ये आदिम युग है, या इक्कीसवीं सदी जहां बच्चियां, किशोरियां, युवतियां, बहनें, बहूएं, पत्नियां, माताएं सबकी सब निशाने पर हैं। उनके लिए सडकें, गलियां, चौराहे, स्कूल, अस्पताल आदि-आदि सभी स्थल यातना और खतरे का घर बनकर रह गये हैं। कोई भी दिन ऐसा नहीं जाता जब उन पर बलात्कार, हत्या, छेडखानी और विभिन्न तरीकों से प्रताडित किये जाने की खबरें पढने और सुनने को न मिलती हों।
असम की राजधानी गुवाहाटी में एक सत्रह वर्षीय छात्रा के साथ १५-२० गुंडों ने सरेआम छेडछाड की और उसके कपडे तक फाड डाले। जिस तरह से बेखौफ होकर इस दरिंदगी को अंजाम दिया गया उससे यह भी पता चलता है कि असामाजिक तत्वों तथा सफेदपोशों की निगाह में कानून और खाकी वर्दी का खौफ कोई मायने नहीं रखता। वे जहां चाहें वहां किसी नारी की अस्मत लूटने को स्वतंत्र हैं। इस देश की आम जनता भी उनका कुछ नहीं बिगाड सकती, क्योंकि उसे तो तमाशबीन की भूमिका निभाने में बहुत मज़ा आता है। खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया को जितना भी कोसते रहें उसे कोई फर्क नहीं पडने वाला। उसे तो हर हाल में सनसनीखेज खबरें दिखानी हैं। इसके लिए वो कुछ भी कर सकता है। किसी की इज्जत ले भी सकता है और किसी की बहन-बेटी की इज्जत लुटते देख आंखें बंद भी कर सकता है।
वह युवती बडे जोशो-खरोश के साथ अपने दोस्त का जन्मदिन मनाकर पब से निकली ही थी कि शराबियों के गिरोह की उस पर नजर पड गयी। उन्होंने युवती को घेर लिया और फिर एक-एक कर उस पर ऐसे झपट पडे कि जैसे भूखे भेडियों के हाथ कोई मनचाहा शिकार लग गया हो। नशे में धुत शराबी युवती को नोचने-खसोटने में लग गये। उसके कपडे फाडने में भी देरी नहीं की गयी। कुछ ने तो उसके जिस्म पर जलती सिगरेट चुभो कर अपने वहशीपन का जीता-जागता सबूत दे डाला। तमाशबीनों की भीड बढती चली गयी। असहाय लडकी को बचाने के लिए कोई भी सामने आने की हिम्मत नहीं दिखा पाया। भीड में कुछ ऐसे बदमाश भी शामिल थे जिन्होंने युवती के साथ छेडछाड करने में कोई कमी नहीं की। बेबस युवती पर सामूहिक बलात्कार का जबरदस्त खतरा मंडरा रहा था और वहां पर मौजूद एक स्थानीय चैनल का पत्रकार भीड को उकसाते हुए धडाधड वीडियो फिल्म उतारने में लगा था। नज़ारा देख रहे पत्रकार ने अपने कार्यालय में फोन कर घटनास्थल पर फौरन कैमरा टीम भेजने को कहा, लेकिन उसने पुलिस को खबर करना कतई जरूरी नहीं समझा। उसे अपने पेशे-धंधे की तो चिंता थी पर नागरिक धर्म से उसका कोई लेना-देना नहीं था। युवती के साथ निर्लज्जता से पेश आती भीड को उकसाने के पीछे कहीं न कहीं उसका यह मकसद भी दिखायी दे गया कि वह बलात्कार होने की राह देख रहा था। ताकि उसे वह अपने चैनल पर दिखा सके। अगर ऐसा नहीं था तो क्या उस पत्रकार महाशय को सनसनीखेज खबर पर अपनी पूरी ताकत लगाने की बजाय असहाय युवती को वासना के भूखे दरिंदों के चंगुल से बचाने की पहल नहीं करनी चाहिए थी?
ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है जब कई पत्रकारों ने बडी बेरहमी और निर्लज्जता के साथ सिर्फ और सिर्फ खबरों को प्राथमिकता दी है और मानवीयता, नैतिकता और नागरिक धर्म का जनाजा निकालने का कीर्तिमान रचा है।
अस्पताल में तो लोग भले चंगे होने के लिए जाते हैं। परंतु देश की राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित सफदरजंग अस्पताल में एक गर्भवती महिला के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गयी। कुछ महीने पहले दिल्ली के ही लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के बाथरूम में एक युवती को कुछ आवारा लडकों ने दबोच लिया था। बेचारी ईलाज के लिए आयी थी पर बलात्कारियों ने उसकी अस्मत लूटने के बाद मौत के घाट उतार दिया। इंदौर की पुलिस ने एक निहायत ही घटिया किस्म के शख्स को गिरफ्तार किया है, जिसे अपनी पत्नी पर कतई यकीन नहीं था। वह जब घर से बाहर होता तो उसके दिमाग में हलचल मची रहती। उसे लगता कि उसकी पत्नी गैर मर्द के साथ गुलछर्रे उडा रही है। पत्नी किसी और के साथ हमबिस्तर न हो इसके लिए उसने जो रास्ता निकाला यकीनन वो रोंगटे खडे कर देने वाला है। न कभी सुना गया और न देखा गया। बीवी को जरखरीद गुलाम समझने वाले ४५ वर्षीय पति ने एक नुकीले औजार से ३४ वर्षीय पत्नी के यौनांग में छेद किया और ताला जड दिया। बेचारी पत्नी चार साल से यह जुल्म सहती चली आ रही थी। क्रूर और शकी पति की अमानवीय करतूत का खुलासा तब हुआ जब पत्नी ने त्रस्त होकर जहर खा लिया। ऐसी न जाने कितनी खबरें हर दिन अखबारों और न्यूज चैनलों में जगह पाती हैं। कई खबरें ऐसी भी होती हैं जिनपर बडी चालाकी से पर्दा डाल दिया जाता है। नारियों पर नराधमों के द्वारा ढाये जाने वाले जुल्म का सिलसिला थमता नहीं दिखता। आज खबर आती है और कल भूला दी जाती है क्योंकि नारियों पर होने वाले अत्याचार को आम बात मान लिया गया है। बडे से बडे अनाचार के समाचार को महज खबर मानकर पढना, सुनना और भूल जाना हमारी दिनचर्या का अंग बन चुका है?
असम की राजधानी गुवाहाटी में एक सत्रह वर्षीय छात्रा के साथ १५-२० गुंडों ने सरेआम छेडछाड की और उसके कपडे तक फाड डाले। जिस तरह से बेखौफ होकर इस दरिंदगी को अंजाम दिया गया उससे यह भी पता चलता है कि असामाजिक तत्वों तथा सफेदपोशों की निगाह में कानून और खाकी वर्दी का खौफ कोई मायने नहीं रखता। वे जहां चाहें वहां किसी नारी की अस्मत लूटने को स्वतंत्र हैं। इस देश की आम जनता भी उनका कुछ नहीं बिगाड सकती, क्योंकि उसे तो तमाशबीन की भूमिका निभाने में बहुत मज़ा आता है। खुद को लोकतंत्र का चौथा स्तंभ कहने वाले इलेक्ट्रानिक मीडिया को जितना भी कोसते रहें उसे कोई फर्क नहीं पडने वाला। उसे तो हर हाल में सनसनीखेज खबरें दिखानी हैं। इसके लिए वो कुछ भी कर सकता है। किसी की इज्जत ले भी सकता है और किसी की बहन-बेटी की इज्जत लुटते देख आंखें बंद भी कर सकता है।
