Thursday, November 1, 2012

कैसी बनेगी इमारत?

अरबो-खरबों के कर्ज के तले दबे किं‍गफिशर एयर लाइंस के मालिक विजय माल्या की ठसन कम होने का नाम नहीं लेती। सरकारी बैंको के सात हजार करोड रुपये दबा कर बैठे माल्या को कर्ज की कोई चिन्ता नहीं है। उनकी अय्याशियां परवान चढ रही हैं। कोई आम आदमी होता तो शर्म के मारे दुबक कर बैठ जाता। दिवालिया होने की कगार पर पहुंच चुके माल्या हर वर्ष कैलेंडर निकालते हैं जिसमे देश और दुनिया की मॉडल और अभिनेत्रियों की नंग-धडंग तस्वीरें छापी जाती हैं। इस कर्मकांड में सैकडों करोड फूंके जाते हैं। उनके गोवा के गेस्ट हाऊस में सुंदरियों का मेला लगता है और माल्या बीते जमाने के अय्याश शहंशाहों की तरह टुन्न होकर रूपसियों के सौंदर्य का रसपान करते हैं। खुद की मौजमस्ती पर धन की बरसात कर देने वाले माल्या को अपने कर्मचारियों को पगार देने में बडी तकलीफ होती है। पिछले कुछ महीनों से किं‍गफिशर एयरलाइंस पूरी तरह से लडखडा चुकी है। वेतन न मिलने के कारण मजबूरन कर्मचारियों को हडताल पर जाना पडा। पर इससे विजय माल्या के चेहरे पर कोई शिकन नहीं आयी। उनकी मौजमस्ती का दौर चलता रहा। माल्या ने बैंको से लिये गये लोन के बदले जो सम्पतियां गिरवी रखी हैं उनकी इतनी कीमत नहीं है कि कर्ज की भरपायी हो सके। देश के अधिकांश रईस उद्योगपति ऐसी ही धोखेबाजी करते हैं और सरकार को चूना लगाते हैं। फिर भी सरकार कुछ भी नहीं कर पाती। सरकारी माल पर मौज मनाने वाले माल्या कहते है, 'लोग मुझसे जलते हैं। लोगों का रवैय्या देखने के बाद मुझे कडवी सीख मिली है कि भारत जैसे देश में अपनी धन-संपदा का कतई प्रदर्शन नहीं करना चाहिए। यहां एक अरबपति राजनीतिज्ञ होना ज्यादा अच्छा है।' 'कर्ज' पर मौज मनाने वाले माल्या शायद यह भी कहना चाहते हैं मालदार नेता भी मौजमस्ती करते हैं। फिर भी अकेले उन जैसों पर ही निशाना साधा जाता है और नेताओं को बख्श दिया जाता है।
कर्ज लेकर घी पीने वाले माल्या की दलील में कोई दम नहीं है। जो लोग अपनी तथा बाप-दादा की कमायी पर ऐश करते हैं उन पर किसी को भी उंगलियां उठाने का हक नहीं होता। सरकारी धन की बदौलत गुलछर्रे उडाने वाले और भी कई उद्योगपति हैं जिन पर बैंकों का लाखों करोड का कर्ज है। कुछ तो ऐसे भी है जिनसे बैंकें अपनी सारी ताकत लगाने के बाद भी पूरी रकम की वसूली नहीं कर सकतीं। वे भी माल्या की तरह रंगीनियों में डूबे रहना पसंद करते हैं। अंबानी बंधु इसकी जीती-जागती मिसाल हैं। इस धनासेठों पर जितना सरकारों ने लुटाया है और बैंकों का बकाया है उससे तो देश की तस्वीर ही बदली जा सकती है। इन शातिरों ने करोडो देशवासियों के हक की खुशियां और सुविधाएं छीन ली हैं। विजय माल्या, मुकेश अंबानी, अनिल अंबानी, अदानी, जिं‍दल, अभिजीत जायसवाल, विजय दर्डा जैसे उद्योगपतियों और उनके रिश्तेंदारों ने जितनी सरकारी लूटपाट की है उससे तो देश का चेहरा ही बदल सकता था। यह कैसी विडंबना है कि चंद अमीरों के इस देश में सबसे ज्यादा गरीब रहते हैं। जहां पर कुपोषण के शिकार बच्चों का सरकार के पास भी कभी सही आंकडा नहीं रहता। हर वर्ष भुखमरी से मौतें हो जाती हैं। जहां करोडों का भ्रष्टाचार हो जाता हो वहां पर भूख की वजह से किसी गरीब का मर जाना वास्तव में हत्या से बढकर है। देश की संपदा के लुटेरों ने कभी इस ओर ध्यान दिया है? वे ऐसा कभी नहीं करेंगे। उनके लिए देश की समस्याएं कोई मायने नहीं रखतीं। वे जनतंत्र में नहीं, लूटतंत्र में विश्वास रखते हैं। इन लोगों की करनी के चलते देश के ग्रामीण इलाके आज भी जबरदस्त बदहाली के शिकार हैं। शहरों में असंतोष के ज्वालामुखी फूटने को बेताब हैं। महात्मा गांधी कहा करते थे कि असली भारत ग्रामों में बसता है। आज तो हालात यह हैं कि धीरे-धीरे गांव ही समाप्त हो रहे हैं। गांव वालों की खेती की जमीनें उद्योगपतियों के चंगुल में फंसती जा रही हैं। शहर से लगे गांवों में तो भू-माफियाओं और नेताओं ने तांडव मचा रखा है। किसानों की जमीनें औने-पौने दामों में खरीद कर इमारतें और फैक्ट्रियां खडी की जा रही हैं। गांवों में स्थापित होने वाले कारखानो में ग्रामीणों को रोजगार नहीं मिलता। उन्हें हाथ में भीख का कटोरा थाम शहरों के जंगल में गुम हो जाने को विवश होना पडता है। ग्रामीण युवा अपराधों की तरफ बढ रहे हैं। कहने को तो सरकार हजारों परियोजनाएं चला रही है पर देश की तस्वीर कहां बदल रही है! राष्ट्र और समाज के विकास के लिए प्राथमिक शिक्षा की सर्वसुलभता अत्यंत जरूरी है। आजाद हिं‍दुस्तान में सरकारी प्राथमिक विद्यालय बदहाली का प्रतिरूप बनकर रह गये हैं। अधिकांश ग्रामीण प्राथमिक विद्यालयों में विद्यार्थियों के बैठने तक की ढंग की व्यवस्था नहीं है। छात्रों के राशन में भी भ्रष्टाचारी हाथ मार लेते हैं। ढंग के शिक्षकों का भी अता-पता नहीं होता। यही वजह है कि निजी संस्थान शिक्षा के क्षेत्र में भी घुसपैठ बना चुके हैं। गरीबों के बच्चों के लिए शिक्षा सपना है। जब नींव ही ऐसी है तो इमारत के क्या हाल होंगे। सच तो यह है कि इमारत खडी ही नहीं हो सकती।

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