है कि कांग्रेस को गठबंधन धर्म निभाना नहीं आता। जब देखो तब अपनी मनमानी करती रहती है। जानबूझकर हमारी अनदेखी की जाती है। ममता का यह राग बहुत पुराना पड चुका है। यही वजह है कि उनके केंद्र सरकार के खिलाफ चीखने-चिल्लाने को नजअंदाज कर दिया जाता है। लोगों ने भी मान लिया है ममता को गीदड भभकियां दिये बिना रोटी हजम नहीं होती। जब देश में अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार थी तब भी ममता का ऐसा ही रवैया हुआ करता था, जैसा आज है। राजनीति में सर्कसी करतब दिखाने के मामले बंगाल की शेरनी ममता बनर्जी मराठा क्षत्रप शरद पवार के आगे कहीं भी नहीं ठहरतीं। पवार को राजनीति के जंगल की भटकती आत्मा भी कहा जाता है, जिसे कभी चैन नहीं मिल सकता। वर्षों से हिं‍द का प्रधानमंत्री बनने का सपना संजोये पवार को हमेशा अपने साथ बेइंसाफी होने की पीडा सताती रहती है। इस चक्कर में वे देश और देशवासियों के साथ इंसाफ करना भूल जाते हैं।
खुद को दूसरों से अधिक काबिल समझने वाले शरद पवार देश के कृषि मंत्री हैं। इस कृषि मंत्री को इस बात का कतई ख्याल नहीं है कि देश के किसानों पर भीषण संकट मंडरा रहा है। सूखे की गाज ने उनके चेहरों पर उदासी पोत दी है। उन्हें सूखे से निपटने की बजाय सत्ता का खेल खेलने और सौदेबाजी करने में मजा आता है। पवार एंड कंपनी को महाराष्ट्र सरकार से भी कई शिकायतें हैं। महाराष्ट्र में कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस की मिली जुली सरकार है। दोनों दल वर्षों से सत्ता सुख भोगते चले आ रहे हैं। महाराष्ट्र के दमदार मंत्री छगन भुजबल पर भ्रष्टाचार के निरंतर आरोप लगते चले आ रहे हैं। उपमुख्यमंत्री अजित पवार पर भी अनेकों घोटालों के दाग हैं। राष्ट्रवादी कांग्रेस के छगन भुजबल खुद को दलितों और शोषितों का मसीहा कहते नहीं थकते। अजित पवार, शरद पवार के भतीजे हैं तो छगन भुजबल उनके खासमखास कहलाते हैं। यानी दोनों ही अपने हैं और अपनों पर कोई आंच आए इसे शरद पवार जैसा अनुभवी नेता कैसे बर्दाश्त कर सकता है! छगन भुजबल खुद को मायावती की बराबरी का नेता समझते हैं। इसलिए उन्हें भी 'माया' से बडा मोह है। अजित पवार अपने चाचा के पदचिन्हों पर चलने में यकीन रखते हैं इसलिए उन्हें किसी का खौफ नहीं सताता। महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री और कुछ ईमानदार किस्म के कांग्रेसियों की मंडली छगन भुजबल और अजित पवार की तूफानी आर्थिक तरक्की के गणित को जान-समझ गयी है और कार्रवाई का डंडा चलवाने को आतुर है। यह आतुरता राष्ट्रवादियों को रास नहीं आयी और उन्होंने महाराष्ट्र से पृथ्वीराज चौहान की रवानगी की भी मांग कर डाली।
खुद को सुरक्षित करने के लिए ऐसे दवाब तंत्रों का प्रयोग करना शरद पवार की पुरानी आदत है। अपनी शर्तों पर राजनीति करना भी इस नेता को खूब आता है। १९७८ में महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री बनने में सफल होने वाले इस उम्रदराज महारथी का अब मात्र एक ही सपना है कि बिल्ली के भाग्य से छींका टूटे और वे प्रधानमंत्री बन जाएं। चाचा और भतीजा दोनों मिलकर येन-केन-प्रकारेण महाराष्ट्र में कांग्रेस को धूल चटाने की ठाने हुए हैं। भतीजा महाराष्ट्र में राज करने के सपने देख रहा है तो चाचा जोड-तोड कर पी.एम. बनने के मंसूबे पाले है। शरद पवार कांग्रेस की तमाम कमजोरियों से वाकिफ हैं। अगर उनकी पार्टी के सांसदो की संख्या इतनी कम न होती तो वे कब के अपने मंसूबों में कामयाब हो गये होते। समाजवादी मुलायम सिं‍ह यादव, भाजपाई नितिन गडकरी, शिवसेना के बाल ठाकरे, मनसे के राज आदि-आदि तक उनका आना-जाना और मिलना-मिलाना चलता रहता है। खिचडी पकाने की कोशिशें भी चलती रहती हैं पर अभी तक पूरी तरह से खिचडी पक नहीं पायी है। जिस दिन ऐसा हो जायेगा उस दिन शरद पवार कांग्रेस को राम...राम कहने में देरी नहीं लगायेंगे। सोचिए जिसे सोनिया गांधी को प्रधानमंत्री बनते देखना गवारा नहीं था क्या वह राहुल के रास्ते से इतनी आसानी से हट जायेगा? सवाल यह भी है कि क्या देशवासी शरद पवार जैसे मौकापरस्त को प्रधानमंत्री बनने देंगे?

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