अपने पाकिस्तानी आकाओं के इशारे पर भारतवर्ष की संप्रभुता को चुनौती देने वाला अजमल आमिर कसाब फांसी के फंदे पर लटकाया जा चुका है। यह बताने की जरूरत नहीं कि कसाब तो एक अदना-सा प्यादा था। उस जैसे कई प्यादे आज भी जिंदा हैं। कुछ का इसी देश में बसेरा है तो कई पडोसी देश में सिखाये-पढाये और पाले-पोसे जा रहे हैं। इन सभी का एक ही मकसद है हिंदुस्तान में आतंक का तांडव मचाना और निर्दोषों का बेरहमी से खून बहाना। कसाब को उसके वहशियाना दुष्कर्मों की सजा दिये जाने के बाद अब अफजल गुरू को भी फौरन फांसी दिये जाने की मांग की जाने लगी है। कसाब पाकिस्तान की मिट्टी की देन था तो अफजल गुरू हिंदुस्तान का ही एक बिकाऊ बाशिंदा है। दोनों की कमीनगी एक जैसी ही है जो कतई माफ करने के लायक नहीं है। २० नवंबर २००८ को दरिंदे कसाब और उसके दस साथियों ने आर्थिक राजधानी मुंबई पर हमला कर हर सच्चे देशप्रेमी के खून को खौलाकर रख दिया था। इस हमले के जरिये पूरे तीन दिन तक मायानगरी को जैसे बंधक बनाकर रख दिया गया था। पाकिस्तानी दरिंदो ने १६६ निर्दोषों की जान ले ली थी और घायलों का आंकडा भी तीन सौ को पार कर गया था। इस खूनी खेल में नौ आतंकी तो कुत्ते की मार मारे गये थे और कसाब अकेला जिन्दा पकडा गया था। गुस्से में उबलते देशवासियों का बस चलता तो वे इस कमीने को भरे चौराहे पर नंगा लटका कर वो सजा देते कि पाकिस्तान में बैठे इसके आका भी थरथर्रा उठते। ये देश की कानून व्यवस्था की निष्पक्षता और दरियादिली ही है कि कसाब की चार साल तक मेहमान नवाजी की जाती रही। अफजल गुरू के साथ भी ऐसा ही कुछ हो रहा है। सजग देशवासी जल्द से जल्द अफजल को फांसी पर लटकते देखना चाहते हैं और दूसरी तरफ राजनीति के खिलाडी अपने-अपने दांव खेल रहे हैं। एक दहशतगर्द देश की संसद पर हमला करने की जुर्रत करता है और सरकार उसे सूली पर लटकाने की बजाय हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती है। राजनेता उसके बचाव के लिए अपने-अपने ज्ञान का पिटारा खोलते रहते हैं।
हम भारतवासियों की यह बदनसीबी ही है कि आतंकवादी बम-बारूद बिछाकर हमारे अपनों की जान ले लेते हैं और राजनेता आतंकियों के प्रति अपनत्व जताते हुए राजनीति का खेल खेलना शुरू कर देते हैं। कसाब के मुद्दे पर तो किसी भी दल के लिए राजनीति करने की कोई गुंजाइश नहीं थी इसलिए उसे मौत दे दी गयी। पर बाकियों का क्या? अफजल गुरू, देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर के साथ-साथ राजीव गांधी के हत्या के दोषी लिट्टे आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने में लगातार देरी के पीछे सिर्फ और सिर्फ राजनीति और राजनेता ही हैं। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद अफजल के प्रति नर्मी बरतने की मांग कर कांग्रेस के असली चेहरे को उजागर कर चुके हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला के साथ विपक्षी पार्टी पीडीपी भी अफजल को फांसी नहीं, माफी देने की पक्षधर है। हत्यारे देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर पर तो पंजाब सरकार ही इतनी मेहरबान है कि वह उस पर किसी तरह की आंच नहीं आने देना चाहती। भुल्लर के प्रति उदारवादी बनी सरकार ने राष्ट्रपति को गुहार लगायी है कि भुल्लर पर दया की जाए। तामिलनाडु में राजीव गांधी के हत्यारे मुरुगन और उसके साथी भी राजनीति की बदौलत अभी तक फांसी से बचे हुए हैं। गौरतलब है कि राजीव गांधी की हत्या १९९१ में की गयी थी। यानी इक्कीस साल बीतने के बाद भी हत्यारों का बाल भी बांका नहीं हो पाया। समझ में नहीं आता इस देश के राजनेता किस नीति के पक्षधर हैं! दरअसल अपनी राजनीति चलाने और चमकाने के लिए उन्होंने 'नीति' की निर्मम हत्या करके रख दी है और अनीति के मार्ग पर सरपट दौडे चले जा रहे हैं। इन्हें रोकने वाला कोई भी नहीं। जब लगभग सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हों तो ऐसा होना ही है। देश में जब भी कहीं आतंकी हमले होते हैं तो घडियाली आंसू बहाने में भी यही मतलबपरस्त राजनेता सबसे आगे रहते हैं। अपने-अपने वोट बैंक के लिए आतंकियों और देशद्रोहियों के रक्षा कवच बनने वाले सत्ताधीशों में आम आदमी की सुरक्षा के लिए कुछ कर दिखाने की ललक ही नहीं है। नवंबर २००८ में मुंबई पर कसाब और उसके साथियों ने हमला किया था। २६/११ के हमलावर समुद्री मार्ग से मुंबई पहुंचे थे। सरकार ने दहाड-दहाड कर घोषणा की थी कि समुद्री सीमा क्षेत्र में व्यापक सुरक्षा के इंतजाम किये जाएंगे। पर आज भी स्थिति जस की तस है। चार साल बीत गये पर पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो पाये हैं।
मुंबई ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली भी सुरक्षित नहीं है। देश के तमाम महानगरों के एक जैसे हालात हैं जहां आतंकी बडी आसानी से अपनी कमीनगी को अंजाम दे सकते हैं। सत्ताधीशों को अपनी कुर्सी को बचाये रखने की जितनी चिंता है उतनी देश और प्रदेशों की नहीं। भारत-पाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठिये बडी सहजता से भारत में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार इसी वर्ष कम से कम ९० पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत में प्रवेश किया। भारत-नेपाल सीमा से भी अवैध रूप से चीनी और कोरियाई नागरिकों का आसानी से घुसपैठ कर जाना यही दर्शाता है कि हिंदुस्तान की सुरक्षा व्यवस्था रामभरोसे है। पता नहीं इस देश के हुक्मरान कब जागेंगे?
