जिद्दी मोदी हैं कि कांग्रेसियों की नींद हराम करने की ठाने हैं। कांग्रेसियों ने भी जैसे कसम खायी है कि चाहे कुछ भी हो जाए, पर नरेंद्र मोदी की दाल गलने न पाए। जहां देखो वहां मोदी। देश को महंगाई, बेरोजगारी, गरीबी और बदहाली की आग में झोंक देने वाली सरकार के पास भी और कोई काम नहीं बचा है। उसे सपने में भी मोदी ही दिखते हैं। उसके कुछ मंत्री दिन-रात मोदी के सवालों के जवाब देने में तल्लीन रहते हैं। मोदी फुलझडियां छोडते हैं और खिसक जाते हैं। विरोधी एक साथ मंच पर आते हैं और भाजपा तथा संघ की बखिया उधेडने में लग जाते हैं। वे चाहते हैं कि संघ और भाजपा नरेंद्र की नकेल कसें। बेचारे जान कर भी अंजान बनने का नाटक करने को मजबूर हैं कि मोदी को खुलकर नाचने-कूदने की आजादी मिल चुकी है। अब किसी में दम नहीं जो उन्हें बेदम कर सके। संघ और भाजपा दोनों देश की सत्ता पाने को बेताब हैं। दोनों ने मान लिया है कि यह असंभव काम सिर्फ और सिर्फ मोदी ही कर सकते हैं। सबकी इज्जत दांव पर लगी है। हारना कोई भी नहीं चाहता। सभी को अपनी नाक की फिक्र है। देश की किसी को कोई चिंता नहीं है। जहां जाता है जाए। जो होगा देखा जाएगा।
फिलहाल, मोदी ही देश का सबसे बडा मुद्दा हैं। उनके विरोधी उन्हें बार-बार गुजरात में हुए २००२ के दंगों की याद दिलाते हैं। मोदी सिर्फ मुस्कराकर रह जाते हैं। कई लोगों को इस मुस्कुराहट में विष भरा नजर आता है। इसी देश में कभी 'इंदिरा इज़ इंडिया' का नारा लगाया गया था, आज 'मोदी इज़ इंडिया' का नारा गूंज रहा है। इस नारे को उछालने वाले भाजपाई कम, दीगर लोग ज्यादा हैं। सोशल मीडिया के बेहद चहेते हैं मोदी। ऐसा क्यों और कैसे हुआ इसे लेकर कांग्रेस और अन्य पार्टियां सतत चिंतन-मनन कर रही हैं। सभी ने मोदी के खिलाफ तीर चलाने का एक सूत्रीय कार्यक्रम तय कर लिया है। बहुजन समाज पार्टी के एक सांसद हैं विजय बहादुर सिंह। इन महाशय ने नरेंद्र मोदी की तारीफ कर दी। बहन मायावती को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी पार्टी के सांसद को फौरन पार्टी से बाहर कर दिया। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में शासन करने का सपना देखने वाले नेताओं और राजनीतिक पार्टियों का यही असली चेहरा है। अगर पार्टी में टिके रहना है तो सिर्फ और सिर्फ अपने ही नेता की तारीफ करते रहो। उसकी लाख बुराइयों पर नकाब उडाते रहो। किसी दूसरी पार्टी का नेता यदि कोई बेहतर काम कर रहा हो और दिल को जचने वाली बात भी कहता हो तो उसे हद दर्जे का घटिया, निकम्मा और मक्कार नेता साबित करने के लिए जमीन-आसमान एक कर दो।
अभी हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि यदि उनकी कार के पहिये के नीचे आकर एक कुत्ते का पिल्ला भी मर जाता है तो उन्हें बहुत पीडा होती है। कांग्रेस के विद्धान अपनी अक्ल के घोडे दौडाने लगे। सभी कुत्ते के पिल्ले का गूढ अर्थ निकालने के अभियान में लग गये। उनके हंगामे ने मोदी के नाम की धूम मचा दी। देश के आम आदमी ने मोदी विरोधियों की दूरअंदेशी पर माथा पीट लिया। लोग आपस में चर्चा करने लगे कि