Thursday, October 25, 2012

यह चिल्लर क्या बला है?

इसे ही तो कहते हैं चोरी और उस पर सीना जोरी। कांग्रेस के नेता वीरभद्र सिं‍ह, पत्रकारों के सवालों के जवाब देने की बजाय उनके कैमरे तोडने की धमकी देने पर उतर आए। उनका बस चलता तो पत्रकारों की ठुकाई भी कर देते। हम तो यही सुनते आये थे कि इंसान जब गलती करता है तो उसका सिर शर्म से झुक जाता है। ये नेता तो देश को लूट रहे हैं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार ने इनके चरित्र की नस-नस में अपनी जगह बना ली है फिर भी इन्हें शर्म नहीं आती! झुकना छोड दादागिरी दिखाने लगे हैं। ये बेशर्म जितने नंगे हो रहे हैं उतने ही दबंग होते चले जा रहे हैं। नेता और नेतागिरी को कलंकित करने वाले इन सफेदपोश गुंडो के तेवर वाकई देखते बनते हैं। समाजवादी पार्टी के सुप्रीमो मुलायम सिं‍ह कहते हैं कि नेताओं के खिलाफ बोलने वालों को भाव देना बेवकूफी है। ये लोग कितना चीखेंगे और चिल्लायेंगे। आखिर एक दिन तो थक हार चुपचाप बैठ ही जाएंगे। पहले तो कुछ नेता ही ऐसी भाषा बोलते थे, पर अब तो इनकी तादाद काफी बढ गयी है। बेखौफ होकर लूट मचाते हैं, रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं और जब पत्रकार इनकी पोल खोलते हैं तो ये डंके की चोट पर खुद को पाक-साफ बता ऐसे आगे निकल जाते हैं जैसे कि ये दूध के धुले हों और असली गुनहगार पत्रकार ही हों। अपनी करोडों की काली कमायी को सफेद करने वाले वीरभद्र सिं‍ह कांग्रेस के कद्दावर नेता हैं। उन्हें हिमाचल प्रदेश का मुख्यमंत्री बनाने के सपने भी कांग्रेस देख रही है। एक आयकर चोर जब प्रदेश का मुख्यमंत्री बनेगा तो प्रदेश में कैसे-कैसे लोग फलें-फूलेंगे यह लिखने और बताने की जरूरत नहीं है। नेताओं के साथ ही राजनीतिक पार्टियों ने भी अपनी नैतिकता बेच खायी है। इनके लिए वही नेता असली नेता है जो चुनाव के समय फंड का जुगाड कर सके। इसके लिए भले ही वह कैसे भी तौर-तरीके क्यों न अपनाये। पार्टियों को तो सिर्फ धन से ही मतलब है जिसकी बदौलत वोटरों को बरगलाया और खरीदा जाता है। शरद पवार राष्ट्रवादी कांग्रेस के कर्ताधर्ता हैं तो नितिन गडकरी भाजपा के घोर विवादित अध्यक्ष हैं। शरद पवार तो अपनी मर्जी के राजा हैं। गडकरी को झेलना भाजपा की मजबूरी है। एक तो संघ का दबाव दूसरा गडकरी का धन जुटाने का गुण सब पर भारी पडता है। गडकरी विधानसभा और लोकसभा के पचासों प्रत्याशियों को धन-बल प्रदान कर चुनाव लडाने की क्षमता रखते हैं। एक इशारे पर धन की बरसात कर सकते हैं। यह कला हर नेता में नहीं होती। भाजपा के ही स्वर्गीय प्रमोद महाजन को भी फंड जुटाने में महारत हासिल थी। उनकी भी बडे-बडे उद्योगपतियों, व्यापारियों और विभिन्न राजनीतिक पार्टियों के दिग्गजों के साथ गजब की मित्रता थी जिसकी बदौलत बडे-बडे काम निपटाये जाते थे।
