कांग्रेस के कारवां में शामिल लुटेरों के मुखौटे लगातार उतरते चले जा रहे हैं। कांग्रेस की सुप्रीमों सोनिया गांधी की सजगता और दूरदर्शिता की अनेकों दास्तानें हैं। फिर भी हैरत होती है कि वे अपने आसपास के चमत्कारों से अंजान रह जाती हैं! उनके दामाद ने मात्र पांच वर्षों में ५० लाख से ३०० करोड का आलीशान साम्राज्य खडा कर लिया। आखिर उन्हें इसकी खबर क्यों नहीं लग पायी? लोग अब यह कहने से भी नहीं चूक रहे हैं कि सोनिया गांधी ने ही दामाद बाबू को छूट दे रखी है। पर इतनी छूट कि वे खुल्लम-खुल्ला लूटमार पर उतर आएं और हंगामा बरपा हो जाए? पिछले दो-ढाई साल से देश में यही सब तो हो रहा है। एक घपले की खबर ठंडी पडती नहीं कि दूसरी और तीसरी खबर मनमोहन सरकार के गाल पर ऐसा तमाचा जड देती है कि सहलाने का मौका भी नहीं मिल पाता। घपलों-घोटालों के आरोप-दर-आरोप झेल रही कांग्रेस के लिए राबर्ट का मामला जहां जख्मों पर नमक छिडकने वाला रहा, वहीं केंद्रीय कानून मंत्री सलमान खुर्शीद ने मनमोहनी सरकार को ही निर्वस्त्र करके रख दिया। सत्ता के खिलाडियों का यह चेहरा वाकई चौंकाने वाला है। एक न्यूज चैनल के स्टिंग आपरेशन में दावा किया गया कि सलमान खुर्शीद और उनकी पत्नी के ट्रस्ट (डॉ. जाकिर हुसैन मेमोरियल ट्रस्ट) को १७ जिलों में विकलांगो को ट्राइसाइकिल और सुनने की मशीन बांटने के लिए जो ७१.५० लाख रुपये दिये गये थे, उनमें काफी गोलमाल किया गया है। १७ में से १० जिलों में तो कैम्प लगे ही नहीं। यानी कानून मंत्री ने विकलांगो के हक की रकम डकार ली! जिस देश के कानून मंत्री पर ऐसे शर्मनाक आरोप हों वहां की आम जनता खामोश और अंधी तो नहीं बनी रह सकती। वहां पर एक नहीं, सैकडों अरविंद केजरीवाल सडक पर उतर सकते हैं। कानून मंत्री का बौखला जाना और फिर यह कह गुजरना कि अब तो कलम की बजाय 'खून' का सहारा लेना होगा, आखिर क्या दर्शाता है! देशवासियों को वे कैसी सीख देना चाहते हैं? लोकतंत्र को जंगलराज में बदलने की मंशा तो नहीं पाल ली इस नेता ने?
एक अन्य राजनेता का बयान भी कम चौंकाने वाला नहीं है। उनका कहना है कि लाखों का भ्रष्टाचार भी कोई भ्रष्टाचार होता है। यह तो करोडों-अरबों-खरबों की लूट और हेराफेरी का दौर है। यानी कानून मंत्री तो भोले इंसान है। असली भ्रष्टाचारी होते तो हजारों करोड के वारे-न्यारे कर जाते और किसी को खबर भी न लग पाती। नेताजी यह संदेश भी देना चाहते हैं कि डाकूओं के पकडे जाने पर हो-हल्ला मचाओ और चोरों को नजरअंदाज करते चले जाओ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी फरमा चुके हैं कि छोटी-मोटी हेराफेरी करने में कोई हर्ज नहीं है। देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों और उनके कर्ताधर्ताओं यही सोच है, जो उनके असली चरित्र को दर्शाती है। भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड टूटने और आम जनता में आक्रोश होने के बावजूद कांग्रेस की मुखिया की चुप्पी हैरान-परेशान तो करती ही है। ऐसे में वोटर कांग्रेस को उसकी करनी के प्रतिफल का स्वाद चखाने को कितने आतुर हैं उसका अनुमान लोकसभा के दो उपचुनावों के नतीजो से लग जाता है।
उत्तराखंड तिहरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पडी है। कांग्रेस ने यहां पर विकास के नाम पर चुनाव लडते हुए प्रदेश के कायाकल्प के सपने दिखाये थे। यह राज्य के मुख्यमंत्री की खाली हुई सीट थी जहां से उनके पुत्र को यह सोच कर खडा कर दिया गया कि लोग मुख्यमंत्री का तो मान रखेंगे ही। पर लोग अब भावुकता छोड हकीकत का दामन थाम चुके हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने बेटे को विजयश्री दिलवाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। पर उनकी सारी की सारी मेहनत और तिकडम पर पानी फिर गया। इसी तरह से पश्चिम बंगाल के जंगीपुर में कांग्रेस उम्मीदवार और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लाडले अभिजीत मुखर्जी जैसे-तैसे मात्र २५३६ वोटों से चुनाव जीत पाये। इस जीत ने कांग्रेस को शर्मिंदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। देश के राष्ट्रपति का सुपुत्र उन्हीं की सीट से चुनाव लडे और ऐसी हल्की-फुल्की जीत हो