हम भारतवासियों की यह बदनसीबी ही है कि आतंकवादी बम-बारूद बिछाकर हमारे अपनों की जान ले लेते हैं और राजनेता आतंकियों के प्रति अपनत्व जताते हुए राजनीति का खेल खेलना शुरू कर देते हैं। कसाब के मुद्दे पर तो किसी भी दल के लिए राजनीति करने की कोई गुंजाइश नहीं थी इसलिए उसे मौत दे दी गयी। पर बाकियों का क्या? अफजल गुरू, देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर के साथ-साथ राजीव गांधी के हत्या के दोषी लिट्टे आतंकवादियों को फांसी पर लटकाने में लगातार देरी के पीछे सिर्फ और सिर्फ राजनीति और राजनेता ही हैं। सबके अपने-अपने स्वार्थ हैं। कांग्रेस नेता गुलाम नबी आजाद अफजल के प्रति नर्मी बरतने की मांग कर कांग्रेस के असली चेहरे को उजागर कर चुके हैं। जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री उमर अब्दुला के साथ विपक्षी पार्टी पीडीपी भी अफजल को फांसी नहीं, माफी देने की पक्षधर है। हत्यारे देवेंद्र पाल सिंह भुल्लर पर तो पंजाब सरकार ही इतनी मेहरबान है कि वह उस पर किसी तरह की आंच नहीं आने देना चाहती। भुल्लर के प्रति उदारवादी बनी सरकार ने राष्ट्रपति को गुहार लगायी है कि भुल्लर पर दया की जाए। तामिलनाडु में राजीव गांधी के हत्यारे मुरुगन और उसके साथी भी राजनीति की बदौलत अभी तक फांसी से बचे हुए हैं। गौरतलब है कि राजीव गांधी की हत्या १९९१ में की गयी थी। यानी इक्कीस साल बीतने के बाद भी हत्यारों का बाल भी बांका नहीं हो पाया। समझ में नहीं आता इस देश के राजनेता किस नीति के पक्षधर हैं! दरअसल अपनी राजनीति चलाने और चमकाने के लिए उन्होंने 'नीति' की निर्मम हत्या करके रख दी है और अनीति के मार्ग पर सरपट दौडे चले जा रहे हैं। इन्हें रोकने वाला कोई भी नहीं। जब लगभग सभी एक ही थैली के चट्टे-बट्टे हों तो ऐसा होना ही है। देश में जब भी कहीं आतंकी हमले होते हैं तो घडियाली आंसू बहाने में भी यही मतलबपरस्त राजनेता सबसे आगे रहते हैं। अपने-अपने वोट बैंक के लिए आतंकियों और देशद्रोहियों के रक्षा कवच बनने वाले सत्ताधीशों में आम आदमी की सुरक्षा के लिए कुछ कर दिखाने की ललक ही नहीं है। नवंबर २००८ में मुंबई पर कसाब और उसके साथियों ने हमला किया था। २६/११ के हमलावर समुद्री मार्ग से मुंबई पहुंचे थे। सरकार ने दहाड-दहाड कर घोषणा की थी कि समुद्री सीमा क्षेत्र में व्यापक सुरक्षा के इंतजाम किये जाएंगे। पर आज भी स्थिति जस की तस है। चार साल बीत गये पर पुख्ता बंदोबस्त नहीं हो पाये हैं।
मुंबई ही नहीं देश की राजधानी दिल्ली भी सुरक्षित नहीं है। देश के तमाम महानगरों के एक जैसे हालात हैं जहां आतंकी बडी आसानी से अपनी कमीनगी को अंजाम दे सकते हैं। सत्ताधीशों को अपनी कुर्सी को बचाये रखने की जितनी चिंता है उतनी देश और प्रदेशों की नहीं। भारत-पाक सीमा से पाकिस्तानी घुसपैठिये बडी सहजता से भारत में प्रवेश करने में कामयाब हो जाते हैं। खुफिया एजेंसियों की रिपोर्ट के अनुसार इसी वर्ष कम से कम ९० पाकिस्तानी घुसपैठियों ने भारत में प्रवेश किया। भारत-नेपाल सीमा से भी अवैध रूप से चीनी और कोरियाई नागरिकों का आसानी से घुसपैठ कर जाना यही दर्शाता है कि हिंदुस्तान की सुरक्षा व्यवस्था रामभरोसे है। पता नहीं इस देश के हुक्मरान कब जागेंगे?
No comments:
Post a Comment