क्या वास्तव में नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समाज की तुलना कुत्ते के बच्चे से की है! क्या वे इतने घटिया इंसान हैं। क्या उनकी संवेदनाओं का दिवाला पिट चुका है? धीरे-धीरे इस मुल्क का आम आदमी जानने-समझने लगा है कि मोदी के बयानों का जानबूझकर भ्रम पैदा करने वाला अर्थ निकाला जाता है। मोदी के विरोधी कुछ ज्यादा ही घबरा गये हैं। उन्हें मोदी का हर बयान घबराहट में डाल देता है और वे ऐसे-ऐसे अर्थ निकालने में जुट जाते हैं जिनसे खलबली और बवाल मचे। १४ जुलाई २०१३ को पुणे की एक सभा में मोदी ने कहा कि जब भी कांग्रेस पर कोई संकट आता है तो वह धर्म निरपेक्षता का बुर्का ओढकर बंकर में छुप जाती हैं। इस व्यंग्य बाण को भी कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से जोडकर अपनी विद्धता का ढिंढोरा पीट डाला। आखिर कांग्रेसी चाहते क्या हैं? मुसलमान मोदी से दूर रहें... और भूलकर भी उन्हें वोट न दें... यकीनन यही उसकी असली मंशा है। नरेंद्र मोदी जब कहते हैं कि मैं राष्ट्रवादी हूं... और जन्म से हिन्दू हूं इसलिए आप मुझे हिन्दु राष्ट्रवादी कह सकते हैं तो एक साथ हंगामा बरपा हो जाता है। बहुजन समाज पार्टी के सांसद 'वंदे मातरम' की तौहीन करते हुए संसद से उठकर चले जाते हैं तो सभी गूंगे हो जाते हैं। महात्मा गांधी को गाली देने वालों को भी देशभक्त कांग्रेसी माफ करने में जरा भी देरी नहीं लगाते! मोदी के हर बयान पर हो-हल्ला मचाने वाले कांग्रेसी आज खुद अपने ही बनाये कटघरे में खडे हैं। लोग अब उन्हीं से सवाल करने को आतुर हैं। हर राजनीतिक पार्टी को मुसलमानों के वोट चाहिए। उनकी बेबसी और बदहाली की किसी को कोई चिंता नहीं है। इस देश में मुसलमान महज वोटर बनाकर रख दिये गये हैं। हर नेता इन वोटरों पर अपना हक जताता दिखता है। मोदी के विरोधियों को अब कौन समझाये कि वे मोदी को जितना विवादग्रस्त बना रहे हैं वे उससे कहीं ज्यादा लोकप्रिय होते चले जा रहे हैं। यही वजह है कि देश के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि किसी नेता को देखने-सुनने के लिए लोगों को टिकट खरीदनी होगी।
फिलहाल, मोदी ही देश का सबसे बडा मुद्दा हैं। उनके विरोधी उन्हें बार-बार गुजरात में हुए २००२ के दंगों की याद दिलाते हैं। मोदी सिर्फ मुस्कराकर रह जाते हैं। कई लोगों को इस मुस्कुराहट में विष भरा नजर आता है। इसी देश में कभी 'इंदिरा इज़ इंडिया' का नारा लगाया गया था, आज 'मोदी इज़ इंडिया' का नारा गूंज रहा है। इस नारे को उछालने वाले भाजपाई कम, दीगर लोग ज्यादा हैं। सोशल मीडिया के बेहद चहेते हैं मोदी। ऐसा क्यों और कैसे हुआ इसे लेकर कांग्रेस और अन्य पार्टियां सतत चिंतन-मनन कर रही हैं। सभी ने मोदी के खिलाफ तीर चलाने का एक सूत्रीय कार्यक्रम तय कर लिया है। बहुजन समाज पार्टी के एक सांसद हैं विजय बहादुर सिंह। इन महाशय ने नरेंद्र मोदी की तारीफ कर दी। बहन मायावती को इतना गुस्सा आया कि उन्होंने अपनी पार्टी के सांसद को फौरन पार्टी से बाहर कर दिया। दुनिया के सबसे बडे लोकतांत्रिक देश में शासन करने का सपना देखने वाले नेताओं और राजनीतिक पार्टियों का यही असली चेहरा है। अगर पार्टी में टिके रहना है तो सिर्फ और सिर्फ अपने ही नेता की तारीफ करते रहो। उसकी लाख बुराइयों पर नकाब उडाते रहो। किसी दूसरी पार्टी का नेता यदि कोई बेहतर काम कर रहा हो और दिल को जचने वाली बात भी कहता हो तो उसे हद दर्जे का घटिया, निकम्मा और मक्कार नेता साबित करने के लिए जमीन-आसमान एक कर दो।
