ऐन दिवाली से पहले लगभग एक हजार करोड की महाठगी करने वाले पति-पत्नी को दिल्ली पुलिस ने अंतत: धर दबोचा। ऐसी खबरें अक्सर आती रहती हैं। इनमें कुछ भी नया नहीं है। बस चेहरे बदल जाते हैं। पुराने अंदर हो जाते हैं और नये ठग नये-नये तरीके ईजाद कर लोगों को बेवकूफ बनाने के अभियान में जुट जाते हैं। इस विशाल देश में बेवकूफ बनने को आतुर लोगों की भी कोई कमी नहीं है। यह लालच चीज ही कुछ ऐसी है जो अच्छे भले को अंधा बना देती है। संतरानगरी, नागपुर के उल्हास खैरे और उसकी पत्नी रक्षा ने 'स्टॉक गुरु इंडिया' कंपनी खोलकर तमाम लालचियों को ऐसे-ऐसे सपने दिखाये जिनका साकार हो पाना संभव ही नहीं था। इन दोनों ने अक्ल के अंधों को १० हजार रुपये जमा करने पर छह महीने तक बीस प्रतिशत ब्याज और सातवें महीने में पूरी रकम देने का झांसा देकर अपना जाल फेंका। लोग भी धडाधड फंसते चले गये। किसी ने भी यह नहीं सोचा कि हर महीने बीस प्रतिशत ब्याज के क्या मायने होते हैं। कंपनी का ऐसा कौन-सा उद्योगधंधा है जहां धन की बरसात हो रही है और उसकी बदौलत वह इतना मोटा ब्याज देने का दम रखती है।
कुछ लोगों के मंदबुद्धि होने की बात तो समझ में आ सकती है परंतु इस दंपति ने तो दो लाख से भी अधिक लोगों को आसानी से अपना शिकार बनाकर यह सिद्ध कर दिया है कि प्रलोभन के मोहक जाल में मछलियां ही नहीं मगरमच्छ भी फंसाये जा सकते हैं। धोखाधडी करने में माहिर शातिरों के लिए तो ठगी भी एक व्यापार है। उल्हास खैरे ने अपनी ठगी की शुरुआत नागपुर से ही की थी। नया खिलाडी होने के कारण मात्र एक लाख की ठगी के आरोप में धर लिया गया था। पुलिस के चंगुल में फंसने के बाद उसने हेराफेरी और टोपी पहनाने के नये-नये तौर-तरीके सीखे। खाकी ने उसके होश ठिकाने लगाने के बजाय उसे कुख्यात ठगों तथा उनकी कार्यप्रणाली से रूबरू करवाया।
जालसाजी की तमाम बारीकियां सीखने के बाद यह खिलाडी देश के विभिन्न शहरों में हाथ आजमाने के बाद देश की राजधानी दिल्ली जा पहुंचा जहां तरह-तरह के ठगों का बसेरा है। नागपुरी ठग को देश की राजधानी में महाठग का तमगा हासिल करने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पडा। मात्र दो वर्ष पूर्व यानी २०१० में दिल्ली में उसने 'स्टॉक गुरु इंडिया' नाम की फर्जी कंपनी खोली और देखते ही देखते 'तरक्की' की मिसाल कायम कर दी। कंपनी छलांगे लगाने लगी। लोग अपनी जमीन-जायदाद और गहने बेचकर कंपनी की शरण में पहुंचने लगे। ठग गुरू और उसकी पत्नी देखते ही देखते इतने मालामाल हो गये कि उन्होंने मुंबई, दिल्ली, गोवा, नागपुर जैसे बडे शहरों में करोडों की सम्पत्तियां खडी कर लीं। दरअसल यह ठग जोडी लोगों की कमजोरियों से खूब वाकिफ हो चुकी थी इसलिए जिन्हें चूना लगाना होता उन्हें आलीशान होटलों में निमंत्रित कर सुरा और सुंदरी का स्वाद भी चखवाया जाता। दोनों शातिर हमेशा लग्जरी कारों में नजर आते। उनके आगे-पीछे भी आलीशान गाडियों का ऐसा काफिला होता जिसे देख लोग आश्वस्त हो जाते कि पार्टी में दम है। उनके खून-पसीने की कमायी के डूबने के कहीं कोई आसार नहीं हैं। ये फरेबी तो योजनाबद्ध तरीके से अपनी कलाकारी को अंजाम दे रहे थे। जब इनकी जेब में हजार करोड से ज्यादा की दौलत जमा हो गयी तो वही कर डाला जो हमेशा होता आया है। लोगों का हसीन भ्रम टूट ही गया जब यह दोनों एकाएक फुर्र हो गये। मात्र दो-ढाई साल में इस जोडी ने इतनी बडी ठगी को बडी आसानी से अंजाम दे डाला। दोनों को यकीन था कि भारतीय पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पायेगी। प्लास्टिक सर्जरी के जरिये अपनी पहचान बदलने में माहिर इस पति-पत्नी को दबोचने के लिए जब पुलिस पर ऊपरी दबाव पडा तो इन्हें अंतत: महाराष्ट्र के रत्नागिरी में गिरफ्तार कर लिया गया।