तो लोग चौकेंगे ही। गौरतलब है कि प्रणब मुखर्जी यहीं से एक लाख २८ हजार वोटों से जीते थे। दरअसल ये नतीजे दर्शाते हैं कि वोटर केंद्र सरकार से नाखुश हैं। भ्रष्टाचार और महंगाई ने कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढाई है। ऐसे में यदि कहीं मध्यावधि चुनाव होते हैं तो कांग्रेस की कैसी दुर्गति होगी इसका भी अनुमान लगाया जा सकता है। वैसे भी कुछ ही महीनों के बाद देश के ११ राज्यों में आम चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस का भविष्य तो स्पष्ट नजर आ रहा है। भाजपा भी लोगों की निगाह से गिर चुकी है। उसके 'कारोबारी' अध्यक्ष की भी पोल खुल गयी है। सजग जनता कभी भी नहीं चाहेगी कि देश एक ऐसा बाजार बन कर रह जाए जहां सौदागर अपनी मनमानी करते रहें। ऐसे विकट दौर में कोई पाक-साफ दल ही देशवासियों की पहली पसंद बन सकता है। पर कहां है वो राजनीतिक दल? यकीनन देशवासियों के समक्ष कोई विकल्प ही नहीं है। चोर-चोर मौसेरे भाइयों के इस काल में देश की आम जनता असमंजस की गिरफ्त कसमसा रही है...।
एक अन्य राजनेता का बयान भी कम चौंकाने वाला नहीं है। उनका कहना है कि लाखों का भ्रष्टाचार भी कोई भ्रष्टाचार होता है। यह तो करोडों-अरबों-खरबों की लूट और हेराफेरी का दौर है। यानी कानून मंत्री तो भोले इंसान है। असली भ्रष्टाचारी होते तो हजारों करोड के वारे-न्यारे कर जाते और किसी को खबर भी न लग पाती। नेताजी यह संदेश भी देना चाहते हैं कि डाकूओं के पकडे जाने पर हो-हल्ला मचाओ और चोरों को नजरअंदाज करते चले जाओ। समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव भी फरमा चुके हैं कि छोटी-मोटी हेराफेरी करने में कोई हर्ज नहीं है। देश की अधिकांश राजनीतिक पार्टियों और उनके कर्ताधर्ताओं यही सोच है, जो उनके असली चरित्र को दर्शाती है। भ्रष्टाचार के रिकॉर्ड टूटने और आम जनता में आक्रोश होने के बावजूद कांग्रेस की मुखिया की चुप्पी हैरान-परेशान तो करती ही है। ऐसे में वोटर कांग्रेस को उसकी करनी के प्रतिफल का स्वाद चखाने को कितने आतुर हैं उसका अनुमान लोकसभा के दो उपचुनावों के नतीजो से लग जाता है।
उत्तराखंड तिहरी लोकसभा सीट के उपचुनाव में कांग्रेस को मुंह की खानी पडी है। कांग्रेस ने यहां पर विकास के नाम पर चुनाव लडते हुए प्रदेश के कायाकल्प के सपने दिखाये थे। यह राज्य के मुख्यमंत्री की खाली हुई सीट थी जहां से उनके पुत्र को यह सोच कर खडा कर दिया गया कि लोग मुख्यमंत्री का तो मान रखेंगे ही। पर लोग अब भावुकता छोड हकीकत का दामन थाम चुके हैं। मुख्यमंत्री विजय बहुगुणा ने अपने बेटे को विजयश्री दिलवाने के लिए जमीन-आसमान एक कर दिया। पर उनकी सारी की सारी मेहनत और तिकडम पर पानी फिर गया। इसी तरह से पश्चिम बंगाल के जंगीपुर में कांग्रेस उम्मीदवार और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के लाडले अभिजीत मुखर्जी जैसे-तैसे मात्र २५३६ वोटों से चुनाव जीत पाये। इस जीत ने कांग्रेस को शर्मिंदा करने में कोई कसर बाकी नहीं रखी। देश के राष्ट्रपति का सुपुत्र उन्हीं की सीट से चुनाव लडे और ऐसी हल्की-फुल्की जीत हो तो लोग चौकेंगे ही। गौरतलब है कि प्रणब मुखर्जी यहीं से एक लाख २८ हजार वोटों से जीते थे। दरअसल ये नतीजे दर्शाते हैं कि वोटर केंद्र सरकार से नाखुश हैं। भ्रष्टाचार और महंगाई ने कांग्रेस के प्रति नाराजगी बढाई है। ऐसे में यदि कहीं मध्यावधि चुनाव होते हैं तो कांग्रेस की कैसी दुर्गति होगी इसका भी अनुमान लगाया जा सकता है। वैसे भी कुछ ही महीनों के बाद देश के ११ राज्यों में आम चुनाव होने वाले हैं। कांग्रेस का भविष्य तो स्पष्ट नजर आ रहा है। भाजपा भी लोगों की निगाह से गिर चुकी है। उसके 'कारोबारी' अध्यक्ष की भी पोल खुल गयी है। सजग जनता कभी भी नहीं चाहेगी कि देश एक ऐसा बाजार बन कर रह जाए जहां सौदागर अपनी मनमानी करते रहें। ऐसे विकट दौर में कोई पाक-साफ दल ही देशवासियों की पहली पसंद बन सकता है। पर कहां है वो राजनीतिक दल? यकीनन देशवासियों के समक्ष कोई विकल्प ही नहीं है। चोर-चोर मौसेरे भाइयों के इस काल में देश की आम जनता असमंजस की गिरफ्त कसमसा रही है...।
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