भारतवर्ष की सबसे उम्रदराज राजनीतिक पार्टी कांग्रेस को भी अपनी शक्ति के प्रदर्शन को विवश होना पडा। देश की राजधानी के रामलीला मैदान में आयोजित विशाल रैली में इस पार्टी के दिग्गज नेताओं ने यह दर्शाने की कोशिश की है कि अभी भी उनमें दमखम बाकी है। रैली में अपने विरोधियों को जिस तरह से ललकारा गया उससे तो यही लगता है कि भाजपा के निरंतर विवादास्पद होते चले जाने से कांग्रेस के हौंसले एकाएक बुलंद हो गये हैं। कांग्रेस आम जनता तक यह संदेश भी पहुंचाने में सफल होती दिख रही है। कि राबर्ट वाड्रा की तुलना में भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष नितिन गडकरी कहीं ज्यादा भ्रष्ट हैं। गडबडियों के अंतहीन दलदल में धंसे होने के बावजूद अध्यक्ष पद पर जमे रहने वाले गडकरी ने भाजपा के अंधकारमय भविष्य की अमिट इबारत लिख दी है। कांग्रेस को कहीं न कहीं यह भरोसा भी हो चला है कि प्रदेशों में भले ही उसकी दाल न गले पर केंद्र की सत्ता तो भविष्य में भी उसी की पकड में रहने वाली है। भारतीय राजनीति में ऐसा पहली बार हुआ है जब सबल विरोधी पार्टी के अध्यक्ष की कमजोरियों ने कांग्रेस को मजबूत होने का भरपूर अवसर दिया हो। नितिन गडकरी की पहले भी कई बार जुबान फिसली है। पर इस बार तो हद ही हो गयी! मीडिया और सजग देशवासियों को माथा पीटने को विवश होना पड गया।
गडकरी ने मनोविज्ञान के आधार पर बुद्धि नापने का पैमाना 'इंटेलीजेंट कोसेंट' (आईक्यू) का हवाला देते हुए कहा कि यदि दाऊद और विवेकानंद की आईक्यू को देखा जाए तो एक समान है। लेकिन एक ने इसका उपयोग गुनाह और अपराधों का इतिहास रचने तो दूसरे ने समाजसेवा, देशभक्ति और अध्यात्म का प्रकाश फैलाने में किया। गडकरी ने शैतान देशद्रोही दाऊद इब्राहिम की तुलना आध्यात्मिक संत विवेकानंद से कर तो डाली पर जो तूफान बरपा उससे यह साबित हो गया है कि देश की भोली-भाली जनता को बेवकूफ समझने की भूल करना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा है। शब्दों की जादूगरी का दौर बहुत पीछे छूट गया है। लोगों ने अंधभक्ति से भी रिश्ते तोड लिये हैं। बडबोले नेताओं के सावधान होने का वक्त आ गया है। हालांकि भोपाल के जिस कार्यक्रम में गडकरी के यह बोलवचन फूटे वहां श्रोताओं ने खूब तालियां पीटीं। गडकरी भी फूल कर कुप्पा हो गये। भाडे की भीड तो हमेशा वाह-वाह करते हुए तालियां ही पीटती है। चापलूसों में विरोध करने दम ही कहां होता है। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो असली सच को पहचान कर अपनी आवाज बुलंद करते हैं। गडकरी के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। यही दमदार चेहरे बेलगाम नेताओं के होश ठिकाने लगाने की हिम्मत दिखाते आये हैं। कौन नहीं जानता कि नेताओं की मंडली में तो आरती गाने वालों की ही भरमार होती है और यही अंतत: उनका बेडा गर्क करके रख देते हैं। चाटूकारों के चक्कर में कई होनहार नेताओं की लुटिया डूब जाती है। इसलिए दुनियादारी से वाकिफ विद्वान हमेशा यही नसीहत देते आये हैं कि हकीकत को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
