Thursday, September 6, 2012

यारों, दोस्तों और रिश्तेदारों की अंधी लूट

देश को लूटने की होड मची है। कई राजनेता और उद्योगपति तो इस खेल के पुराने खिलाडी रहे हैं। अब तो मीडिया के दिग्गजों के नाम भी सुर्खियां पाने लगे हैं। ऐसा लगता है कि सभी लुटेरे बडी हडबडी में हैं। क्या पता कल मौका मिले या ना मिले। आज मिला है, तो जी भरकर लूट लो...। देश भक्त होने का ढोल पीटने की पोल खुल रही है। इनकी दगाबाजी को देखकर आम जनता इतने गुस्से में है कि अगर उसका बस चले तो वह इन्हें भरे चौराहे पर खडा कर दुरुस्त कर दे। बेचारी आम जनता बेबस है इसलिए देश मनमानी लूट का तांडव मचा है...।
देश के प्रधानमंत्री बडे गजब के इंसान हैं। उन्हें आम जनता की तकलीफें दिखायी नहीं देतीं। किसानों की आत्महत्याओ की खबरें उन्हें विचलित नहीं करतीं। महंगाई के दानव के दंश की मार से आहत आम जनता की फरियाद सुनने का उनके पास वक्त नहीं है। हर सवाल के जवाब में उनके पास सिर्फ 'खामोशी' है। तो फिर आखिर वे सुनते किसकी हैं और किनके समक्ष हथियार डालने में देरी नहीं लगाते? जवाब खुद-ब-खुद सामने आते चले जा रहे हैं। सवा सौ करोड से अधिक जनता के सीधे-सरल प्रधानमंत्री के कानों तक चंद मंत्रियों, सांसदों और उद्योगपतियों की आवाज फौरन पहुंच जाती है और उनकी हर मंशा भी पूरी कर दी जाती है! देश के पर्यटन मंत्री सुबोधकांत सहाय ने जब अपने भाई सुधीर सहाय की कंपनी के नाम की सिफारीश की तो उन्होंने फौरन थाली में परोस कर कोयले की खदानें सौंप दीं। भाई ने करोडों रुपये कमा लिये और मंत्री जी भी गदगद हो गये। उनके लिए मनमोहन सिं‍ह किसी फरिश्ते से कम नहीं। एक ही झटके में सात पीढि‍यों की 'ऐश' का इंतजाम हो गया। देश सेवा का इससे अच्छा 'मेवा' और क्या हो सकता है। ऐसे में कौन होगा जो 'राजनेता' नहीं बनना चाहेगा? इस मुखौटे की आड में सबकुछ करने की खुली छूट मिल जाती है। अमानत में खयानत करने का लायसेंस भी मिल जाता है। चोरी के पकडे जाने पर बचाव की कला भी आ जाती है।
कांग्रेस के राज्यसभा सांसद विजय दर्डा को भी अरबों रुपयों की कोयला खद्दानों के लिए ज्यादा पापड नहीं बेलने पडे। विजय दर्डा सांसद होने के साथ-साथ मीडिया के दिग्गज भी कहलाते हैं। महाराष्ट्र में उनके 'लोकमत' की खासी धाक है। हिं‍दी और अंग्रेजी में भी दैनिक निकालते हैं। चैनल आईबीएन ७ भी उनकी मुट्ठी में है। यानी अच्छे-खासे बलशाली हैं ये कांग्रेसी सांसद। ऐसे में मनमोहन सिं‍ह की क्या मजाल कि उनकी मंशा पूरी न होने देते। उन्हें तो उन्हें, उनके दोस्त को भी कौडि‍यों के मोल कोयला ब्लॉक दे दिये गये। दर्डा यारों के यार हैं। मीडिया का फायदा लेना उन्हें खूब आता है। वे जानते हैं कि बुरे वक्त में दोस्त और भाई-बेटे ही काम आते हैं। इसलिए वे अपनों का खास ख्याल रखते हैं। उन्हें किसी भी तरीके से मालामाल करने की जुगाड में लगे रहते हैं। ताकि वक्त आने पर 'रिश्ते' काम आ सकें। वे हर राजनीतिक पार्टी के मुखिया के साथ करीबी बनाये रखने में भी माहिर हैं। भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी भी उनके खासमखास हैं। ज्यादा दिन नहीं हुए जब वे गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी की आरती गाते देखे गये थे। लगता है कांग्रेस ने तभी तय कर लिया था कि इन्हें तो मजा चखाना ही है। विजय दर्डा के छोटे भाई राजेंद्र दर्डा महाराष्ट्र सरकार में शिक्षा मंत्री हैं। बेटे की भी बडी-बडी कंपनियों में साझेदारी है। फाइव स्टार होटल और स्कूल-कालेज भी चलाते हैं यानी सर्वशक्तिवान हैं। यह भी कह सकते हैं कि दर्डा परिवार बलवानों और धनवानों का जमावडा है। आज के दौर में सिर्फ और सिर्फ ऐसे ही मायावानों का सिक्का चलता है। भारतीय जनता पार्टी के राष्ट्रीय सचिव किरीट सौमेया के अनुसार दर्डा परिवार और जायसवाल समूह की अटूट कमाऊ भागीदारी है। इन्हें पानी के मोल नौ खद्दाने आवंटित की गयी हैं। जिसमें २५ हजार करोड का घोटाला हुआ है। नागपुर के जायसवाल बंधु केंद्रीय कोयला मंत्री श्री प्रकाश जायसवाल के भी रिश्तेदार हैं। है न कमाल की बात। यारी-दोस्ती और रिश्तेदारी के बलबूते पर देश की अरबों-खरबों की खनिज संपदा की लूट मची है। दूसरी तरफ कोयला मंत्री यह बयान देकर जनता के आक्रोश को शांत करना चाहते हैं कि मंत्रियों तथा सांसदो के रिश्तेदारो को भी धंधा करने का पूरा हक है। वे भी इस देश के नागरिक हैं। किसी मंत्री के भाई या उसके रिश्तेदार को कोल ब्लाक आवंटित करने को लेकर सवाल उठाना बेमानी है। यह कहां का इंसाफ है कि यदि कोई किसी सांसद और अखबार वाले का करीबी है, तो उसे कोयले की खद्दानें न दी जाएं? मंत्री जी जो चाहें कहते रहें। उन्हें भी अपनी बात कहने का पूरा हक है। हमारा भी यही कहना है कि सत्ताधीशों और नेताओं के करीबियों को सौ खून माफ हैं। वे सबकुछ करने को स्वतंत्र हैं। वे जहां चाहें लूट मचायें, देश को खा-चबा जाएं उन्हें कोई कुछ नहीं कहने वाला। यह देश 'ऊंचे लोगों' की बपौती बनकर रह गया है। इन्हीं ऊंचों की तिजोरियों में देश की अस्सी प्रतिशत दौलत सिमट कर रह गयी है। आम आदमी जहां का तहां है, क्योंकि उसकी किसी मंत्री, सांसद, उद्योगपति, अफसर, अखबारी लाल आदि-आदि से कोई दोस्ती या रिश्तेदारी नहीं है।

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