बिना कोई मेहनत किये धन बनाने की ख्वाहिश रखने वाले शहरियों पर धोखाधडी करने वालों की निगाहें हमेशा टिकी रहती हैं। देश के तेजी से प्रगति करते महानगरों में लोगों का जीवन इस कदर मशीनी हो चुका है कि उन्हें आसपास की भी खबर नहीं रहती। कई बार तो लोगों को अखबारों में छापी धमाकेदार खबरों से पता चलता है कि उनके ही आसपास रहने वाला कोई शख्स करोडों की गेम कर गायब हो गया है। जिसे वे सभ्य और शरीफ इंसान समझ रहे थे वो बहुत बडा जालसाज निकला। ऐसे खबरें कई लोगों तक पहुंचती हैं पर कुछ ही होते हैं जो सतर्क हो पाते हैं। बहुतेरों को यही भ्रम रहता है कि दूसरे लोग भले ही बेवकूफ बन गये हों पर हमें कोई अपना शिकार नहीं बना सकता। पर खुद को ज्यादा होशियार समझने वाले भी टोपीबाजों के चिकनी-चुपडी बातों में फंसकर अपनी मेहनत की कमायी लूटा बैठते हैं। बेचारों को कुछ भी कहते नहीं बनता। अपने ठगे जाने की कहानी सुनाने में भी उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस होती है। दिल्ली तो दिल्ली है। यहां के ठगों की तो बात ही निराली है। मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, बंगलुरु, पुणे आदि तमाम महानगर जालसाजों के निशाने पर रहते हैं। देश के एकदम मध्य में बसे नागपुर शहर की ही बात करें। यहां हर साल कोई न कोई बडा धूर्त शहरवासियों को मोटा चूना लगाकर उडन छू हो जाता है। अखबारो में खबरें छपती हैं। न्यूज चैनल वाले भी ठगों के इतिहास को खंगालने में लग जाते हैं। पर पांच-सात दिन बाद लोग भूल जाते हैं। यानी लोगों पर खबरों का खास असर नहीं होता। अगर होता तो नये-नवेले चेहरे धोखाधडी कर अचंभित करके रख देने वाले कीर्तिमान न रच पाते। सवाल यह है कि ऐसे में आखिर किसे दोषी ठहराया जाए?
कुछ लोगों के मंदबुद्धि होने की बात तो समझ में आ सकती है परंतु इस दंपति ने तो दो लाख से भी अधिक लोगों को आसानी से अपना शिकार बनाकर यह सिद्ध कर दिया है कि प्रलोभन के मोहक जाल में मछलियां ही नहीं मगरमच्छ भी फंसाये जा सकते हैं। धोखाधडी करने में माहिर शातिरों के लिए तो ठगी भी एक व्यापार है। उल्हास खैरे ने अपनी ठगी की शुरुआत नागपुर से ही की थी। नया खिलाडी होने के कारण मात्र एक लाख की ठगी के आरोप में धर लिया गया था। पुलिस के चंगुल में फंसने के बाद उसने हेराफेरी और टोपी पहनाने के नये-नये तौर-तरीके सीखे। खाकी ने उसके होश ठिकाने लगाने के बजाय उसे कुख्यात ठगों तथा उनकी कार्यप्रणाली से रूबरू करवाया।
