Thursday, October 11, 2012

क्या हैं इस गुस्से के मायने?

भीड तो भीड होती है। उसका अपना कोई चरित्र नहीं होता। यही भीड जब आपा खो बैठती है तो अनर्थ भी हो जाता है। कानून किसी कोने में दुबका सिर्फ तमाशा देखता रह जाता है। आखिर ऐसा क्यों होता है कि भीड इतिहास दोहराने को विवश हो जाती है? नागपुर की एक झोपडपट्टी में भीड ने एक गुंडे को मौत के घाट उतार दिया। आतंक का पर्याय बन चुके इस बदमाश का सगा भाई निकल भागा। इनकी दादागिरी से महिलाएं भी परेशान थीं। शहर के बीचों-बीच बसी झोपडपट्टी में जुए का अड्डा चलाने के साथ-साथ अनेकानेक अपराधों को ये बेखौफ अंजाम देते चले आ रहे थे। कई पुलिस वालों का भी उनके अड्डे पर आना-जाना था। यही वजह थी कि शरीफ लोग बदमाशों से डरे-सहमे रहते थे। झोपडपट्टी में स्थित जिस कमरे में जुआ खिलाया जाता था, वहां शहर भर के जुआरियों और बदमाशों की बैठकें जमा करती थीं। कुछ सफेदपोश भी अक्सर वहां देखे जाते थे। भोली-भाली लडकियों की अस्मत लूटने के साथ-साथ शराबखोरी और मारपीट भी चलती रहती थी। नशे में धुत होकर गुंडे-बदमाश आसपास की महिलाओं और युवतियों से छेडछाड करते रहते। कोई विरोध करता तो धमकाया और प्रताडि‍त किया जाता था। नेताओं और पुलिस विभाग के कर्ताधर्ताओं ने अपनी आंखों पर पट्टी बांध ली थी। लोग शिकायतें लेकर थाने जाते पर उनकी कतई नहीं सुनी जाती। एक युवती के साथ जब सरेआम दुराचार किया गया तो महिलाओं के सब्र का बांध टूट गया। सबसे पहले इकबाल हाथ में आया तो गुस्सायी भीड ने उसे मार डाला। एक को ऊपर पहुंचाने के बाद भी भीड का गुस्सा शांत नहीं हुआ। वह तो गिरोह के सभी बदमाशो को सबक सिखाने पर उतारू थी। मृत बदमाश के एक भाई ने अपने बचाव के लिए थाने की शरण ले ली। यकीनन उसके लिए इससे सुरक्षित जगह और कोई नहीं थी। अधिकांश वर्दीधारी उसके जाने-पहचाने और 'अपने' थे। पर गुस्सायी भीड वहां भी जा पहुंची। लाठी-डंडो और जूतों से लैस भीड को शांत कर पाना आसान नहीं था, फिर भी खूंखार गुंडे को किसी तरह से पुलिस वालों ने बचा लिया वर्ना उसकी मौत भी तय थी।
यह घटना ९ अक्टुबर २०१२ के दिन घटी। अगस्त २००४ में इसी तरह से भीड ने अक्कु नामक बदमाश को भी अदालत में पकड कर इतना पीटा था कि उसकी मौत हो गयी थी। उस भीड में भी महिलाओं की संख्या ज्यादा थी। अक्कु की भी अपने इलाके में खासी दहशत थी। वह भी महिलाओं के साथ बदसलूकी करता था। कई पुलिस वालों से भी उसका याराना था। जिस किसी के घर में घुस जाता वहां अपनी मनमानी कर गुजरता। युवतियां उसकी परछाई से खौफ खाने लगी थीं। जब खौफजदा महिलाओं को लगा कि अक्कु का पुलिस कुछ नहीं बिगाड सकती तो उन्होंने ही उसे परलोक पहुंचा दिया। इस हत्याकांड ने देश ही नहीं पूरे विश्व को अचंभित करके रख दिया था। पुलिस चाहती तो अक्कु की हत्या के बाद सतर्क हो सकती थी। पर खाकी वर्दी वाले तो अपनी ही धुन में मस्त रहते हैं। जब तक बडा धमाका नहीं होता, उनकी नींद ही नहीं खुलती।