डॉ. मनमोहन सिंह हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक उन्हें सराहते रहे हैं। फिर भी देशवासी उनसे नाखुश हैं। सोनिया गांधी की मेहरबानी से वे दूसरी बार भी प्रधानमंत्री बना तो दिये गये पर देशवासियों की नजरों में पूरी तरह से खरे नहीं उतर पाये। दिल्ली की रैली में उनके ये उदगार लोगों को चौंका गये कि मंत्रीगण आरोपों से डरे बगैर तेजी से काम करें। क्या डॉ. मनमोहन की निगाह में आरोप लगाने वाले नकारा और नालायक लोग हैं जो बेवजह मंत्रियों, सांसदो को कटघरे में खडा करते रहते हैं और उनके तमाम सहयोगी बेदाग हैं? देश के विद्वान पीएम ने मंत्रियों को बेफिक्र रहने के निर्देश देकर सलमान खुर्शीद जैसे मंत्रियों की हौसलाअफजाई की है। विकलांगों की बैसाखी पर डाका डालने वाले सलमान खुर्शीद देश के पहले कानून मंत्री होंगे जिन्होंने खुद पर लगने वाले संगीन भ्रष्टाचार के आरोपों को हल्का माना और बौखला कर कह डाला कि अभी तक हम कलम से खेलते थे, अब खून से खेलेंगे। क्या कभी शरीफ लोग ऐसी उत्तेजक भाषा का इस्तेमाल करते हैं? कतई नहीं। पर इस देश के मंत्रियों और नेताओं को कुछ भी बोलने और दहाडने की खुली छूट मिली हुई है। कायदे से होना तो यह चाहिए था कि सलमान खुर्शीद को मंत्री पद से हटा दिया जाता। पर उनकी तो तरक्की कर दी गयी! अब तो उन्हें और उन जैसों को और अधिक विष उगलने की छूट मिल गयी है। समाज सेवकों और पत्रकारों को धमकाने-चमकाने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
देश की जनता तो शांत और गंभीर डॉ. मनमोहन से यह उम्मीद लगाये थी कि वे अपने सभी मंत्रियों को निर्देश देंगे कि वे ऐसे कोई भी कार्य न करें जिनसे लोग उन पर उंगलियां उठाने को विवश हों। आरोप चाहे जैसे भी हों पर जागरूक जनता में संदेह तो जगाते ही हैं। मनमोहन सरकार के सभी मंत्री अच्छे और सच्चे होते तो कोई भी उनपर उंगली उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता था। यहां तो हालात ये हैं कि आरोपों का सिलसिला थमता ही नहीं। अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री तथा उनके सहयोगियों पर आरोपों की झडी लगा दी। ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ कि पीएम निशाने पर आये हों। देश के मुखर नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर जो सनसनीखेज आरोप लगाये हैं उन्हें मात्र कोर्ट केस करने की धमकी से खारिज नहीं किया जा सकता। राबर्ट वाड्रा, नितिन गडकरी, सलमान खुर्शीद और राहुल गांधी जैसे तमाम नेताओं पर लगे आरोपों की सच्चाई जनता के सामने आनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह मान लिया जायेगा कि हिंदुस्तान में अब सिर्फ कहने भर को लोकतंत्र बचा है...।
गडकरी ने मनोविज्ञान के आधार पर बुद्धि नापने का पैमाना 'इंटेलीजेंट कोसेंट' (आईक्यू) का हवाला देते हुए कहा कि यदि दाऊद और विवेकानंद की आईक्यू को देखा जाए तो एक समान है। लेकिन एक ने इसका उपयोग गुनाह और अपराधों का इतिहास रचने तो दूसरे ने समाजसेवा, देशभक्ति और अध्यात्म का प्रकाश फैलाने में किया। गडकरी ने शैतान देशद्रोही दाऊद इब्राहिम की तुलना आध्यात्मिक संत विवेकानंद से कर तो डाली पर जो तूफान बरपा उससे यह साबित हो गया है कि देश की भोली-भाली जनता को बेवकूफ समझने की भूल करना अपने पैरों पर कुल्हाडी मारने जैसा है। शब्दों की जादूगरी का दौर बहुत पीछे छूट गया है। लोगों ने अंधभक्ति से भी रिश्ते तोड लिये हैं। बडबोले नेताओं के सावधान होने का वक्त आ गया है। हालांकि भोपाल के जिस कार्यक्रम में गडकरी के यह बोलवचन फूटे वहां श्रोताओं ने खूब तालियां पीटीं। गडकरी भी फूल कर कुप्पा हो गये। भाडे