Thursday, September 20, 2012

चाटूकारों के चक्रव्यूह में फंसा आम आदमी

हिं‍दुस्तान के गृहमंत्री सुशील कुमार शिं‍दे राजनीति में पदार्पण करने से पहले महाराष्ट्र पुलिस में पदस्थ थे। एक अदने से सब इंस्पेक्टर की 'प्रतिभा' को मराठा क्षत्रप शरद पवार ने जांचा-परखा और राजनीति में आने की सलाह दे डाली। खाकी वर्दीधारी ने खादी धारण करने में जरा भी देरी नहीं लगायी।
पुलिसिया चाल-ढाल में रचे-बसे सुशील कुमार शिं‍दे ने राजनीति के क्षेत्र में भी बडी आसानी से अपनी जडे जमानी शुरू कर दीं। उन्हें महाराष्ट्र का मुख्यमंत्री भी बनाया गया। वर्तमान में वे देश के गृहमंत्री हैं। अपने शुरुआती दौर के आका से काफी आगे निकल चुके हैं। शरद पवार को यह बात यकीनन खलती होगी। जिसे रास्ता दिखाया उसी ने धक्का मारकर पीछे धकेल दिया। शिं‍दे गांधी परिवार के परम भक्त हैं। पवार तो सोनिया गांधी के विदेशी मुद्दे को लेकर कांग्रेस पार्टी तक को छोड अपनी खुद की पार्टी बना चुके हैं। आज वे राष्ट्रवादी कांग्रेस के सर्वेसर्वा हैं। राजनीति के विद्वानों का मानना है कि यदि शरद पवार ने कांग्रेस नहीं छोडी होती तो उन्हें इस कदर मायूसी का मुंह नहीं देखना पडता। ये उनकी अकड और भूल ही थी जिसने उन्हें प्रधानमंत्री की कुर्सी से बहुत दूर कर दिया। देखते ही देखते उनका चेला गृहमंत्री बन गया है। यानी आने वाले समय में उसके लिए प्रधानमंत्री बनने की अनंत संभावनाएं बाहें फैलाये खडी हैं। भूतपूर्व राष्ट्रपति स्वर्गीय ज्ञानी जैल सिं‍ह और सुशील कुमार शिं‍दे एक ही मिट्टी के राज योद्धा कहे जा सकते हैं जिन्होंने कसीदे पढने में महारत के दम पर बुलंदियां हासिल कीं। ज्ञानी जी बेहिचक कहा करते थे कि अगर श्रीमती इंदिरा गांधी उन्हें आदेश देंगी तो वे झाडू लगाने से भी नहीं कतरायेंगे। वे बेझिझक स्वीकारते थे कि उनकी इसी योग्यता ने उन्हें देश के राष्ट्रपति बनवाया है। सुशील कुमार शिं‍दे भी कांग्रेस तथा सोनिया गांधी के अहसानमंद हैं, जिन्होंने उन्हें वहां तक पहुंचाया है, जहां पहुंचने के लिए कई दिग्गज कांग्रेसी अपनी सारी उम्र खपा चुके हैं और थक-हार कर बैठ गये हैं। बेचारों की तमाम उम्मीदें तमाम हो गयी हैं। आज के राजनीतिक दौर में चरण वंदना और स्वामिभक्ति का पुरस्कार मिलता ही है। जिनकी खुद्दारी उन्हें बार-बार नतमस्तक नहीं होने देती वे चाटूकारों से बहुत पीछे रह जाते हैं। कई चाटूकार तो हद दर्जे के चालाक हैं। जिसे दूसरे लोग मक्खन बाजी कहते हैं उसे वे निष्ठा और वफादारी कहते हैं। उनकी इस निष्ठा को लेकर भले ही लोग उनकी खिल्ली उडाते रहें पर उन्हें कोई फर्क नहीं पडता। इन निष्ठावानों के लिए जनता जनार्दन कोई मायने नहीं रखती। इन्हें पुरस्कृत करते चले जाने वाले 'आका' ही इनके एकमात्र भगवान