Thursday, March 21, 2013

न उनसे हुआ भला, न इनसे हुआ भला

देश की राजनीति की दुर्गम राहों पर सतत चलते हुए सोनिया गांधी ने कांग्रेस पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष के रूप में १५ वर्ष पूर्ण कर एक इतिहास तो रच ही डाला है। कांग्रेस को जीवनदान और सत्ता तक पहुंचाने का श्रेय भी सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी को ही जाता है। यह हकीकत है कि अगर सोनिया गांधी ने जर्जर कांग्रेस की कमान नहीं संभाली होती तो २००४ और २००९ में सत्ता का भरपूर स्वाद चख पाना कांग्रेस के लिए असंभव था। कांग्रेस के अधिकांश दिग्गज निराशा के अंतहीन गर्त में समा चुके थे। उन्होंने तो केंद्र की सत्ता का सपना देखना भी छोड दिया था। ये सोनिया गांधी ही थीं जिनका जादू चल गया और कांग्रेसियों की किस्मत के बंद दरवाजे खुल गयें। ये सोनिया गांधी का ही दम था जिसने विरोधियों के तमाम आरोपों और तोहमतों को हंसते-हंसते झेला और डूबती कांग्रेस की नैय्या को पार लगाया। असली प्रश्न यह है कि जर्जर कांग्रेस को सत्ता तक पहुंचाने वाली सोनिया गांधी से देश की आम जनता को जो आशाएं और उम्मीदें थीं क्या वे पूरी हो पायीं? इसका सिर्फ यही जवाब है, बिलकुल नहीं। भारतीय जनता पार्टी के ऊर्जावान नेता अटलबिहारी वाजपेयी की तरह सोनिया गांधी ने भी लोगों के विश्वास की धज्जियां उडाने का इतिहास रचा है। दलितों, शोषितों और गरीबों की तरक्की और भलाई के लिए ऐसा कोई भी उल्लेखनीय कदम नहीं उठाया गया जिसका जिक्र किया जा सके। मैडम ने दिखाने को तो डॉ. मनमोहन सिं‍ह को देश का प्रधानमंत्री बनाया पर कोई चमत्कार नहीं हो पाया। वायदे तो ढेरों किये गये पर पूरे नहीं के बराबर हुए। मैडम और डाक्टर साहब की छत्रछाया में हजारों और लाखों-लाखों करोडों के ऐसे-ऐसे घोटाले और भ्रष्टाचार हुए कि बेचारा मीडिया भी खबरें दिखाते और छापते-छापते थक गया। पर भ्रष्टाचार नहीं थमा। अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार के कार्यकाल में उनके दामाद और महाजन किस्म के नेता मंत्री, दलाल फले-फूले, तो डॉ. मनमोहन सिं‍ह की सरपरस्ती में जिं‍दल, जायसवाल, दर्डा और राबर्ट वाड्रा जैसों ने जी भरकर चांदी काटी। औरों की तो जाने दें पर राबर्ट वाड्रा के गडबडझालों ने देशवासियों को बेहद चौंकाया है।
'गांधी' नाम को भी बट्टा तो लगा ही है। राबर्ट सोनिया के दामाद हैं, और उस प्रियंका के पति हैं जिनमें लोग उनकी दादी प्रियदर्शिनी इंदिरा गांधी की छवि देखते हैं। राहुल गांधी, जिन्हें कांग्रेसी एक सुर में प्रधानमंत्री बनाने के गीत गाते रहते हैं, वे भी अपने जीजाश्री की अंधाधुंध कमायी से कैसे अनभिज्ञ रह गये?