की भीड तो हमेशा वाह-वाह करते हुए तालियां ही पीटती है। चापलूसों में विरोध करने दम ही कहां होता है। कुछ लोग ही ऐसे होते हैं जो असली सच को पहचान कर अपनी आवाज बुलंद करते हैं। गडकरी के मामले में भी ऐसा ही हुआ है। यही दमदार चेहरे बेलगाम नेताओं के होश ठिकाने लगाने की हिम्मत दिखाते आये हैं। कौन नहीं जानता कि नेताओं की मंडली में तो आरती गाने वालों की ही भरमार होती है और यही अंतत: उनका बेडा गर्क करके रख देते हैं। चाटूकारों के चक्कर में कई होनहार नेताओं की लुटिया डूब जाती है। इसलिए दुनियादारी से वाकिफ विद्वान हमेशा यही नसीहत देते आये हैं कि हकीकत को कभी नजरअंदाज नहीं करना चाहिए।
डॉ. मनमोहन सिंह हिंदुस्तान के प्रधानमंत्री हैं। अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा तक उन्हें सराहते रहे हैं। फिर भी देशवासी उनसे नाखुश हैं। सोनिया गांधी की मेहरबानी से वे दूसरी बार भी प्रधानमंत्री बना तो दिये गये पर देशवासियों की नजरों में पूरी तरह से खरे नहीं उतर पाये। दिल्ली की रैली में उनके ये उदगार लोगों को चौंका गये कि मंत्रीगण आरोपों से डरे बगैर तेजी से काम करें। क्या डॉ. मनमोहन की निगाह में आरोप लगाने वाले नकारा और नालायक लोग हैं जो बेवजह मंत्रियों, सांसदो को कटघरे में खडा करते रहते हैं और उनके तमाम सहयोगी बेदाग हैं? देश के विद्वान पीएम ने मंत्रियों को बेफिक्र रहने के निर्देश देकर सलमान खुर्शीद जैसे मंत्रियों की हौसलाअफजाई की है। विकलांगों की बैसाखी पर डाका डालने वाले सलमान खुर्शीद देश के पहले कानून मंत्री होंगे जिन्होंने खुद पर लगने वाले संगीन भ्रष्टाचार के आरोपों को हल्का माना और बौखला कर कह डाला कि अभी तक हम कलम से खेलते थे, अब खून से खेलेंगे। क्या कभी शरीफ लोग ऐसी उत्तेजक भाषा का इस्तेमाल करते हैं? कतई नहीं। पर इस देश के मंत्रियों और नेताओं को कुछ भी बोलने और दहाडने की खुली छूट मिली हुई है। कायदे से होना तो यह चाहिए था कि सलमान खुर्शीद को मंत्री पद से हटा दिया जाता। पर उनकी तो तरक्की कर दी गयी! अब तो उन्हें और उन जैसों को और अधिक विष उगलने की छूट मिल गयी है। समाज सेवकों और पत्रकारों को धमकाने-चमकाने का अधिकार प्राप्त हो गया है।
देश की जनता तो शांत और गंभीर डॉ. मनमोहन से यह उम्मीद लगाये थी कि वे अपने सभी मंत्रियों को निर्देश देंगे कि वे ऐसे कोई भी कार्य न करें जिनसे लोग उन पर उंगलियां उठाने को विवश हों। आरोप चाहे जैसे भी हों पर जागरूक जनता में संदेह तो जगाते ही हैं। मनमोहन सरकार के सभी मंत्री अच्छे और सच्चे होते तो कोई भी उनपर उंगली उठाने की जुर्रत नहीं कर सकता था। यहां तो हालात ये हैं कि आरोपों का सिलसिला थमता ही नहीं। अरविंद केजरीवाल ने प्रधानमंत्री तथा उनके सहयोगियों पर आरोपों की झडी लगा दी। ऐसा पहले तो कभी नहीं हुआ कि पीएम निशाने पर आये हों। देश के मुखर नेता सुब्रमण्यम स्वामी ने राहुल गांधी और सोनिया गांधी पर जो सनसनीखेज आरोप लगाये हैं उन्हें मात्र कोर्ट केस करने की धमकी से खारिज नहीं किया जा सकता। राबर्ट वाड्रा, नितिन गडकरी, सलमान खुर्शीद और राहुल गांधी जैसे तमाम नेताओं पर लगे आरोपों की सच्चाई जनता के सामने आनी ही चाहिए। अगर ऐसा नहीं होता है तो यह मान लिया जायेगा कि हिंदुस्तान में अब सिर्फ कहने भर को लोकतंत्र बचा है...।
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