महाराष्ट्र में वैसे भी राजनीति और व्यापार का चोली-दामन का साथ है। कई राजनेता ऐसे हैं जो राजनेता से पहले व्यापारी हैं। उनके स्कूल कालेज और शक्कर के कारखाने चलते हैं। कुछ तो दारू की फैक्ट्रियां भी चलाते हैं और लोगों को मदहोश करने में लगे रहते हैं। ऐसों की भी कमी नहीं है जिनकी भूमाफियाओं और खनिज माफियाओं से रिश्तेदारी जैसी करीबियां हैं। नेताओं का इन पर वरदहस्त रहता है जिसकी बदौलत यह लोग लूट का तांडव मचाते रहते हैं। कई भू-माफिया तो हजारों करोड की दौलत के मालिक बन चुके हैं। कुछ नेताओं की हैसियत के बारे में भी हैरतअंगेज बातें सुनने में आती रहती हैं। कोई दमदार नेता पांच हजार करोड तो कोई दस हजार करोड का आसामी है। महाराष्ट्र में राजनीति के अपराधीकरण का हो-हल्ला वर्षों से सुर्खियां पाता रहा है। कई अपराधियों ने राजनेताओं की चरणवंदना कर राजनीति के क्षेत्र में खुद को स्थापित करने के कीर्तिमान रचे हैं। दरअसल राजनीति वो कवच है जो हर भ्रष्ट की रक्षा करता है। अपराधी और व्यापारी तो इसकी बदौलत इतना फलते-फूलते हैं कि लोग देखते रह जाते हैं। अपराधी तो अपराधी होते हैं, उनसे बेहतरी की उम्मीद रखना खुद के गाल पर तमाचा जडना है। असली कसूरवार तो वो नेता हैं जो इन्हें आश्रय देते हैं। यह भी सच है कि सभी नेताओं को बिना सोचे-समझे कटघरे में नहीं खडा किया जा सकता। पर हकीकत को नजरअंदाज भी तो नहीं किया जा सकता। देशभर का मीडिया चीख-चीख कर बता रहा है कि कांग्रेस के वीरभद्र सिं‍ह और भाजपा के नितिन गडकरी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हैं। दोनों ही काले को सफेद करने वाले ऐसे जादूगर हैं जिनके बिना राजनीतिक पार्टियों का पत्ता भी नहीं हिल सकता।  कोई 'सेब' से धन कमा कर दिखाता है तो कोई 'पुल' से। हर किसी की कलाकारी के अपने-अपने अंदाज हैं। वीरभद्र पत्रकारों के कैमरे तोडने पर उतारू हो जाते हें तो गडकरी मुस्कराते हुए यह कह आगे खिसक जाते हैं कि बात करनी है तो बडे भ्रष्टाचार की करो... चिल्लर में क्या धरा है...। राबर्ट वाड्रा जब घेरे में आये तो उन्होंने सफाई दी कि वे व्यापारी हैं, उन्हें बेवजह लपेटा जा रहा है। देश के कानूनमंत्री ने लाखों की हेराफेरी की तो कांग्रेस के बेनीप्रसाद वर्मा बोल पडे कि छोटे-मोटे भ्रष्टाचार का शोर मचाकर हमारा और अपना वक्त क्यों बरबाद करते हो। नितिन गडकरी के बोलवचन हैं कि मैं चिल्लर बातों की परवाह नहीं करता। ऐसे में यह कहना गलत तो नहीं- कि देश धंधेबाजों की चंगुल में फंस कर रह गया है। ऐसे में मेरे मन में अक्सर यह विचार आता है कि जिस तरह से कोई उद्योगपति अपने प्रतिस्पर्धी की कमायी का आकलन कर जलता-भुनता है, कही वैसे ही हाल इस मुल्क के तथाकथित राजनेताओं के तो नहीं हैं। क्योंकि अधिकांश का पेशा एक जैसा ही है। जितनी लूट मचानी है, मचा लो। इस लूट के खेल में चिल्लर व्यापारी थोक व्यापारियों को मात दे रहे हैं। अगर ऐसे ही चलता रहा है तो इन चिल्लर के समक्ष टाटा-अंबानी भी फीके नजर आयेंगे...।

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