पुलिस की लापरवाही की वजह से न जाने कितने अपराधी जन्म लेते हैं और फिर धीरे-धीरे आतंक का पर्याय बन जाते हैं। हाल ही में एक रिपोर्ट आयी है जो यह बताती है कि गरीबी और अपराध के बीच काफी गहरे रिश्ते हैं। भुखमरी और बदहाली के शिकार लोग बडी आसानी से अपराध की राह पकड लेते हैं। हमारे ही समाज में ऐसे अमीर भरे पडे हैं जिनकी चमक-दमक देखते बनती है। इन धनपतियों की तुलना में कंगालों की संख्या कई गुणा ज्यादा है। कहते हैं कि गरीबी कभी-कभी इंसान का विवेक भी छीन लेती है। अपनी जरूरतों को पूरा न कर पाने के गुस्से में शरीफ भी बदमाश बन जाते हैं। पर उन्हें क्या कहा जाए जो हर तरह से सम्पन्न होने के बावजूद अपराधी बन दूसरों की बहू-बेटियों का शील हरण करने से बाज नहीं आते?
हरियाणा के जींद जिले के गांव सच्चाखेडा में एक नाबालिग लडकी पर बलात्कार करने वाले सभी बलात्कारी सम्पन्न घरानों से ताल्लुक रखते हैं। जिस लडकी पर बलात्कार किया गया उसने आहत होकर मिट्टी का तेल छिडक कर खुद को जला लिया। अस्पताल में इलाज के दौरान उसकी मौत हो गयी। गीतिका खुदकशी कांड के पीछे जिस नेता का हाथ है वह भी अरबो-खरबों की आसामी है। हरियाणा प्रदेश की सरकार में सक्षम मंत्री होने के बावजूद उसने निष्कृष्ट कर्म किया। उसकी हवस की शिकार हुई युवती को आत्महत्या के लिए विवश होना पडा। हाल ही में उत्तरप्रदेश की पूर्ववर्ती मायावती सरकार में पशुधन और विकास राज्यमंत्री रहे अवधपाल सिं‍ह यादव को एक दलित महिला पर बलात्कार करने तथा उसे जान से मारने की धमकी देने के संगीन आरोप में गिरफ्तार किया गया है। ऐसी न जाने कितनी घटनाएं हैं जो देशभर में निरंतर घटती रहती हैं। यह कहना और सोचना गलत है कि गरीबी के बोझ तले दबे लोग ही तरह-तरह के अपराधों को अंजाम देते हैं। अपराधी कहीं भी जन्म ले सकते हैं। इस सच्चाई को भी नहीं नकारा जा सकता कि तथाकथित सम्मानित और 'ऊंचे' लोगों की छाप भी समाज पर पडती है। हमारे यहां के राजनेता, समाजसेवक, मंत्री-संत्री अक्सर अपने दुष्कर्मों के चलते बेपर्दा होते रहते हैं। उन्हें अपना आदर्श मानने वाले भी उनकी राह पर चल निकलते हैं। नायकों की तरह खलनायकों के प्रशंसकों की भी कभी कमी नहीं रही। इस मुल्क के अधिकांश राजनेताओं को तो सत्ता के अलावा और कुछ दिखता ही नहीं। हरियाणा के पूर्व मुख्यमंत्री का यह कहना कि यदि बढते बलात्कारों पर अंकुश लगाना है तो लडकियों की शादी पंद्रह साल की उम्र में ही कर दी जानी चाहिए, आखिर क्या दर्शाता है? जिस देश में ऐसे बेवकूफ नेताओं की भरमार हो उस देश के वर्तमान और भविष्य की सहज ही कल्पना की जा सकती है।

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