वह नेता नहीं। आम आदमी है। उसने न तो डाका डाला, न ही कोई चोरी-चक्कारी की। जो देखा और भोगा उसी को उसने अपने अंदाज में पेश कर दिया। सच वैसे भी बहुत कडवा होता है। इस देश के नेता सच को बर्दाश्त नहीं कर पाते। छुटभैय्यों की तो बात ही कुछ और है। बेचारे अपने आकाओं के इशारों पर नाचने को विवश होते हैं। हो सकता है कि यह खबर आपने पढी और सुनी न हो। मुंबई के परेल इलाके में स्थित 'अदिति रेस्टारेंट' के मालिक को देश में बढती महंगाई ने इतना आहत किया कि उसने अपने ग्राहकों को दिये जाने वाले बिल पर अपना दर्द बयां कर दिया: 'यूपीए सरकार के अनुसार घूस खाना समय की जरूरत है और वातानाकूलित रेस्टारेंट में भोजन करना विलासिता है।' इन शब्दों में जो व्यंग्य छिपा है उसे कुछ कांग्रेसियों ने फौरन भांप लिया। उनके तन-बदन में आग लग गयी। एक अदने से होटल वाले की इतनी हिम्मत! सोनिया-मनमोहन की सरकार पर उंगली उठाये! एक आम आदमी का सरकार की खिल्ली उडाना उन्हें इस कदर चुभा कि उन्होंने पहले तो होटल मालिक को धमकाया। जब उन्हें लगा कि यह आसानी से नहीं मानने वाला तो तोड-फोड कर उसका होटल ही बंद करवा दिया।
राष्ट्रभक्त कांग्रेसियो ने तो बेचारे होटल वाले को पूरी तरह से बेरोजगार करने की ठान ली थी। पर उनकी इस करतूत की खबर जैसे ही मीडिया की सुर्खियों में आयी तो और हंगामा बरपा हो गया। असहाय होटल वाले पर गुंडागर्दी का कहर ढाने वाले सफाई देने के अभियान में लग गये। यह भी कहा गया कि उन्हें सीधे दिल्ली मुख्यालय से ही होटल को बंद करवाने का आदेश मिला था। उन्होंने तो सिर्फ अपने आकाओ के फरमान का ही पालन किया है। ड्यूटी बजाना उनका धर्म है। देश और दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जो महंगाई का मारा न हो। धनासेठों, नव धनाढ्यों, सत्ताधीशों, काले-पीले धंधे करने वाले व्यापारियों, माफियाओं, अपराधियों और नेताओं की कौम को छोडकर हर कोई दुखी और परेशान है। वह होटल वाला भी निरंतर घटती ग्राहकी से चिंतित था। ग्राहकों को परोसे जाने वाले भोजन पर सेवा कर लगाकर सरकार की तिजोरी भरने के रास्ते तो खुल गये पर बेचारे होटल वाले का धंधा ही मंदा पड गया। जिसके पेट पर लात पडती है, वह चुप नहीं रहता। उस पर वो बंदा जो सब कुछ समझता और जानता हो, उसे पीडा तो होगी ही...। वह किसी न किसी तरीके से अपना रोष व्यक्त करेगा ही। उस होटल वाले की तरह आज देश का हर खुद्दार नागरिक बेहद नाराज है। वह अंधा-बहरा और गूंगा होता तो चुप बैठा रहता। उसे स्पष्ट दिख रहा है कि सत्ताधीशों के नाक के नीचे राजनेता और खनिज माफिया अरबों-खरबों का कोयला पचा रहे हैं। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की प्रतिस्पर्धा चल रही है। छोटे-बडे नेता और सरकारी अधिकारी करोडों में खेल रहे हैं। २जी, कोलगेट और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के कीर्तिमान रचने वाले शान से जी रहे हैं और मेहनतकश देशवासियों को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो पा रही। जनता जो टैक्स देती है उसका भी बहुत बडा हिस्सा मंत्री-संत्री, अय्याशी में उडा रहे हैं। सांसद और विधायक करोडों कमाते हैं फिर भी अपनी तनख्वाह बढवाने के लिए हो-हल्ला मचाते रहते हैं। आम जनता को जो पानी पीना पडता है उसे तो यह लोग छूते तक नहीं। सैकडों रुपये का रोज मीनरल वाटर डकार जाते हैं। इनके नाश्ते और खाने पर हजारों रुपये न्योछावर हो जाते हैं। देश के आम आदमी को बेवकूफ बनाने का कोई भी मौका नहीं छोडा जाता। यह सरकार शहर में ३२ रुपये रोज और गांव में २६ रुपये कमाने वालो को अमीर मानती है। इतने रुपयों में तो ढंग का नाश्ता नसीब नहीं होता। सरकार ने यह मान लिया है कि इस देश के आम आदमी को अच्छे भोजन, आवास, शिक्षा, पेट्रोल, डीजल और अन्य सुविधाओं की कोई जरूरत नहीं है। बत्तीस और छब्बीस रुपये कमाने वाले रईसों को अपनी औकात में रहना चाहिए। सरकार को चारों तरफ हरा ही हरा दिखायी देता है। लोग मरते-खपते रहें, उसे कोई फर्क नहीं पडता। मुल्क को चलाने वालो का यह भ्रम पता नहीं कब टूटेगा कि लोगों के सब्र की सीमा खत्म हो चुकी है। उनके लिए अपने गुस्से को दबाये रख पाना मुश्किल हो चुका है। उन्हें यह भी खबर है कि इस देश में कहने भर को लोकतंत्र है। अपने दिल की बात कहने की आजादी नहीं है।