जालसाजी की तमाम बारीकियां सीखने के बाद यह खिलाडी देश के विभिन्न शहरों में हाथ आजमाने के बाद देश की राजधानी दिल्ली जा पहुंचा जहां तरह-तरह के ठगों का बसेरा है। नागपुरी ठग को देश की राजधानी में महाठग का तमगा हासिल करने के लिए ज्यादा इंतजार नहीं करना पडा। मात्र दो वर्ष पूर्व यानी २०१० में दिल्ली में उसने 'स्टॉक गुरु इंडिया' नाम की फर्जी कंपनी खोली और देखते ही देखते 'तरक्की' की मिसाल कायम कर दी। कंपनी छलांगे लगाने लगी। लोग अपनी जमीन-जायदाद और गहने बेचकर कंपनी की शरण में पहुंचने लगे। ठग गुरू और उसकी पत्नी देखते ही देखते इतने मालामाल हो गये कि उन्होंने मुंबई, दिल्ली, गोवा, नागपुर जैसे बडे शहरों में करोडों की सम्पत्तियां खडी कर लीं। दरअसल यह ठग जोडी लोगों की कमजोरियों से खूब वाकिफ हो चुकी थी इसलिए जिन्हें चूना लगाना होता उन्हें आलीशान होटलों में निमंत्रित कर सुरा और सुंदरी का स्वाद भी चखवाया जाता। दोनों शातिर हमेशा लग्जरी कारों में नजर आते। उनके आगे-पीछे भी आलीशान गाडियों का ऐसा काफिला होता जिसे देख लोग आश्वस्त हो जाते कि पार्टी में दम है। उनके खून-पसीने की कमायी के डूबने के कहीं कोई आसार नहीं हैं। ये फरेबी तो योजनाबद्ध तरीके से अपनी कलाकारी को अंजाम दे रहे थे। जब इनकी जेब में हजार करोड से ज्यादा की दौलत जमा हो गयी तो वही कर डाला जो हमेशा होता आया है। लोगों का हसीन भ्रम टूट ही गया जब यह दोनों एकाएक फुर्र हो गये। मात्र दो-ढाई साल में इस जोडी ने इतनी बडी ठगी को बडी आसानी से अंजाम दे डाला। दोनों को यकीन था कि भारतीय पुलिस उन तक कभी नहीं पहुंच पायेगी। प्लास्टिक सर्जरी के जरिये अपनी पहचान बदलने में माहिर इस पति-पत्नी को दबोचने के लिए जब पुलिस पर ऊपरी दबाव पडा तो इन्हें अंतत: महाराष्ट्र के रत्नागिरी में गिरफ्तार कर लिया गया।
बिना कोई मेहनत किये धन बनाने की ख्वाहिश रखने वाले शहरियों पर धोखाधडी करने वालों की निगाहें हमेशा टिकी रहती हैं। देश के तेजी से प्रगति करते महानगरों में लोगों का जीवन इस कदर मशीनी हो चुका है कि उन्हें आसपास की भी खबर नहीं रहती। कई बार तो लोगों को अखबारों में छापी धमाकेदार खबरों से पता चलता है कि उनके ही आसपास रहने वाला कोई शख्स करोडों की गेम कर गायब हो गया है। जिसे वे सभ्य और शरीफ इंसान समझ रहे थे वो बहुत बडा जालसाज निकला। ऐसे खबरें कई लोगों तक पहुंचती हैं पर कुछ ही होते हैं जो सतर्क हो पाते हैं। बहुतेरों को यही भ्रम रहता है कि दूसरे लोग भले ही बेवकूफ बन गये हों पर हमें कोई अपना शिकार नहीं बना सकता। पर खुद को ज्यादा होशियार समझने वाले भी टोपीबाजों के चिकनी-चुपडी बातों में फंसकर अपनी मेहनत की कमायी लूटा बैठते हैं। बेचारों को कुछ भी कहते नहीं बनता। अपने ठगे जाने की कहानी सुनाने में भी उन्हें बेहद शर्मिंदगी महसूस होती है। दिल्ली तो दिल्ली है। यहां के ठगों की तो बात ही निराली है। मुंबई, अहमदाबाद, सूरत, बंगलुरु, पुणे आदि तमाम महानगर जालसाजों के निशाने पर रहते हैं। देश के एकदम मध्य में बसे नागपुर शहर की ही बात करें। यहां हर साल कोई न कोई बडा धूर्त शहरवासियों को मोटा चूना लगाकर उडन छू हो जाता है। अखबारो में खबरें छपती हैं। न्यूज चैनल वाले भी ठगों के इतिहास को खंगालने में लग जाते हैं। पर पांच-सात दिन बाद लोग भूल जाते हैं। यानी लोगों पर खबरों का खास असर नहीं होता। अगर होता तो नये-नवेले चेहरे धोखाधडी कर अचंभित करके रख देने वाले कीर्तिमान न रच पाते। सवाल यह है कि ऐसे में आखिर किसे दोषी ठहराया जाए?
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