हैं। जो इनके दिल और दिमाग में हरदम बसे रहते हैं। भगवान के समक्ष आम इंसानों का कोई मोल नहीं है तभी तो देश के गृहमंत्री ये कहते नहीं हिचकते: 'बोफोर्स मामले की तरह जल्द ही कोयला घोटाले को भी भुला दिया जायेगा। इस देश की आम जनता तो हद दर्जे की भुलक्कड है।' एक निहायत ही जिम्मेदार मंत्री के जब ऐसे विचार हों तो मन में कई तरह के विचारों का आना स्वाभाविक है। देश की जनता की स्मरणशक्ति को शुन्य मानने वाले विद्वान गृहमंत्री के कथन में ये संदेश छिपा दिखता है कि तमाम भ्रष्टाचारी बेखौफ होकर अपने गोरखधंधे चलाते रहें। सरकार भी आंख और कान बंद कर ले। सरकारी संपदा लुटती है तो लुटती रहे। लुटेरों का बाल भी बांका नहीं होना चाहिए। आम जनता तो एक कान से सुनती है और दूसरे से निकाल देती है। विरोधियों का तो काम ही है चीखना-चिल्लाना। जो लोग नेताओं को वोट देकर सत्ता तक पहुंचाते हैं वे तो अंधे-बहरे हैं। उनसे डर काहे का...!
ऐसा भी लगता है कि शिं‍दे ने खयाली पुलाव खाने और पचाने में महारत हासिल कर ली है। उन्हें सोनिया गांधी की मेहरबानियां तो याद हैं पर उस जनता को भूल गये हैं जिसने उन्हें वोट देकर इतने ऊंचे ओहदे तक पहुंचाया है। अगर आम आदमी ने उन्हें घास नहीं डाली होती तो वे आज भी 'खाकी' में लिपटे भ्रष्ट मंत्रियों-संत्रियों की सेवा और पहरेदारी में लगे नजर आते। शिं‍दे जी, जिनके वोट की बदौलत आज आप देश के गृहमंत्री बने हैं उनके साथ अहसान फरामोशी मत कीजिए! इस मुल्क का लोकतंत्र आपको कभी माफ नहीं करेगा। इस देश की जनता, जो आपको भुलक्कड और अनाडी नजर आ रही हैं, वही आप जैसों को ऐसा सबक सिखायेगी कि होश ठिकाने आ जाएंगे।
क्या आपकी याददाश्त का दिवाला पिट गया है जो आप कसीदे पढने के चक्कर में सच्चाई का गला घोंटने पर उतारु हैं? जब बोफोर्स स्कैंडल सामने आया था तब देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की कैसी दुर्गति हुई थी और आम जनता ने कांग्रेस को किस तरह से दुत्कार कर सत्ता से बाहर कर दिया था, इसकी हकीकत आज भी देशवासियों के दिलो-दिमाग में ताजा है। बोफोर्स की वजह से ही कांग्रेस इस कदर धराशायी हुई कि वर्षों बीत जाने के बाद भी उठ नहीं पायी है। बैसाखियों के दम पर वह केंद्र की सत्ता का 'भोग' जरुर कर रही है पर इस भोग का 'रोग' उसके तन-बदन को खोखला करता चला आ रहा है। देश पर जबरन आपातकाल थोपने वाली श्रीमती इंदिरा गांधी को भी आम जनता की जागरूकता की वजह से सत्ता खोने की असहनीय पीडा से रूबरू होना पडा था। देश की आम जनता कोयला घोटाले को भला कैसे भूल सकती है? इसकी वजह से ही तो कई दिग्गज 'नकाबपोशों' का असली चेहरा सामने आया है। लोग तो उनका मुंह नोच लेना चाहते हैं और गृहमंत्री जी आप हैं कि...?

No comments:

Post a Comment