अभी हाल ही में गुजरात के मुख्यमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने एक साक्षात्कार में कहा कि यदि उनकी कार के पहिये के नीचे आकर एक कुत्ते का पिल्ला भी मर जाता है तो उन्हें बहुत पीडा होती है। कांग्रेस के विद्धान अपनी अक्ल के घोडे दौडाने लगे। सभी कुत्ते के पिल्ले का गूढ अर्थ निकालने के अभियान में लग गये। उनके हंगामे ने मोदी के नाम की धूम मचा दी। देश के आम आदमी ने मोदी विरोधियों की दूरअंदेशी पर माथा पीट लिया। लोग आपस में चर्चा करने लगे कि क्या वास्तव में नरेंद्र मोदी ने मुस्लिम समाज की तुलना कुत्ते के बच्चे से की है! क्या वे इतने घटिया इंसान हैं। क्या उनकी संवेदनाओं का दिवाला पिट चुका है? धीरे-धीरे इस मुल्क का आम आदमी जानने-समझने लगा है कि मोदी के बयानों का जानबूझकर भ्रम पैदा करने वाला अर्थ निकाला जाता है। मोदी के विरोधी कुछ ज्यादा ही घबरा गये हैं। उन्हें मोदी का हर बयान घबराहट में डाल देता है और वे ऐसे-ऐसे अर्थ निकालने में जुट जाते हैं जिनसे खलबली और बवाल मचे। १४ जुलाई २०१३ को पुणे की एक सभा में मोदी ने कहा कि जब भी कांग्रेस पर कोई संकट आता है तो वह धर्म निरपेक्षता का बुर्का ओढकर बंकर में छुप जाती हैं। इस व्यंग्य बाण को भी कांग्रेस ने मुस्लिम समुदाय की महिलाओं से जोडकर अपनी विद्धता का ढिंढोरा पीट डाला। आखिर कांग्रेसी चाहते क्या हैं? मुसलमान मोदी से दूर रहें... और भूलकर भी उन्हें वोट न दें... यकीनन यही उसकी असली मंशा है। नरेंद्र मोदी जब कहते हैं कि मैं राष्ट्रवादी हूं... और जन्म से हिन्दू हूं इसलिए आप मुझे हिन्दु राष्ट्रवादी कह सकते हैं तो एक साथ हंगामा बरपा हो जाता है। बहुजन समाज पार्टी के सांसद 'वंदे मातरम' की तौहीन करते हुए संसद से उठकर चले जाते हैं तो सभी गूंगे हो जाते हैं। महात्मा गांधी को गाली देने वालों को भी देशभक्त कांग्रेसी माफ करने में जरा भी देरी नहीं लगाते! मोदी के हर बयान पर हो-हल्ला मचाने वाले कांग्रेसी आज खुद अपने ही बनाये कटघरे में खडे हैं। लोग अब उन्हीं से सवाल करने को आतुर हैं। हर राजनीतिक पार्टी को मुसलमानों के वोट चाहिए। उनकी बेबसी और बदहाली की किसी को कोई चिंता नहीं है। इस देश में मुसलमान महज वोटर बनाकर रख दिये गये हैं। हर नेता इन वोटरों पर अपना हक जताता दिखता है। मोदी के विरोधियों को अब कौन समझाये कि वे मोदी को जितना विवादग्रस्त बना रहे हैं वे उससे कहीं ज्यादा लोकप्रिय होते चले जा रहे हैं। यही वजह है कि देश के इतिहास में यह पहली बार होने जा रहा है कि किसी नेता को देखने-सुनने के लिए लोगों को टिकट खरीदनी होगी।
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