वह युवती बडे जोशो-खरोश के साथ अपने दोस्त का जन्मदिन मनाकर पब से निकली ही थी कि शराबियों के गिरोह की उस पर नजर पड गयी। उन्होंने युवती को घेर लिया और फिर एक-एक कर उस पर ऐसे झपट पडे कि जैसे भूखे भेडियों के हाथ कोई मनचाहा शिकार लग गया हो। नशे में धुत शराबी युवती को नोचने-खसोटने में लग गये। उसके कपडे फाडने में भी देरी नहीं की गयी। कुछ ने तो उसके जिस्म पर जलती सिगरेट चुभो कर अपने वहशीपन का जीता-जागता सबूत दे डाला। तमाशबीनों की भीड बढती चली गयी। असहाय लडकी को बचाने के लिए कोई भी सामने आने की हिम्मत नहीं दिखा पाया। भीड में कुछ ऐसे बदमाश भी शामिल थे जिन्होंने युवती के साथ छेडछाड करने में कोई कमी नहीं की। बेबस युवती पर सामूहिक बलात्कार का जबरदस्त खतरा मंडरा रहा था और वहां पर मौजूद एक स्थानीय चैनल का पत्रकार भीड को उकसाते हुए धडाधड वीडियो फिल्म उतारने में लगा था। नज़ारा देख रहे पत्रकार ने अपने कार्यालय में फोन कर घटनास्थल पर फौरन कैमरा टीम भेजने को कहा, लेकिन उसने पुलिस को खबर करना कतई जरूरी नहीं समझा। उसे अपने पेशे-धंधे की तो चिंता थी पर नागरिक धर्म से उसका कोई लेना-देना नहीं था। युवती के साथ निर्लज्जता से पेश आती भीड को उकसाने के पीछे कहीं न कहीं उसका यह मकसद भी दिखायी दे गया कि वह बलात्कार होने की राह देख रहा था। ताकि उसे वह अपने चैनल पर दिखा सके। अगर ऐसा नहीं था तो क्या उस पत्रकार महाशय को सनसनीखेज खबर पर अपनी पूरी ताकत लगाने की बजाय असहाय युवती को वासना के भूखे दरिंदों के चंगुल से बचाने की पहल नहीं करनी चाहिए थी?
ऐसा पहले भी कई बार हो चुका है जब कई पत्रकारों ने बडी बेरहमी और निर्लज्जता के साथ सिर्फ और सिर्फ खबरों को प्राथमिकता दी है और मानवीयता, नैतिकता और नागरिक धर्म का जनाजा निकालने का कीर्तिमान रचा है।
अस्पताल में तो लोग भले चंगे होने के लिए जाते हैं। परंतु देश की राजधानी दिल्ली के प्रतिष्ठित सफदरजंग अस्पताल में एक गर्भवती महिला के साथ दुष्कर्म करने की कोशिश की गयी। कुछ महीने पहले दिल्ली के ही लोकनायक जयप्रकाश अस्पताल के बाथरूम में एक युवती को कुछ आवारा लडकों ने दबोच लिया था। बेचारी ईलाज के लिए आयी थी पर बलात्कारियों ने उसकी अस्मत लूटने के बाद मौत के घाट उतार दिया। इंदौर की पुलिस ने एक निहायत ही घटिया किस्म के शख्स को गिरफ्तार किया है, जिसे अपनी पत्नी पर कतई यकीन नहीं था। वह जब घर से बाहर होता तो उसके दिमाग में हलचल मची रहती। उसे लगता कि उसकी पत्नी गैर मर्द के साथ गुलछर्रे उडा रही है। पत्नी किसी और के साथ हमबिस्तर न हो इसके लिए उसने जो रास्ता निकाला यकीनन वो रोंगटे खडे कर देने वाला है। न कभी सुना गया और न देखा गया। बीवी को जरखरीद गुलाम समझने वाले ४५ वर्षीय पति ने एक नुकीले औजार से ३४ वर्षीय पत्नी के यौनांग में छेद किया और ताला जड दिया। बेचारी पत्नी चार साल से यह जुल्म सहती चली आ रही थी। क्रूर और शकी पति की अमानवीय करतूत का खुलासा तब हुआ जब पत्नी ने त्रस्त होकर जहर खा लिया। ऐसी न जाने कितनी खबरें हर दिन अखबारों और न्यूज चैनलों में जगह पाती हैं। कई खबरें ऐसी भी होती हैं जिनपर बडी चालाकी से पर्दा डाल दिया जाता है। नारियों पर नराधमों के द्वारा ढाये जाने वाले जुल्म का सिलसिला थमता नहीं दिखता। आज खबर आती है और कल भूला दी जाती है क्योंकि नारियों पर होने वाले अत्याचार को आम बात मान लिया गया है। बडे से बडे अनाचार के समाचार को महज खबर मानकर पढना, सुनना और भूल जाना हमारी दिनचर्या का अंग बन चुका है?
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