राबर्ट तो व्यवसायी हैं और येन-केन-प्रकारेण दौलत के पहाड खडे करना हर शातिर व्यापारी का पहला लक्ष्य होता है। दामाद बाबू ने इतिहास भर दोहराया है और निशाने पर सिर्फ और सिर्फ सोनिया गांधी ही हैं। दामाद तो दामाद हैं। उन्हें अपनी सास और साले की साख के दोहन का अघोषित अधिकार है। पर उन नेताओं का क्या करें जिन्होंने मैडम के नाम पर लूट का तांडव मचा रखा है। लोगों को अक्सर यह सवाल परेशान करता है कि किं‍गमेकर होने के बावजूद मैडम हाथ पर हाथ धरे क्यों बैठी हैं? राजनीति में पंद्रह साल का कार्यकाल कायाकल्प करने के लिए पर्याप्त होता है। देश की जनता ने कांग्रेस गठबंधन को दूसरी बार केंद्र की सत्ता यह सोचकर सौंपी थी कि शायद इस बार कोई चमत्कार हो और देश के बदहाल आम आदमी की किस्मत खुल जाए। पर आज देश की आम जनता बेहद रोष में है। अपना खून पसीना बहाने वाला आम आदमी महज दो वक्त की रोटी, चंद कपडे और सिर पर घर नाम की एक छत ही तो चाहता है। अगर हुक्मरान उसे ये भी मुहैय्या न करा पाएं और उनके संगी-साथी सबकुछ चट कर जाएं तो आम आदमी के खून का खौलना सौ फीसदी जायज है।
राजनेताओं, उद्योगपतियों और ताकतवर भ्रष्ट अफसरों की जमात ने देश का जो अपार धन विदेशी बैंकों में जमा कर रखा है उसे वापस लाने के लिए देशप्रेमी जनता वर्षों से व्याकुल है। आंदोलन पर आंदोलन होने के बाद भी मनमोहन सरकार के कान पर जूं नहीं रेंगी। इस सरकार की रिमोट कंट्रोलर तो आखिर सोनिया गांधी ही हैं उन्होंने गजब की चुप्पी साधे रखी! वे अगर हिम्मत दिखातीं तो कुछ भी हो सकता था। अभी तो वे मतलबी कांग्रेसियों की मसीहा हैं, अगर देश का विदेशों में जमा अपार धन वापस आ जाता तो देश का बच्चा-बच्चा उन्हें सलाम करता। देश का भी भला हो जाता।
खोजी पत्रकारिता की बदौलत अब तो यह भी रहस्योद्घाटन हो गया है कि देश में ही काले धन का जबरदस्त कारोबार चल रहा है। निजी क्षेत्र के कुछ बैंक मनमाने ढंग से काले धन को सफेद बनाने के गोरखधंधे में लगे हुए हैं। देश में ही चल रहे इस काले धंधे के नायक भी नेता उद्योगपति और बडे-बडे अधिकारी ही हैं। ऐसा तो हो ही नहीं सकता कि सत्ताधीश इससे वाकिफ न हों। अब यह बताने और लिखने की गुंजाइश भी नहीं बची है कि इस देश की राजनीतिक पार्टियां और उनकी आडी-तिरछी राजनीति काले धन के दम पर ही जिं‍दा है। ऐसे में यह मान लेने में यकीनन कोई हर्ज नहीं है कि जिस तरह से विदेशी बैंकों में जमा धन वापस आने से रहा वैसे ही देश में कुछ बैंकों के द्वारा जारी काले धन के कारोबार को नेस्तानाबूत कर पाना सरकार के बस की बात नहीं है।
जब सोनिया गांधी ने कांग्रेस की कमान संभाली थी तो देश के आमजन में यह उम्मीद तो जागी ही कि वे कोई ऐसा करिश्मा जरूर कर दिखाएंगी जिससे उसे राहत मिलेगी। महंगाई, बेरोजगारी, अव्यवस्था और भ्रष्टाचार से जूझता देश और देशवासी इतने हताश और निराश कभी नहीं हुए जितने कि सोनिया और मनमोहन के राज में हुए हैं। अंत में किसी कवि की ये पंक्तियां :
''न उनसे हुआ भला, न इनसे हुआ भला
काटा है सबने आज तक कमजोर का गला
कुर्सी पर बैठा जो भी उल्लू बन गया
नेता का जिस्म एक ही सांचे में ढला।
वे नागनाथ थे तो ये सांपनाथ हैं
बांबी में हाथ डाला हमको पता चला
बहुरुपिये हुये सब बदले हैं मुखौटे
जनता को खूब आजतक हर एक ने छला
सींचा है जैसे-जैसे यह सूखता गया
जनतंत्र का यह वृक्ष अब तक नहीं फला।''

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