देश के विख्यात शायर दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं:
'हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो-रो कर बात कहने की आदत नहीं रही।
हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया,
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही।'
राष्ट्रभक्त कांग्रेसियो ने तो बेचारे होटल वाले को पूरी तरह से बेरोजगार करने की ठान ली थी। पर उनकी इस करतूत की खबर जैसे ही मीडिया की सुर्खियों में आयी तो और हंगामा बरपा हो गया। असहाय होटल वाले पर गुंडागर्दी का कहर ढाने वाले सफाई देने के अभियान में लग गये। यह भी कहा गया कि उन्हें सीधे दिल्ली मुख्यालय से ही होटल को बंद करवाने का आदेश मिला था। उन्होंने तो सिर्फ अपने आकाओ के फरमान का ही पालन किया है। ड्यूटी बजाना उनका धर्म है। देश और दुनिया के जाने-माने अर्थशास्त्री डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में शायद ही ऐसा कोई इंसान हो जो महंगाई का मारा न हो। धनासेठों, नव धनाढ्यों, सत्ताधीशों, काले-पीले धंधे करने वाले व्यापारियों, माफियाओं, अपराधियों और नेताओं की कौम को छोडकर हर कोई दुखी और परेशान है। वह होटल वाला भी निरंतर घटती ग्राहकी से चिंतित था। ग्राहकों को परोसे जाने वाले भोजन पर सेवा कर लगाकर सरकार की तिजोरी भरने के रास्ते तो खुल गये पर बेचारे होटल वाले का धंधा ही मंदा पड गया। जिसके पेट पर लात पडती है, वह चुप नहीं रहता। उस पर वो बंदा जो सब कुछ समझता और जानता हो, उसे पीडा तो होगी ही...। वह किसी न किसी तरीके से अपना रोष व्यक्त करेगा ही। उस होटल वाले की तरह आज देश का हर खुद्दार नागरिक बेहद नाराज है। वह अंधा-बहरा और गूंगा होता तो चुप बैठा रहता। उसे स्पष्ट दिख रहा है कि सत्ताधीशों के नाक के नीचे राजनेता और खनिज माफिया अरबों-खरबों का कोयला पचा रहे हैं। भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी की प्रतिस्पर्धा चल रही है। छोटे-बडे नेता और सरकारी अधिकारी करोडों में खेल रहे हैं। २जी, कोलगेट और राष्ट्रमंडल खेल घोटाले के कीर्तिमान रचने वाले शान से जी रहे हैं और मेहनतकश देशवासियों को दो वक्त की रोटी तक नसीब नहीं हो पा रही। जनता जो टैक्स देती है उसका भी बहुत बडा हिस्सा मंत्री-संत्री, अय्याशी में उडा रहे हैं। सांसद और विधायक करोडों कमाते हैं फिर भी अपनी तनख्वाह बढवाने के लिए हो-हल्ला मचाते रहते हैं। आम जनता को जो पानी पीना पडता है उसे तो यह लोग छूते तक नहीं। सैकडों रुपये का रोज मीनरल वाटर डकार जाते हैं। इनके नाश्ते और खाने पर हजारों रुपये न्योछावर हो जाते हैं। देश के आम आदमी को बेवकूफ बनाने का कोई भी मौका नहीं छोडा जाता। यह सरकार शहर में ३२ रुपये रोज और गांव में २६ रुपये कमाने वालो को अमीर मानती है। इतने रुपयों में तो ढंग का नाश्ता नसीब नहीं होता। सरकार ने यह मान लिया है कि इस देश के आम आदमी को अच्छे भोजन, आवास, शिक्षा, पेट्रोल, डीजल और अन्य सुविधाओं की कोई जरूरत नहीं है। बत्तीस और छब्बीस रुपये कमाने वाले रईसों को अपनी औकात में रहना चाहिए। सरकार को चारों तरफ हरा ही हरा दिखायी देता है। लोग मरते-खपते रहें, उसे कोई फर्क नहीं पडता। मुल्क को चलाने वालो का यह भ्रम पता नहीं कब टूटेगा कि लोगों के सब्र की सीमा खत्म हो चुकी है। उनके लिए अपने गुस्से को दबाये रख पाना मुश्किल हो चुका है। उन्हें यह भी खबर है कि इस देश में कहने भर को लोकतंत्र है। अपने दिल की बात कहने की आजादी नहीं है।
देश के विख्यात शायर दुष्यंत कुमार की पंक्तियां हैं:
'हिम्मत से सच कहो तो बुरा मानते हैं लोग,
रो-रो कर बात कहने की आदत नहीं रही।
हमने तमाम उम्र अकेले सफर किया,
हम पर किसी खुदा की इनायत नहीं रही।'
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